स्कूटर से मां को तीर्थ करा रहा आज का श्रवण कुमार
किसी जमाने में श्रवण कुमार ने अपने दृष्टिहीन एवं वृद्ध माता-पिता
जागरण संवाददाता, राउरकेला : किसी जमाने में श्रवण कुमार ने अपने दृष्टिहीन एवं वृद्ध माता-पिता को कांवर में बैठाकर तीर्थयात्रा कराई थी। आज भी तमाम ऐसी संतानें हैं जो अपने माता-पिता को विभिन्न साधनों से तीर्थ कराते रहते हैं। ऐसे ही सुपुत्रों में मैसूर के 40 वर्षीय कंप्यूटर इंजीनियर डी कृष्णा भी शामिल हैं। जिन्होंने कांवर तो नहीं पर अपने पिता की 20 साल पुरानी स्कूटर से अपनी वृद्ध मां चूड़ा रत्ना को लेकर देश भ्रमण कराने तथा विभिन्न तीर्थ स्थल का दर्शन कराने का संकल्प लिया है। इसके लिए उन्होंने कंप्यूटर इंजीनियर की नौकरी से इस्तीफा भी दे दिया। उन्होंने 16 जनवरी 2018 को अपनी यह यात्रा शुरू की है और 36,872 किलोमीटर की यात्रा पूरी कर सोमवार को वेदव्यास त्रिवेणी संगम पर पहुंचे। यहां उन्होंने मां के साथ महर्षि वेदव्यास की गुफा का दर्शन किया एवं पूजा अर्चना की। वह दो दिन राउरकेला में रहकर विभिन्न दर्शनीय स्थानों का भ्रमण करेंगे।
कृष्ण बताते हैं कि हम तीन भाई-बहन हैं। मेरे अलावा दो बहनें भी हैं। मेरी मां परिवार के लिए दिन-रात मेहनत करती रहती थी। घर से बाहर निकलने का समय नहीं मिलता। वह मैसूर शहर से कभी बाहर ही नहीं निकली थीं। 2006 में मैंने बेंगलुरु के एक कार्पोरेट हाउस में कंप्यूटर इंजीनियर के रूप में नौकरी शुरू की। दोनों बहनों की शादी और चार साल पहले पिता की मौत के बाद मां घर में अकेली पड़ी दुखी रहने लगी। 2015 में मां को बेंगलुरु ले आया। वहां से माता को कर्नाटक के चिन्नाकेशव विष्णु मंदिर का दर्शन कराया। तब मां ने भारत भ्रमण एवं चार धाम की यात्रा करने की इच्छा जताई। पहली बार अप्रैल 2016 में मां को बेंगलुरु से कश्मीर की यात्रा कराई थी। अपनी यात्रा में चित्रकूट, प्रयाग, काशी, अयोध्या, आगरा, मथुरा, हस्तिनापुर, हृषिकेश, हरिद्वार, कुरुक्षेत्र, लुधियाना, अमृतसर, कश्मीर, सोनमर्ग, गुलमर्ग, बाघा बार्डर, जयपुर, अजमेर, पुष्कर व उज्जैन आदि का दर्शन कराया। 38 दिन की यात्रा पूरी कर बेंगलुरु लौट गए। इसके बाद 14 जनवरी 2018 को अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। 16 जनवरी 2018 को पिता की पुरानी स्कूटर में आवश्यक सामान लाद कर तीर्थयात्रा के लिए निकल पड़े। बेंगलुरु से केरल, तमिलनाडु, कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, महाराष्ट्र, गोवा, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ होते हुए ओडिशा पहुंचे। यहां हरिशंकर, नृसिंहनाथ, समलेश्वरी मंदिर, हीरकुद का दर्शन करने बाद सुंदरगढ़ होकर सोमवार की सुबह राउरकेला पहुंचे। राउरकेला में दो दिन के प्रवास के बाद झारखंड, पश्चिमबंगाल के विभिन्न क्षेत्रों से होते हुए दार्जिलिग पहुंचेंगे।
नहीं मांगा किसी से सहयोग :
उन्होंने बताया कि यात्रा के लिए किसी से सहयोग नहीं मांगा है। 13 साल की नौकरी से जमा राशि मां के एकाउंट में जमा कर दिया है। इससे मिलने वाली सूद की राशि से भ्रमण का खर्च निकल जाता है। 70 साल की मां को केवल मंदिर ही नहीं बल्कि विभिन्न पर्यटन स्थलों का भी दर्शन करा रहे हैं।