पापा के अंदर हमारे प्रति बहुत सारा प्यार भरा हुआ है
आज मैं आपके परिवार के बीच सामाजिक संपर्क पर प्रकाश डालना चाहूंगी और यह पूछना चाहूंगी कि आप दिन भर में अपने पिताजी के साथ कितनी बार बातचीत करते हैं।
आज मैं आपके परिवार के बीच सामाजिक संपर्क पर प्रकाश डालना चाहूंगी और यह पूछना चाहूंगी कि आप दिन भर में अपने पिताजी के साथ कितनी बार बातचीत करते हैं। हममें से ज्यादातर लोग पिता से तभी वार्तालाप करते हैं जब हमें कोई वित्तीय जरूरतें हो या फिर कोई कोई सलाह लेना हो। लेकिन क्या कभी हमने उनसे भावनात्मक रूप से बातचीत की है? शायद नहीं। लेकिन मेरे बचपन के अनुभवों को याद करते हुए मैं बताना चाहती हूं कि मैं जब छोटी थी तब मेरे मन में यह सवाल आते थे कि क्या मेरे पापा कभी उदास नहीं होते? क्या उन्हें कभी रोना नहीं आता? क्या उन्हें कभी किसी बात का बुरा लगता है क्योंकि वह हर समय हमें अपनी खुश, मजबूत एवं कठोर तस्वीर दिखाया करते थे। फिर जब हम बड़े हुए और हम में से बड़ी बहन को पढ़ाई के लिए बाहर जाना पड़ा जिससे वह उदास रहने लगे। उनकी भावनाएं कुछ दिखाई देने लगी। हम में से कोई कुछ अपने पढ़ाई में या फिर किसी अन्य क्षेत्र में अच्छा परिणाम लाकर देते थे। तो उससे उनकी आंखों में आंसू आ जाते थे और उन आंसुओं के द्वारा वह अपनी खुशी जाहिर करते थे। मैंने उनकी इस मिश्रित भावनाओं को देखकर यह महसूस किया कि वह एक भावनात्मक रूप से संपूर्ण है और उनके अंदर हमारे प्रति बहुत सारा प्यार भरा हुआ है। आज इस पितृत्व दिवस में हमारे पिता जी चाचा जी मामा जी बड़े पिता जी सभी को धन्यवाद करना चाहूंगी कि उन्होंने भावनात्मक सहयोग से हमें जीवन को जीने की शिक्षा दी है और उन्हीं को यह पंक्तियां समर्पित करना चाहूंगी।
'मुझे रख दिया छांव में खुद जलते रहे धूप में, मैंने देखा है ऐसा एक फरिश्ता अपने पिता के रूप में।'
- आकृति द्विवेदी, बीए फाइनल ईयर
पिता राघवेंद्र द्विवेदी