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यहां आज भी सपना बन रह गया है पिया घर कार से जाना

आजादी के 71 साल बीत जाने के बावजूद आज भी इस गांव में चार चक्का वाहन आने-जाने के सड़क नहीं है।

By BabitaEdited By: Published: Fri, 09 Mar 2018 12:50 PM (IST)Updated: Fri, 09 Mar 2018 01:11 PM (IST)
यहां आज भी सपना बन रह गया है पिया घर कार से जाना
यहां आज भी सपना बन रह गया है पिया घर कार से जाना

झारसुगुड़ा, भुवनकिशोर तिवारी। केंद्र व राज्य सरकार भले ही अंतिम पायदान पर बैठे व्यक्ति तकसमग्र विकास पहुंचने का दावा करती हो लेकिन सच तो यह है कि आज भी राज्य में कई ऐसे क्षेत्र मौजूद हैं जहां के लोग मूलभूत सुविधा, बिजली, पानी, सड़क, चिकित्सा आदि के लिए जूझ रहे हैं। इन क्षेत्रों में कुछ गांव-कस्बे तो ऐसे हैं जहां आवागमन के लिए अदद एक सड़क तक नहीं है और तमाम बेटियों का पिया घर कार से जाने का सपना चकनाचूर हो रहा है। 

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ऐसा ही एक गांव है, झारसुगुड़ा जिले के जमेरा पंचायत का कृष्णपतरा गांव। आजादी के 71 साल बीत जाने के बावजूद आज भी इस गांव में चार चक्का वाहन आने-जाने के सड़क नहीं है। आदिवासी गोंड समुदाय के 25 परिवारों वाला यह गांव दक्षिण-पूर्ण दिशा में हावड़ा-मुंबई रेलपथ, उत्तर में हीराकुद जल भंडार व दक्षिण में हर ओर पहाड़ से घिरा है। गांव के लोगों को अगर ब्लाक मुख्यालय, झारसुगुड़ा व ब्रजराजनगर किसी काम से जाना पड़ता है तो उन्हें रेलवे लाइन का किनारा पकड़ हीराकुद जल भंडार व ईब नदी को नाव से पार करना पड़ता है।

 

गांव से बहुत ऊंचे में स्थित रेल लाइन के कारण लोगों को पैदल या फिर साइकिल से आना-जाना पड़ता है। और तो और गांव में प्राथमिक स्कूल या आंगनबाड़ी केंद्र तक नहीं है। गांव के बच्चे जो छह वर्ष के हैं वह पढ़ाई के लिए ईब गांव जाने के लिए रेललाइन के किनारे गिट्टी पत्थर भरे रास्ते से होकर स्कूल या आंगनबाड़ी केंद्र जाते हैं। वहीं, छह वर्ष से अधिक उम्र के बच्चों को जमेरा उच्च प्राथमिक एवं हाईस्कूल में पढऩे जाना काफी तकलीफदायक है। दुर्गम रास्तों से होकर बच्चे जाने को मजबूर है। इस बारे में ग्रामीण वर्षों से बार-बार गांव तक एक सड़क निर्माण की मांग कर रहे हैं मगर कोई भी प्रशासनिक अधिकारी व नेता इस ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं। 


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