पढ़ा रहे देशभक्ति, जगा रहे हिंदू संस्कृति का संस्कार
बोले मुरली मनोहर शर्मा- पश्चिमी सभ्यता के प्रसार को हम सबको मिलकर युद्ध स्तर पर रोकना होगा
भुवनेश्वर, शेषनाथ राय। यूं तो मुरली मनोहर शर्मा भाजपा के नेता हैं, लेकिन सेवा ही उनके जीवन का मूलमंत्र बन गया है। सियासत के अलावा विभिन्न सामाजिक, सांस्कृतिक, आध्यात्मिक संगठनों से जुड़े हैं। ओडिशा को पाश्चात्य संस्कृति से बचाने के लिए हर साल हिन्दू सेवा मेला का आयोजन करते हैं। सामूहिक वंदेमातरम कार्यक्रम के जरिए उन्होंने न सिर्फ लोगों का बल्कि सरकार का भी ध्यान अपनी ओर खींचा है।
आइएमसीटी फाउंडेशन नामक संगठन के जरिए हर साल तीन माह खुद अपने साथियों के साथ विभिन्न स्कूलों में जाकर बच्चों को देशभक्ति का पाठ पढ़ाते हैं। बच्चों के बीच हिंदू संस्कार जागृत करते हैं। उन्हें मातृ-पितृ पूजन, गौ पूजन, वृक्ष पूजन, जीव-जंतु पूजन का ज्ञान बांटते हैं।
ओडिशा प्रदेश के पिछड़े जिलों में से एक माने जाने वाले केंदुझर जिला में सन 1966 में पिता ताराचन्द शर्मा एवं माता स्वर्गीय मोहिनी देवी के यहां जन्में मुरली मनोहर शर्मा के हृदय में बचपन से ही सेवा एवं संस्कार का भाव कूट-कूट कर भरा है। अपने बाल्य अवस्था में ही उन्होंने आपने सेवा भाव की मिशाल पेश कर दी। बाल्यावस्था में ही राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़ गए। यही कारण है कि एक संभ्रांत परिवार में जन्में शर्मा स्कूल में पढ़ाई के समय ही एक नींबू एवं फल बेचने वाले के यहां नौकरी करने वाले दुखबंधु सेठी के साथ हाथ बंटाने के साथ उसके दुख-सुख में सहभागी बनकर रोजाना रात के समय दुकान बंद करने के समय उसके दुकान पहुंच जाते थे और फलों की टोकरी सिर पर रखकर उसके गोदाम पहुंचाते थे, जिसे लेकर वह चर्चा में आ गए थे। घर से मिले नाश्ता को दोस्तों में वितरित कर देना उनके सेवा मनोभाव को दर्शाने लगा था।
सन 1983 में प्रथम श्रेणी से ग्रेजुएशन डिग्री हासिल करने के बाद पिताजी के साथ व्यवसाय से जुड़ गए। व्यवसाय के साथ सेवा भाव का उद्देश्य लेकर आपने अयोध्या में राममंदिर आंदोलन से प्रेरित होकर भाजपा से जुड़े। शर्मा ने बताया कि सेवा-संस्कार की प्रेरणा हमें अपने पिताजी से मिली है जो कि आज 79 साल की उम्र में भी लोगों को मुफ्त में होम्योपैथी दवा के जरिए 50 साल से नियमित इलाज करते आ रहे हैं।
संपत्ति या पद-पदवी को समय का चक्र मानने वाले शर्मा की कार्यधारा ने न सिर्फ केंदुझर जिला, ओडिशा प्रांत बल्कि पूरे देश के लोगों से स्पर्श कर चुकी है। चाहे वह मातृभाषा ओड़िया को दफ्तर में प्रयोग के लिए आन्दोलन हो, नीलशैल जैसे विरल अनुष्ठान के जरिए मधुवर्णबोध के लिए आवाज बुलंद करनी हो, गैरकानूनी बांग्लादेशी अनुप्रवेश पर लगाम लगाना हो, पाइक अखाड़ा खेल को प्रोत्साहित करना हो, तूफान आपदा हो या मारवाड़ी युवा मंच के जरिए कृत्रिम अंग प्रत्यारोपण के जरिए लोगों की सेवा हो या फिर आइएमसीटी फाउंडेशन के जरिए बच्चों को राष्ट्रभक्ति का पाठ पढ़ाना हो या फिर हिन्दू आध्यात्म सेवा मेला के जरिए बच्चों को संस्कारी बनाने की मुहिम लगातार जारी रखे हुए हैं।
इसके साथ ही प्रकृति की सच्चाई से रू ब रू कराने के साथ बच्चों में देश भक्ति का पाठ पढ़ाना हो अपनी टीम के साथ निरंतर लगे रहते हैं। आपके सामूहिक वंदेमातराम गान कार्यक्रम से प्रेरित होकर प्रदेश सरकार भी सामूहिक वंदे उत्कल जननी गान जैसे कार्यक्रम को प्रोत्साहित करने के लिए आगे आई।
बांग्लादेशी अनुप्रवेशकारियों पर रोक लगाने के लिए कदम उठायी। शर्मा का मानना है कि आधुनिकता के नाम पर आज जिस कदर से हमारी प्राचीन भारतीय संस्कृति में पश्चिमी सभ्यता पैर पसार रही है, उसे हम सबको मिलकर युद्ध स्तर पर रोकना होगा। अन्यथा वह दिन दूर नहीं जिस संस्कृति में अपने माता-पिता को भगवान माना जाता है, वहीं के लोग अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ने लगेंगे। अमेरिका जैसी सरकार पर आज माता-पिता की सेवा के लिए अरबों रुपये का भार पड़ रहा है, जिससे अपनी प्राचीन संस्कृति के चलते ही आज भारत बचा हुआ है। यही कारण है कि हम अपने बच्चों को संस्कारी, आध्यात्मिक ज्ञान, अपनी प्राचीन सभ्यता से अवगत कराने के लिए यह बीड़ा उठाया है।