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महाप्रभु का 108 कलश जल से स्नान

By Edited By: Published: Mon, 24 Jun 2013 08:43 PM (IST)Updated: Mon, 24 Jun 2013 08:48 PM (IST)
महाप्रभु का 108 कलश जल से स्नान

जागरण संवाददाता, पुरी : ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा पर पवित्र स्नान करते महाप्रभु को दर्शन करने की लालसा लेकर श्री जगन्नाथ धाम पुरी पहुंचे लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का सैलाब हिलोर मार रहा है। इस दौरान श्रद्धालुओं को नियंत्रित करने व सुरक्षा के लिए प्रशासन की तरफ से पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। साल भर मंत्र स्नान करने वाले श्री जगन्नाथ सहित चतुर्धामूर्ति को रविवार को 108 कलश के जल से स्नान कराया गया।

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महाप्रभु के स्नान यात्रा अनुष्ठान और चतुर्धामूर्ति को गजवेश में देखने के लिए दूर-दूर से पहुंचे भक्तों की रविवार को अभिलाषा पूरी हुई। मंदिर प्रशासन व दईतापति सेवायतों ने स्नान यात्रा को शांतिपूर्ण संपन्न कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। रथयात्रा से पहले महाप्रभु की स्नान यात्रा वह अवसर है, जब भगवान भक्तों के मध्य पधारते हैं। वर्ष भर भक्त भगवान को देखने मंदिर के अंदर जाते हैं, मगर स्नान यात्रा, रथ यात्रा तथा बहुड़ा यात्रा में भगवान भक्तों से मिलने स्वयं बाहर निकलते हैं। मंदिर परिसर में स्थित स्वर्ण कूप से 108 कलशों में जल भरकर स्नान मंडप में भगवान को स्नान कराया जाता है। स्वर्ण कूप को स्थानीय भाषा में सुना कुंआ कहा जाता है। इसका जल साल भर किसी और उपयोग में नहींलाया जाता। केवल स्नान पूर्णिमा के दिन गराबड़ु सेवकों द्वारा सुना कुंआ से 108 कलश जल स्नान वेदी पर लाया जाता है। कपूर, केशर व चंदन आदि डाल कर षोड़षोउपचार एवं पंचोपचार पद्धति से जल को अभिमंत्रित कर महाप्रभु को स्नान किया जाता है। श्री जगन्नाथ को 35 कलश, बलदेव जी को 33 कलश देवी सुभद्रा को 22 व सुदर्शन जी को 18 कलश सुभाषित जल से स्नान कराने की विधि वर्णित है। महाप्रभु के वंशज कहे जाने वाले दइतापति सेवक इस कार्य को संपादित करते हैं।

पौराणिक मान्यता के अनुसार ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को भगवान श्री जगन्नाथ का अवतरण दिवस माना जाता है। आज के ही दिन गुण्डिचा मंदिर की महावेदी में भगवान का आर्विभाव हुआ था। इस लिहाज से भी स्नान यात्रा का, श्री जगन्नाथ जी के प्रमुख पर्व में शुमार है। स्नान के बाद भगवान को गजवेश में सजाया जाता है। इस मनोहारी वेश के लिए राघव दास मठ एवं गोपाल तीर्थ मठ द्वारा हाथी का मुखौटा बनाया जाता है। पौराणिक मत के अनुसार महाराष्ट्र के भक्त गणपति भट्ट ने भगवान की दारु मूर्ति दर्शन से तृप्त न होकर अपने आराध्य गजपति का वेश देखने की इच्छा जाहिर की थी। तब भक्त वत्सल भगवान ने गजपति वेश में उन्हें दर्शन दिया था। तब से स्नान पूर्णिमा के बाद भगवान का गज वेश सजाया जाता है। यह अत्यंत मनोहारी होता है।

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