टूटी मेडल की उम्मीद, घर पोत रहा बोट सेलिंग वीर
सात समंदर लांघने का ख्वाहिशमंद नारायण मुंडा इन दिनों घरों की रंगाई पुताई कर रहा है।
राउरकेला, मुकेश सिन्हा संवाददाता। गरीबी की चादर चीरकर सात समंदर लांघने का ख्वाहिशमंद राउरकेला का नारायण मुंडा इन दिनों लोगों के घरों की दीवारों पर रंगाई पुताई कर रहा है। हालात से लड़कर भले ही उसने देश के लिए पदक जीतने का सपना देखा हो लेकिन आज उसके सुनहरे सपने ताश के पत्तों की तरह ढहते नजर आ रहे हैं। उसके आड़े कोई और नहीं बल्कि सूबे के हुक्मरान आ गए। जो उसे अभ्यास के लिए समंदर में थोड़ी जगह तक मुहैया नहीं करा सके।
नारायण विंड सर्फिंग, स्कूबा डार्इंवग व बोट सैलिंग करता है। बोट सैलिंग का वह नेशनल चैंपियन रह चुका है। गोवा व चेन्नई में हुए राष्ट्रीय स्तर की चैंपियनशिप जीतकर उसके इरादे और मजबूत हो गए हैं। उसके खेल में लगातार निखार आता देख मशहूर स्कूबा डाइवर सबीर बक्स उसे ओलंपिक के लिए तैयार करने लगे।
नारायण को अभ्यास के लिए समंदर में अपना खेल निखारना था जो पश्चिम ओडिशा में संभव नहीं था। लिहाजा सबीर बक्श उसे कोणार्क मरीन ड्राइव ले गए। जहां उसने अभ्यास शुरू किया। लेकिन वहां स्थानीय लोगों ने विरोध कर दिया। प्रशासन ने कार्रवाई भी की लेकिन विरोधियों की संख्या के आगे वह बौना पड़ गया। अंत में नारायण को वापस घर लौट आना पड़ा। अब वह अपने सपनों को भूलकर पेट पालने
के रंगाई पुताई के काम में जुट गया है।
राउरकेला के पानपोष, बालूघाट में वह अपनी मां और भाई के साथ रहता है। इसी इलाके के उसके साथी कान्हु सेठी, सूरज महाली, भारत महाली, राजेंद्र नायर व रज महाली भी इन खेलों में अच्छा प्रदर्शन कर अभ्यास के लिए नारायण के साथ गए थे।
नारायण और साथियों को राज्य सरकार से है काफी उम्मीद
सूबे के मुखिया नवीन पटनायक राज्य में हाकी विश्वकप के आयोजन पर खासी दिलचस्पी ले रहे हैं। इससे नारायण सहित उसके साथियों में उम्मीद जगी है कि उनके लिए भी समंदर किनारे थोड़ी जगह व सुरक्षा मिल जाएगी। जहां अभ्यास कर देश और राज्य के लिए ज्यादा से ज्यादा पदक जीतने का सपना पूरा कर सकेंगे।
अंडर-19 एशियन र्सेंलग चैंपियनशिप और ओलंपिक में भाग ले पाता नारायण
नारायण के कोच अंतरराष्ट्रीय स्कूबा डाइवर सबीर बक्श ने बताया कि नारायण बोट सैलिंग करता है। इसके उपकरण काफी महंगे आते हैं। लेकिन उसकी प्रतिभा को देखते हुए उपकरण दिए थे। उसके लिए और भी व्यवस्था की जा रही थी। हालात का अंदाजा लगाइए कि एक ऐसा खेल जिसके लिए पूरे देश में अंडर-19 का कोई खिलाड़ी नहीं मिला और पुरुष वर्ग से कोई खिलाड़ी प्रतिनिधित्व तक नहीं कर पाया उसका खिलाड़ी नारायण बेकार घूम रहा है। जबकि वह इस स्पर्धा में भाग ले सकता था। अभ्यास जारी रहता तो आज नारायण कहीं और होता। नारायण के साथ-साथ इसका नुकसान देश व राज्य को भी हुआ।
प्रोत्साहन मिला तो लगा दूंगा जान
नारायण ने बताया कि अगर उसे प्रोत्साहन मिलता है तो वह पदक जीतने के लिए जी जान लड़ा देगा। दो साल पहले उसके साथ जो कुछ हुआ उसे वह किसी बुरे सपने की तरह भूलकर दोबारा इस खेल का अभ्यास करना चाहता है। वह ओलंपिक में भाग लेकर पदक जीतना चाहता है। बोट सैलिंग में फ्रांस का दबदबा है भारत भी अपने खिलाड़ियों के जरिये दबदबा कायम कर सकता है केंद्रीय मंत्री से भी मांग चुके हैं मदद नारायण सहित आधा दर्जन युवकों ने अपनी इस समस्या से केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम क अवगत कराया था। उन्हें आश्वास भी मिला लेकिन आगे कोई काम नहीं हुआ। आदिवासी होने के नाते नारायण व उसके साथियों को उम्मीद थी कि उनकी समस्या का समाधान केंद्रीय मंत्री करेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।