झारसुगुड़ा को नहीं मिला बस स्टैंड
झारसुगुड़ा में नया बस स्टैंड बनाने के लिए दस करोड़ रुपये की रा
संवाद सूत्र, झारसुगुड़ा: झारसुगुड़ा में नया बस स्टैंड बनाने के लिए दस करोड़ रुपये की राशि खर्च करने के बावजूद यह अभी तक अधूरा पड़ा है। खासकर बस स्टैंड के निर्माण का श्रेय लेने की राजनीतिक होड़ के कारण इसका काम अधर में लटक गया। नतीजतन शहर अस्थाई बस स्टैंड पर निर्भर है। यह ऐसा शहर है जहां एयरपोर्ट से नियमित उड़ान भरी जा रही है। वहां एक अच्छा बस स्टैंड तक नहीं है। अब जनप्रतिनिधि व हुक्मरान फिर से शिगूफा दे रही हैं कि चुनाव के बाद बस स्टैंड के निर्माण कार्य में तेजी आएगी। लेकिन कब तक बनकर तैयार होगा, इस पर कोई कुछ नहीं कहता।
नए बस स्टैंड को लेकर होता रहा फंड का ट्रांसफर: झारसुगुड़ा में एलएंडटी बाइपास में नया बस स्टैंड बनाने को लेकर ताम-झाम के साथ शिलान्यास किया गया था। लेकिन चार साल बीत जाने के बाद भी इसका काम तो पूरा नहीं हुआ। बस स्टैंड के निर्माण के लिए एक दूसरी कंपनियों में फंड का ट्रांसफर होने तक ही इसका काम सीमित रहा। वेदांत ने इसका काम शुरू किया था। जिसके बाद यह काम कांनकस्ट को ट्रांसफर हुआ अब यह काम एमसीएल करा रही है। लेकिन अभी तक इसका काम पूरा नहीं हो पाया है।
आरटीआइ आवेदन से हुआ था फंड का खुलासा: नया बस स्टैंड का निर्माण का निर्णय लेने के बाद इसका काम वेदांत अपने सीएसआर फंड से दो करोड़ रुपये खर्च कर कर रही थी। वेदांत को यह भी कहा गया था कि डिस्ट्रिक्ट मिनेरल फंड से रुपया उपलब्ध कराया जाएगा। लेकिन दो करोड़ रुपये खर्च करने के बाद वेदांत ने इसके निर्माण से हाथ खींच लिया। जिसके बाद मिनरल फंड से बगैर किसी अनुमोदन के आठ करोड़ रुपये कोनकास्ट कंपनी को दिया गया था इसका निर्माण करने के लिए। लेकिन कोनकास्ट ने इस राशि में से अपना कमीशन काटकर काम बालाजी इंजीकोन को दे दिया। कंपनी ने काम भी शुरू किया, लेकिन चार साल बाद भी यह अधूरा पड़ा है। धन की कमी का हवाला देकर और रकम मांगी गयी। जिसके बाद अधिवक्ता राममोहन राव ने आरटीआइ के तहत सूचना मांगकर इस खेल का खुलासा किया। कैसे यहां फंड का ट्रांसफर होता रहा और बगैर टेंडर का काम दिया गया।
एक्सपर्ट की राय
आरटीआइ में मिली जानकारी से पता चला कि बस स्टैंड के निर्माण में नीति-नियमों का ध्यान नहीं रखा गया। न तो टेंडर किया गया और ही इसका काम पूरा करने को लेकर ध्यान दिया गया। जिस कारण यह बस स्टैंड चार साल के बाद भी नहीं बन पाया है। हुक्मरानों ने इस तरफ झांकने तक की कोशिश नहीं की। स्थानीय प्रशासन की अदूरदशिर्ता इसके लिए जिम्मेदार है।
- राममोहन राव, अधिवक्ता व आरटीआइ कार्यकर्ता।