श्रीमंदिर पर बढ़ा आसमानी बिजली का खतरा, भारतीय पुरातत्व विभाग पर लगा ये आरोप
श्रीमंदिर के रखरखाव को लेकर फिर विवाद छिड़ गया है भारतीय पुरातत्व विभाग पर पहले की तरह अर्थिंग न लगाये जाने का आरोप लगाया जा रहा है।
भुवनेश्वर, जागरण संवाददाता। श्रीमंदिर के मरम्मत एवं रखाव को लेकर एएसआई (भारतीय पुरातत्व विभाग) के लिए विवाद कोई नई बात नहीं है। अब एक बार फिर रत्न सिंहासन के पत्थर बदलने को लेकर विवाद छिड़ गया है। यह विवाद एएसआइ एवं श्रीमंदिर प्रशासन को परेशान कर रहा है। 30 साल पहले श्रीमंदिर से बदले गए श्रीमंदिर के नीलचक्र के विरल धातु की अर्थिंग का तार अब कहां है, उसे लेकर सवाल उठने लगे हैं। 2003-04 में नीलचक्र से एक अंश को काटकर लेने का आरोप हुआ था। काटा गया आधा अंच का नीलचक्र का अंश अब किसके पास, वह अभी तक प्रमाणित नहीं हो सका है। यह बात जानने के बावजूद अति संवेदनशील इस मामले को क्यों दबा दिया गया, अधिक जांच क्यों नहीं की गई, उसे लेकर वरिष्ठ चुनरा सेवक शरत चन्द्र महांति ने सवाल किया है।
आरोप के मुताबिक श्रीमंदिर में वर्तमान समय में कमजोर अर्थिंग लगी है। परिणाम स्वरूप श्रीमंदिर पहले की तरह अब आसमानी बिजली को नहीं संभाल पा रहा है। आसमानी बिजली गिरने पर नीलचक्र की पताका जल जाती है। भारतीय पुरातत्व विभाग ने जो नई अर्थिंग लगायी है वह पहले की तरह काम नहीं करने का आरोप लग रहा है। वरिष्ठ चुनरा सेवकों के मुताबिक 30 साल पहले उन्होंने जो अर्थिंग देखी थी उसे बदल दिया गया है। उस अर्थिंग का तार अधिक वजन वाला था। वह तार बिरल धातु से तैयार हुआ था। वह नीले रंग का था। नीलचक्र से श्रीमंदिर की दीवार में यह मां विमला के मंदिर के कुएं तक गया था। सैकड़ों साल से यह अर्थिंग श्रीमंदिर को आसमानी बिजली से रक्षा करने का काम कर रही थी। मगर श्रीमंदिर का चुनरा हटाते समय इसे बदल दिया गया है।
इसके बदले एक पतला तार तथा कमजोर तांबे की अर्थिंग लगाई गई है। इससे बार-बार श्रीमंदिर पर खतरा बना रहता है। पुराना अर्थिंग का तार अब किसी के पास नहीं है। इसे ऊंची कीमत में बेच दिए जाने का आरोप श्रीजगन्नाथ सेना के आवाहक प्रियदर्शन पटनायक ने लगाया है। यदि कोई रखा है तुरन्त पत्रकार सम्मेलन कर उस तार को दिखाया जाए। उसी तरह से चुनरा महांति ने कहा है कि 2003-04 में नीलचक्र का एक अंश काटा गया था। इसे लेकर हमने पहले ही शिकायत की थी। इसे लेकर उस समय हो हल्ला भी हुआ था। तत्कालीन श्रीमंदिर प्रशासक राजेन्द्र महांती खुद धोती पहनकर नीलचक्र के पास गए थे। नीलचक्र से आधा इंच काटे जाने की बात वह स्वीकार किए थे। इसे लेकर राज्य भर में हो हल्ला हुआ था। मगर समय के हिसाब से यह मामला भी दब गया। अब तक इस मामले को प्रमाणित क्यों नहीं किया गया। यह कटा हुआ अंश कहां है वह किसी को पता नहीं चल पाया।