अपनी जमीन पर परिचय तलाश रहे हैं आदिवासी
जागरण संवाददाता, राउरकेला : जंगल काट कर वर्षों से बस रहे सुंदरगढ़ जिले के 8788 परिवार तथा 82 गांवों को राजस्व ग्राम में मिलने वाली सरकारी सुविधा नहीं मिल पायी है। आजादी के 75 साल बाद भी वे अपने परिचय की तलाश कर रहे हैं। व्यक्तिगत एवं जिला स्तरीय कमेटी के द्वारा उनके आवेदन स्वीकृत किए गए हैं पर उन्हें मान्यता नहीं मिलने से सरकारी सुविधा से वंचित होना पड़ रहा है।
आदिवासी अधिसूचित सुंदरगढ़ जिले में जल, जंगल व जमीन पर आदिवासियों को अधिकार मिलना चाहिए। आदिवासी व परंपरागत वनवासियों को जंगल अधिकार कानून-2006, संशोधित नियमावली 2012 के अनुसार उन्हें जमीन का पट्टा व मालिकाना हक मिलना चाहिए। कानून लागू होने के 15 साल बाद भी आदिवासियों को इसका लाभ नहीं मिल मिल रहा है। व्यक्तिगत जंगल अधिकारी कानून के तहत 42,357 आवेदन दिए गए थे। इनमें से 22,631 को पट्टा मिला। 20 हजार से अधिक परिवार पट्टा मिलने का इंतजार कर रहे हैं। सुंदरगढ़ अनुमंडल में जंगल जमीन पर अधिकार के लिए 26,241 आवेदन दिए गए थे। 14,406 को ग्रामसभा तथा 10,779 को जिला स्तरीय कमेटी से स्वीकृति दी गई। ग्रामसभा में स्वीकृत 3630 आवेदन जिला कमेटी के समक्ष है। इसी तरह से पानपोष अनुमंडल में 10,452 आवेदनों में से 3097 को ग्रामसभा में व 2479 को जिला कमेटी में स्वीकृति दी गई। जिला कमेटी से स्वीकृत 93 लोगों को पट्टा दिया गया। 618 आवेदन ग्रामसभा से जिला कमेटी को भेजे गए हैं। बणई अनुमंडल में 14664 आवेदन दिए गए थे। इनमें से 13,913 को ग्रामसभा तथा 11,159 को जिला कमेटी के द्वारा स्वीकृति दी गई। 2,759 लोग पट्टा पाने की प्रतीक्षा में हैं। 2,759 आवेदन जिला कमेटी के पास लंबित हैं। सुंदरगढ़ जिले के मानचित्र में 223 आदिवासी गांव हैं। इन्हें राजस्व ग्राम की मान्यता प्रदान करने के लिए जिला स्तरीय कमेटी के पास आवेदन दिया गया है। 82 को स्वीकृति मिली पर अधिकार से वंचित रखा गया है।