रथयात्रा के लिए तीनों रथों के लकड़ी चिराई की प्रक्रिया शुरू
रामनवमी से हुआ रथयात्रा के लिए रथों के लकड़ी चिराई की प्रक्रिया का शुभारंभ
रथयात्रा के लिए तीनों रथों के लकड़ी चिराई की प्रक्रिया शुरू
पुरी जगन्नाथ मंदिर से माला, महाप्रसाद लेकर छह सदस्यीय टीम पहुंचे कटक शा मिल कारखाना
=आरा मशीन पर माला एवं महाप्रसाद चढ़ाए जाने के बाद शुरू की गई है लकड़ी चिराई की प्रक्रिया
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जागरण संवाददाता, भुवनेश्वर : नगर समेत पूरे प्रदेश में रविवार को धूमधाम के साथ रामनवमी उत्सव मनाया गया। पवित्र रामनवमी के अवसर पर विश्व प्रसिद्ध महाप्रभु की रथयात्रा के लिए बनाए जाने वाले तीनों रथों की लकड़ी के चिराई कार्य का भी शुभारंभ किया गया है। इसके लिए पुरी जगन्नाथ मंदिर से माला, महाप्रसाद को लेकर छह सदस्यीय टीम कटक पहुंची है। कटक के खफुरिया स्थित शा मिल (आरा मशीन) में पवित्र रामनवमी तिथि में माला एवं महाप्रसाद चढ़ाए जाने के बाद रथ लकड़ी के चिराई कार्य का शुभारंभ किया गया है। सुदर्शन मेकाअप के नेतृत्व में यह टीम कटक पहुंचकर रथ लकड़ी की चिराई प्रक्रिया के लिए पूजा अर्चना किया है। पहले चरण में तीन लकड़ी पर पुरी जगन्नाथ मंदिर से लाए गए माला एवं महाप्रसाद को चढ़ाया गया। इसके बाद लकड़ी चिराई की प्रक्रिया शुरू की गई है। उल्लेखनीय कि सरस्वती पूजा के दिन रथ की लकड़ी का पूजन किया गया था। अक्षय तृतीया के अवसर पर तीनों रथों के निर्माण करने की प्रक्रिया शुरू होगी।
गौरतलब है कि पिछले दो साल से पुरी जगन्नाथ धाम में महाप्रभु जगन्नाथ जी की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा बिना भक्तों के ही संपन्न हो रही है। मंदिर के सेवक एवं पुलिस प्रशासन की मदद से रथ खींचने की विधि संपन्न की जा रही थी। हालांकि इस साल कोरोना महामारी का प्रकोप कम होने के बाद उम्मीद की जा रही है कि इस बार की रथयात्रा में भक्तों को रथ खींचने का अवसर मिलेगा। फिलहाल रथयात्रा के लिए तीनों रथों की लकड़ी के चिराई की प्रक्रिया रविवार से शुरू हुई है और अक्षय तृतीया के दिन से रथ निर्माण की प्रक्रिया शुरू होगी।
जगन्नाथ रथ यात्रा हर साल आषाढ़ के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को प्रारंभ होती है।
कई चरणों में पूरे होता है रथ-निर्माण का कार्य रथयात्रा उत्सव के कई चरण होते हैं। रथ निर्माण का कार्य अक्षय तृतीया के दिन प्रारंभ होता है जो 58 दिनों तक चलता है। इसको परंपरागत कारीगर ही बनाते हैं जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसे करते चले आए हैं। इसके लिये 45, 44 व 43 फीट ऊंचे तीन रथ तैयार किए जाते हैं।
जगन्नाथ जी का रथ नंदी घोष 16 पहियों का, बलभद्र जी का रथ तालध्वज 14 और सुभद्रा का रथ देवदलन 12 पहियों का बनाया जाता है। रथों को सजाने के लिए लगभग 1090 मीटर कपड़ा लगता है।