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Jagannath Rath Yatra 2019: महोत्सव में आएंगे दो लाख श्रद्धालु, जानें- 20 अहम बातें

Jagannath Rath Yatra 2019 मान्यता है कि पवित्र रथ को खींचने वाले को 100 यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है। जानें- पवित्र रथ यात्रा से जुड़ी 20 प्रमुख मान्यताएं और वजहें।

By Amit SinghEdited By: Published: Thu, 04 Jul 2019 01:06 PM (IST)Updated: Thu, 04 Jul 2019 01:29 PM (IST)
Jagannath Rath Yatra 2019: महोत्सव में आएंगे दो लाख श्रद्धालु, जानें- 20 अहम बातें
Jagannath Rath Yatra 2019: महोत्सव में आएंगे दो लाख श्रद्धालु, जानें- 20 अहम बातें

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भगवान जगन्नाथ की मशहूर रथयात्रा आज (04 जुलाई 2019) से बड़े धूमधाम से शुरू हो चुकी है। अगले 10 दिन तक ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा। इस बार महोत्सव में दो लाख से ज्यादा श्रद्धालुओं के पहुंचने की उम्मीद है, जो पिछले साल के मुकाबले 30 फीसद ज्यादा होंगे। महोत्सव के दौरान भगवान के रथ को खींचने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु यहां जुटते हैं। आइये जानते हैं क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा और महोत्सव की खासियत से जुड़ी 10 प्रमुख बातें...

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भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा से जुड़ी मान्यताएं

1. इस महोत्सव के दौरान भगवान जगन्नाथ को रथ पर बैठाकर पूरे नगर में घुमाया जाता है।

2. भगवान जगन्नाथ को विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है, जो श्रीकृष्ण को समर्पित है।

3. ब्रह्म और स्कंद पुराण में मान्यता है कि पुरी में भगवान विष्णु पुरुषोत्तम नीलमाधव के रूप में अवतरित हुए और सबर जनजाति के देवता बने।

4. पहले कबीलाई लोग अपने देवताओं की मूर्ति लकड़ी से बनाते थे। सबर जनजाति का देवता होने की वजह से भगवान जगन्नाथ की मूर्ति को भी कबीलाई देवताओं का रूप दिया गया है।

5. मान्यता है कि लक्ष्मीपति विष्णु ने यहां तरह-तरह की लीलाएं भी की थीं।

6. पुरी को पुराणों में धरती के बैकुंठ का दर्जा दिया गया है और यह विष्णु भगवान के चार धाम में से एक है।

7. श्री जगन्नाथ पुरी को श्रीक्षेत्र, श्रीपुरुषोत्तम क्षेत्र, शाक क्षेत्र, नीलांचल और नीलगिरी के नाम से भी जाना जाता है।

8. ज्येष्ठ पूर्णिमा से आषाढ़ पूर्णिमा तक सबर जनजाति के लोग भगवान जगन्नाथ की पूजा बड़े धूमधाम से करते हैं। इसीलिए रथ यात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से शुरू होकर दशमी तिथि तक चलती है।

9. मान्यता है कि भगवान ब्रह्मा का एक सिर महादेव की हथेली से चिपक गया था और पुरी में ही गिरा था। तब से यहां पर महादेव की ब्रह्म रूप में पूजा होती है।

10. स्कंद पुराण में बताया गया है कि पुरी एक दक्षिणवर्ती शंख की तरह है, जो 16 किलोमीटर में फैली हुई है। इसका बहुत बड़ा हिस्सा बंगाल की खाड़ी में समा चुका है। माना जाता है कि इसकी सभी दिशाओं में देवताओं का वास है।

क्यों निकाली जाती है रथ यात्रा

1. मान्यता है कि एक दिन भगवान जगन्नाथ की बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा व्यक्त की थी। इस पर भगवान जगन्नाथ ने बहन को रथ में बैठाकर पूरे नगर का भ्रमण कराया था। इसी उपलक्ष्य में पुरी में हर साल भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा निकाल पूरे नगर का भ्रमण कराया जाता है।

2. रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ के साथ उनके भाई बलराम और बहन सुभद्रा की प्रतिमाएं रखी जाती हैं। इसके बाद रथ यात्रा के जरिए पूरे नगर का भ्रमण कराया जाता है।

3. यात्रा में प्रयोग होने वाले तीनों रथ लकड़ी के बने होते हैं, जिन्हें श्रद्धालुओं द्वारा रस्से से खींचकर पूरे नगर का भ्रमण कराया जाता है। भगवान जगन्नाथ के रथ में 16, उनके भाई बलराम के रथ में 14 और बहन सुभद्रा के रथ में 12 विशालकाय पहिये लगे होते हैं।

4. रथ यात्रा को इतना महत्व इसलिए भी दिया जाता है, क्योंकि इसका जिक्र स्कंद पुराण, नारद पुराण, पद्म पुराण, ब्रह्म पुराण में भी किया गया है।

5. माना जाता है कि रथ खींचने वाले को 100 यज्ञ के बराबर पुण्य मिलता है।

6. रथ यात्रा को भगवान जगन्नाथ मंदिर से निकालकर प्रसिद्ध गुंडिचा माता मंदिर ले जाया जाता है। बताया जाता है कि माता गुंडिचा भगवान जगन्नाथ की मौसी है। वहां भगवान जगन्नाथ, भाई बलराम और बहन सुभद्रा यहां एक सप्ताह आराम करते हैं।

7. वैसे तो भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा को मुख्य माना जाता है, लेकिन आप इस रथ को खींचने वालों में शामिल नहीं हो सकते तो तीनों में से किसी भी रथ यात्रा में भाग ले सकते हैं।

8. रथ यात्रा में सबसे आगे बलराम, उसके पीछे माता सुभद्रा और सबसे पीछे भगवान जगन्नाथ का रथ होता है।

9. पुरी के अलावा गुजरात में भी भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा का आयोजन होता है। गुजरात में भगवान जगन्नाथ की 142वीं वार्षिक रथ यात्रा आयोजित की जा रही है। गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी और उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल ने परंपरा अनुसार भगवान जगन्नाथ के रथ के आगे झाडू लगाकर रथ यात्रा को रवाना किया।

10. रथ यात्रा की तैयारी हर साल बसंतपंचमी से शुरू हो जाती है। रथ के लिए नीम की लकड़ी का इस्तेमाल किया जाता है और इसमें किसी तरह की धातु का प्रयोग नहीं होता है। रथ की लकड़ी के लिए स्वस्थ और शुभ पेड़ को चुना जाता है।


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