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Odisha: जाने-माने साहित्यकार डॉ हुसैन रवि गांधी का निधन, कटक स्थित निज आवास पर ही ली आखिरी सांस

Odisha ओड़ीसा साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष व जाने-माने साहित्यकार डॉ हुसैन रवि गांधी का शनिवार को निधन हो गया है। कटक दरगाह बाजार में मौजूद निज आवास पर ही उन्होंने अंतिम सांस ली है। उनका 74 साल की उम्र पर देहांत हुआ।

By Jagran NewsEdited By: Yashodhan SharmaPublished: Sat, 28 Jan 2023 04:24 PM (IST)Updated: Sat, 28 Jan 2023 04:24 PM (IST)
Odisha: जाने-माने साहित्यकार डॉ हुसैन रवि गांधी का निधन, कटक स्थित निज आवास पर ही ली आखिरी सांस
ओड़ीसा साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष व जाने-माने साहित्यकार डॉ हुसैन रवि गांधी का शनिवार को निधन हो गया है।

कटक, जागरण संवाददाता। ओड़ीसा साहित्य अकादमी के पूर्व अध्यक्ष व जाने-माने साहित्यकार डॉ हुसैन रवि गांधी का शनिवार को निधन हो गया है। कटक दरगाह बाजार में मौजूद निज आवास पर ही उन्होंने अंतिम सांस ली है। उनका 74 साल की उम्र पर देहांत हुआ। उनके निधन के बारे में खबर फैलने के पश्चात उनके आवास पर कई जाने-माने साहित्यकार व गणमान्य व्यक्ति पहुंचकर उनका अंतिम दर्शन करने के साथ-साथ श्रद्धांजलि अर्पण किया है।

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पिछले कुछ महीने से वह बुढ़ापे की समस्याओं से जूझ रहे थे। उनका कटक बड़ा मेडिकल में इलाज चल रहा था। हाल ही में उनके स्वास्थ्य व्यवस्था में सुधार आया था। लेकिन शुक्रवार को अचानक उनकी हालत बिगड़ने हेतु उन्हे वेंटिलेटर में रखकर इलाज किया जा रहा था। विदित है कि, वर्ष 2008 से वर्ष 2010 तक ओडिशा साहित्य अकादमी के अध्यक्ष के तौर पर उन्होंने कार्य किया था।

ताराकोट के आखिरी शासक के पोते थे डॉ हुसैन

डॉ हुसैन रवि गांधी 23 अप्रैल वर्ष 1948 को जाजपुर जिला हल्दीगढ़िया गांव के मुक्ति बाग में ताराकोट के शासक परिवार में पैदा हुए थे। वह मोहम्मद मोजाम्मिल हुसैन के बड़े बेटे थे एवं ताराकोट राज्य के आखिरी शासक तबीर उद्दीन मोहम्मद खान बहादुर के पोते थे।

फिल्म निर्देशक व लेखक महबूब हुसैन उनके छोटे भाई हैं। उन्होंने कुल 13 पुस्तकों की रचना की हैं। मुक्त पूर्वासा, सिंहासन भांगिबार कार्यक्रम एवं आजिर गल्प, गल्प संभार आदि किताबें पाठकों को खूब पसंद आईं। छात्र जिंदगी से ही हुसैन रवि गांधी राजनीति में सक्रिय थे। वह संबलपुर के गंगाधर महाविद्यालय में अध्यक्ष चुने गए थे।

1985 में रखा चुनावी मैदान में कदम

वर्ष 1985 विधानसभा चुनाव में भी उन्होंने अपनी किस्मत आजमाई जहां वह कोरई चुनाव क्षेत्र से जागृत ओड़ीसा के उम्मीदवार के तौर पर चुनावी मैदान में उतरे लेकिन यहां हार का सामना करना पड़ा। उसके बाद वह 1988 में वह जनता दल में शामिल हुए। उन्हें दल के महासचिव के तौर पर नियुक्त किया गया था। वर्ष 1998 में बीजू जनता दल स्थापना होने के दिन से ही बीजद में जुड़े थे और 2005 तक वह विजद के महासचिव के तौर पर कार्य किए थे।


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