कोरोना महामारी ने कोचों और सहयोगी स्टाफ की आजीविका को खत्म किया : पुलेला गोपीचंद
पुलेला गोपीचंद ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी ने देश के छोटे कोचों और सहयोगी स्टाफ की आजीविका को खत्म कर दिया है।
नई दिल्ली (ब्यूरो)। राष्ट्रीय बैडमिंटन कोच पुलेला गोपीचंद ने कहा कि कोरोना वायरस महामारी ने देश के छोटे कोचों और सहयोगी स्टाफ की आजीविका को खत्म कर दिया है।
उन्होंने कहा, 'कोविड-19 के कारण विश्व में ज्यादातर बड़े टूर्नामेंट स्थगित कर दिए गए और उनका दोबारा होना मुश्किल है। लेकन क्या हम उन सभी के लिए कुछ छोड़ सकते हैं जिनके लिए ओलंपिक गेम्स या विश्व चैंपियनशिप में प्रतिस्पर्धा करने का यह अंतिम अवसर था? उदाहरण के तौर पर यदि टोक्यो ओलंपिक गेम्स नहीं हुए तो यह एक योग्य एथलीट के लिए अधूरा सपना रह जाएगा। एक ऐसा नुकसान जिसे हम कभी भी समझ नहीं सकते।'
गोपीचंद ने कहा, 'कोविड-19 से शीर्ष पेशेवर से अधिक यह छोटे खेल के मैदानों, अकादमियों, क्लबों, जिमों और स्विमिंग पूल में काम करने वाले असंख्य कोच और सहायक कर्मचारी हैं जो सबसे ज्यादा प्रभावित हुए हैं। महामारी ने उनकी आजीविका छीन ली है।' हालांकि गोपीचंद ने अर्जुन पुरस्कार विजेता एथलीट अश्विनी नचप्पा और मताथी होला के साथ मिलकर महामारी फैलने के बाद परेशानी में रह रहे देश के जरूरतमंद प्रशिक्षकों और सहयोगी स्टाफ के लिए पैसा जुटाने के लिए 'रन टू मून' पहल शुरू की थी जिसमें कई कंपनियों ने मदद की। इस दौड़ में विश्व के लगभग 14000 धावकों ने हिस्सा लिया।
इन धावकों को मिलकर 384400 किलोमीटर की दूरी तय करने का लक्ष्य दिया गया था। पृथ्वी और चंद्रमा के बीच इतनी ही दूरी है। धावकों ने 21 जुलाई को लक्ष्य हासिल करके अपनी दौड़ समाप्त की थी। इसी दिन 51 साल पहले इंसान ने पहली बार चांद पर कदम रखा था। वैसे धावकों ने 30 दिन के कुल मिलाकर 908800 किमी की दूरी तय की। उन्होंने पहला चरण छह जुलाई को पूरा किया और 18 जुलाई को फिर से यह लक्ष्य हासिल किया था।
वहीं, मुंबई के पूर्व रणजी खिलाड़ी व आइडीबीआइ फेडरेल लाइफ इंस्योरेंस के एमडी और सीईओ विघ्नेश शहाणे ने कहा कि इसमें 14000 से अधिक एथलीट शामिल थे और हमने इससे 20 लाख रपये जुटाए गए। गोपीचंद ने यह भी कहा कि हमने खेल पत्रकारों के साथ-साथ कोचों का एक ग्रुप बनाया है जो उन सहायक कर्मचारियों के लिए काम करेगा जिन्हें फंड की सबसे ज्यादा जरूरत है।