रसगुल्ला हाथ से निकला तो हल्दी जकडऩे जागी सरकार
कंधमाल जिले की 50 फीसद आबादी की जीविका हल्दी पर ही निर्भर है। हालांकि समुचित बाजार नहीं मिलने से उन्हें अपेक्षित मुनाफा नहीं मिल पाता है।
भुवनेश्वर, नारायण दास। रसगुल्ले की भौगोलिक पहचान, (जीआइ) लड़ाई में पीछे रह जाने के
बाद अब राज्य सरकार की आंख खुली है। राज्य सरकार ने कंधमाल में पैदा होने वाली हल्दी के लिए जीआइ मान्यता हासिल करने को कमर कसनी शुरू कर दी है। राज्य के महिला एवं शिशु विकास, सामाजिक सुरक्षा एवं भिन्नक्षम विभाग (एमएसएमई) मंत्री प्रफुल्ल सामल ने जोर देकर कहा कि कंधमाल हल्दी के लिए जीआइ मान्यता के लिए तैयारी की जा रही है।
उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल को रसगुल्ले पर जो मान्यता मिली है उसका ओडिशा से कोई लेना-देना नहीं है। हमारे यहां पिछले 16वीं सदी से भगवान जगन्नाथ को रसगुल्ले का भोग लगता है। मंत्री सामल ने कहा कि रसगुल्ले को लेकर हम मांग प्रस्तुत करने वाले हैं। उन्होंने कहा कि कंधमाल की हल्दी हमारी स्वतंत्रता की प्रतीक है इसके लिए किसी तरह के कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है और यह गुणवत्ता के आधार पर बहुत आगे है। हल्दी के साथ रसगुल्ले को जीआइ मान्यता दिलाने के लिए भी प्रयास चल रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि कंधमाल जिले की 50 फीसद आबादी की जीविका हल्दी पर ही निर्भर है। हालांकि समुचित बाजार नहीं मिलने से उन्हें अपेक्षित मुनाफा नहीं मिल पाता है। गौरतलब है कि चंद दिनों पहले पश्चिम बंगाल के रसगुल्ले को जीआइ मान्यता मिलने के बाद राज्य सरकार की तीखी आलोचना हुई थी कि सरकार की उदासीनता के कारण बंगाल ने यह लड़ाई जीत ली। अब इससे सीख लेते हुए कंधमाल की हल्दी को जीआइ मान्यता दिलाने के लिए सरकार ने आवश्यक तथ्य जुटाने आरंभ कर दिए हैं।
हल्का लाल रंग लिए कंधमाल हल्दी की सुगंध है विशेष
स्थानीय लोग ही नहीं शासन तंत्र भी कंधमाल हल्दी को स्वतंत्रता का प्रतीक यानी अपनी उपज मानता है। विशेषज्ञों के मुताबिक हल्का लाल रंग लिए कंधमाल की हल्दी गुणवत्ता के मामले में बहुत आगे है। इसका औषधीय उपयोग करने पर किसी तरह के दुष्प्रभाव की संभावना नहीं रहती है। इसकी खासियत यह है कि इसके उत्पादन में किसानों द्वारा किसी तरह के कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया जाता है। इसकी सुगंध इसे विशेष बनाती है।
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