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एशियन गेम्स 2018: ऐसे ही सौरभ ने नहीं जीता गोल्ड, कड़ी मेहनत से हासिल किया ये मुकाम

इस उपलब्धि के लिये सौरभ ने जो कठिन परिश्रम किया उसको सुनकर हर कोई हैरत में पड़ जाता है।

By Lakshya SharmaEdited By: Published: Wed, 22 Aug 2018 07:30 PM (IST)Updated: Wed, 22 Aug 2018 07:34 PM (IST)
एशियन गेम्स 2018: ऐसे ही सौरभ ने नहीं जीता गोल्ड, कड़ी मेहनत से हासिल किया ये मुकाम

मनोज कलीना, बागपत। 'सपने वो नहीं होते जो आप सोने के बाद देखते हैं, सपने वो होते हैं जो आपको सोने नहीं देते' पूर्व राष्ट्रपति डा. एपीजे अब्दुल कलाम का यह ध्येय वाक्य सौरभ चौधरी की कामयाबी पर सटीक बैठता है। एशियन गेम्स में देश के लिये सोना जीतने वाले सौरभ की नींद भी ऐसे ही सपने ने छीन रखी थी। उसकी आंखों में देश के लिए स्वर्ण पदक जीतने का सपना तैर रहा था।

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जुनून इस हद तक था कि घंटों बिनौली स्थित शूटिंग रेंज पर अभ्यास के बाद भी वह संतुष्ट नहीं होता था। उसने अपने घर में अस्थाई रेंज बना ली थी। जब पूरा गांव सो रहा होता था, तब कलीना का यह नगीना अभ्यास करता था। पड़ोस के लोग बताते हैं कि जब कभी रात में उनकी नींद खुलती, तो शूटिंग की आवाज उन्हें सुनाई देती थी।

कब गुजरती रात पता नहीं चलता 

इस उपलब्धि के लिये सौरभ ने जो कठिन परिश्रम किया उसको सुनकर हर कोई हैरत में पड़ जाता है। सौरभ सुबह घर से 15 किमी दूर बिनौली स्थित वीर शाहमल रायफल क्लब पर कोच अमित श्योराण की देखरेख में छह-सात घंटे प्रैक्टिस करता था। लेकिन लक्ष्य हासिल करने के लिए असली अभ्यास वह घर पर बनाई गई वैकल्पिक रेंज पर रातभर करता था। पिता जगमोहन बताते हैं कि बिनौली से आकर वह रात आठ बजे से अभ्यास शुरू कर देर रात तक लगा रहता था।

प्रदेश सरकार से नाखुश हैं परिजन 

सौरभ द्वारा पीला तमगा जीतने पर यूपी सरकार ने 50 लाख और सरकारी नौकरी की घोषणा की है, जिससे परिजन कतई खुश नहीं हैं। जगमोहन कहते हैं कि पड़ोसी राज्य हरियाणा में कांस्य पदक जीतने पर भी तीन करोड़ दिये जा रहे हैं। उन्होंने प्रदेश सरकार से पांच से दस करोड़ रुपये और नौकरी की मांग की। सौरभ के परिजन प्रदेश सरकार के निर्णय से जहां नाखुश हैं, वहीं पिता कहते हैं कि यदि कोई दूसरे प्रदेश की सरकार अच्छा प्रोत्साहन देगी तो उन्हें सौरभ को वहां से खेलने के लिये भेजने में भी कोई गुरेज नहीं है।

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