वैनायकी वरदं श्रीगणेश चतुर्थी व्रत व पूजन 25 को
प्रत्येक साल वरद गणेश चतुर्थी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है
प्रत्येक साल वरद गणेश चतुर्थी व्रत भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। इसी दिन विघ्न विनाशक गणेशजी का जन्म मध्याह्न काल में हुआ था। धर्म शास्त्रीय मान्यता के अनुसार इस दिन श्रद्धा भक्ति के साथ गणनायक गणेशजी के विधिवतं व्रत एवं पूजन से सभी तरह की विघ्न बाधाओं के शमन के साथ विद्या, बुद्घि, धन वैभव, सफलता, कार्य सिद्धि एवं मनोभिलषित फल की प्राप्ति होती है। वैसे तो गणेश चतुर्थी का व्रत व पूजन व पर्व पूरे भारतवर्ष के मनाया जाता है परंतु महाराष्ट्र में मुख्य रूप से गणेश चतुर्थी का त्यौहार बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। भाद्र शुक्ल की गणेश चतुर्थी को चंद्रमा का दर्शन करना शास्त्र में निषिद्ध किया गया है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन चंद्र दर्शन से व्यर्थ का कलंक या झूठा आरोप लगता है। इस दिन चंद्र दर्शन से भगवान श्रीकृष्ण पर भी स्मयंतक मणि की चोरी का झूठा आरोप लगा था। उस झूठे कलंक से मुक्ति हेतु भगवान श्रीकृष्ण को भी विशेष प्रयास करना पड़ा था। यदि भूलवश या गलती से इस दिन चंद्र दर्शन हो जाए तो स्मयंतक मणि की कथा या गणेश चतुर्थी की कथा सुनने से दोष का शमन हो जाता है, ऐसा वर्णित है। गणेशजी के 12 नाम का तीन बार पाठ करने से भी दोष मुक्ति संभव है।
इस बार वैनायकी वरदं श्रीगणेश चतुर्थी 25 अगस्त शुक्रवार को मनाई जाएगी। शुक्रवार को चतुर्थी तिथि रात्रि 9:23 बजे तक, हस्त नक्षत्र अपराह्न 4:37 बजे तक एवं शुभ योग रात्रि 2:20 बजे तक रहेगा। इस प्रकार गणनायक विघ्न विनाशक श्रीगणेश जी की पूजा शुक्रवार को हस्त नक्षत्र व शुभ योग के उत्तम संयोग में सम्पन्न होगी। गणेशजी को दूब अति प्रिय है, अत: पूजन में दूब अवश्य अर्पण करें। गणपति श्रीगणेशजी सभी पर अपनी विशेष कृपा बनाए रखें।
।। शुभमस्तु।।
-पं. रमा शंकर तिवारी