धराशायी हुआ तो हजारों की जिंदगी लील जाएगा ब्राह्माणी ब्रिज
पांच दशक पुराने इस ब्रिज के बदले में नया ब्रिज बनाने की मंजूरी दो-दो सरकारें दे चुकी हैं। कांग्रेस नीत संप्रग सरकार से मंजूरी मिलने के बाद गेमन इंडिया को काम मिला था।
राउरकेला, जेएनएन। न्याय में देरी को लेकर अंग्रेजी भाषा में एक कहावत है, 'जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड' अर्थात न्याय में विलंब न्याय न मिलने के बराबर है। यह कहावत सुंदरगढ़ जिले की लाइफ लाइन ब्राह्माणी ब्रिज पर भी बखूबी फिट बैठती है। पांच दशक पुराने इस ब्रिज के बदले में नया ब्रिज बनाने की मंजूरी दो-दो सरकारें दे चुकी हैं। कांग्रेस नीत संप्रग सरकार से मंजूरी मिलने के बाद गेमन इंडिया को काम मिला था। लेकिन जमीन अधिग्रहण समेत अन्य समस्याओं के चलते यह कंपनी बोरिया-बिस्तर लपेटकर यहां से रवाना हो गई।
इसके बाद भाजपा नीत राजग सरकार के कार्यकाल में जीकेसी कंपनी को इसका ठेका मिला है। लेकिन दूसरा ब्रिज कब तक तैयार होगा, फिलहाल इसकी कोई गारंटी नजर नहीं आ रही है। तब तक पुराने ब्रिज का मरम्मत कर काम चन रहा है। इसी पर हजारों की ¨जदगी टिकी है।
जगती बुझती रही लोगों के उम्मीद की किरण
पुराने ब्रिज के धीरे-धीरे कमजोर होने की आशंका के मद्देजनर यहां द्वितीय ब्रिज बनाने की मांग जोरशोर से उठती रहती थी। पहली बार कांग्रेस के शासन काल में गेमन इंडिया को ठेका मिलने से सपना पूरा होने की उम्मीद की किरण जगी थी। लेकिन गेमन इंडिया काम छोड़कर चले जाने से वह भी बुझ गई। इसके बाद वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुन: इसके निर्माण की घोषणा कर लोगों की उम्मीदों को और जगा दिया था। हालांकि इसके निर्माण में अत्यधिक विलंब होने से प्रधानमंत्री से लेकर केंद्र सरकार तक यहां के तत्कालीन भाजपा विधायक दिलीप राय के निशाने पर रहे।
दिलीप राय ने बार-बार द्वितीय ब्रिज के निर्माण में विलंब को लेकर अपनी नाराजगी खुलेआम जाहिर की थी। लेकिन कोई सुनवाई न होने से दिलीप राय का ऐसा मोह भंग हुआ कि उन्होंने अपनी विधायकी छोड़ने के साथ-साथ भाजपा से भी नाता तोड़ लिया। राजनीतिक उठापटक का केंद्र बना ब्रिज अब यह द्वितीय ब्रिज कांग्रेस, भाजपा व बीजद के बीच राजनीतिक उठापटक का केंद्र बन गया है।
जिसमें सामूहिक हित का यह काम कैसे जल्द से जल्द पूरा होगा, इस पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय श्रेय लेने की होड़ में राजनीतिक दल एक दूसरे पर कीचड़ उछालने से पीछे नहीं हैं। इसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है जो कि मरम्मत के पैबंद पर टिके पुराने ब्रिज का इस्तेमाल अपनी जान पर खेलकर कर रहे हैं। ऐसे में यहां के जिला प्रशासन से लेकर जन प्रतिनिधियों को समझना होगा कि हादसे किसी का इंतजार नहीं करते।