फिर से आंगन में फुदककर बचपन की याद दिलाएगी गौरेया, गायब होती इन पक्षियों को बचाने के लिए करें बस इतना सा काम
बचपन के दिनों में आंगन में अकसर फुदकने वाली गौरेया पक्षी बड़ी तेजी से गायब हो रहे हैं और इसके लिए हम इंसान ही जिम्मेदार हैं। इन्हें बचाने के लिए कुछ बातों का ख्याल रखना होगा ताकि इन्हें मदद मिल सके।
संतोष कुमार पांडेय, अनुगुल। जैसा कि पूरे विश्व में 20 मार्च को विश्व गौरैया दिवस मनाया गया है तो क्यों न आज 21 मार्च से हम पर्यावरण संरक्षण में सहायक अपने छोटे मित्र गौरैया के संरक्षण पर एक पहल करें ताकि उनकी घर वापसी हो सके। उन्हें हमारी मदद की सख्त जरूरत है। कभी आंगन में फुदकने वाली गौरेया अब लगभग गायब हो चुकी है। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) का कहना है कि घरों में छोटे-छोटे घौंसला बनाकर रहने वाली और इंसानों के बचे हुए भोजन को चुन-चुनकर खाने वाली गौरेया अब पक्षियों की लुप्तप्राय प्रजातियों में शामिल हो चुकी हैं।
इस वजह से कम होने लगी गौरेया की संख्या
पर्यावरण संरक्षणवादी घरेलू गौरैया की घटती संख्या के लिए हमारे घरों की आधुनिक और प्रकृति के विपरीत वास्तुकला, पेड़ों की छंटाई, फसलों में रासायनिक उर्वरकों की अधिकता, ध्वनि प्रदूषण तथा वाहनों व उद्योगों से निकलने वाले धुएं को जिम्मेदार ठहराया है।
डिजिटल क्रांति ने हवाई मार्गों को जाम कर दिया है या नहीं, इस बारे में बहस अनिर्णायक है, लेकिन आम लोगों का कहना है कि यह कोई संयोग नहीं है कि 1990 के दशक के अंत में जब भारत में मोबाइल फोन का आगमन हुआ, तब से घरेलू गौरैया धीरे-धीरे गायब होने लगी हैं।
गौरेया को बचाने के लिए खास पहल
पर्यावरणविद व संयुक्त राष्ट्र पुरस्कार विजेता ओडिशा के 'बर्डमैन' शुभ्रांशु सतपथी प्रकृति संरक्षण पर काम कर रहे हैं। शुभ्रांशु कहते हैं कि वह 2008 से गर्मियों में प्यासे पक्षियों को बचाने के लिए कार्यशाला आयोजित कर रहे हैं।सतपथी कहते है उन्होंने ढेंकानाल की क्रांति के माध्यम से छात्रों को सीडबॉल बनाना और हरित ग्रह का हिस्सा बनना सिखाया है। साथ ही उन्होंने खुद प्यासे पक्षियों के लिए 35 हजार से अधिक मिट्टी के बर्तन वितरित किए हैं और 1 लाख से अधिक सीडबॉल बनाए हैं।
शहरीकरण का गौरेया की संख्या पर मार
गौरैया का पारिस्थितिक महत्व एक क्षेत्र के वनस्पति आवरण से संबंधित है क्योंकि यह क्षेत्र की मूल और ऐतिहासिक वनस्पति सीमा को दर्शाता है। इस पक्षी को वनस्पति की विभिन्न देशी प्रजातियों की आवश्यकता होती है, जिसमें जीविका के लिए कई जंगली फूल, झाड़ियां और पेड़ शामिल हैं। शुभ्रांशु कहते हैं कि गौरेया की आबादी में गिरावट के कारण तेजी से हो रहा शहरीकरण, अधिक प्रदूषण और माइक्रोवेव टावरों से उत्सर्जन जिम्मेदार है।
मोबाइल टावर एयरवेव्स का गौरेया पर असर
उन्होंने कहा कि घरों में वेंटिलेटर की जगह एसी और पेड़ों की जगह सजावटी पौधों और पार्कों में सजावटी फूलों की जगह झाड़ियों ने ले ली है, जिससे पक्षियों के लिए घोंसला बनाना असंभव हो गया है। पक्षी चुंबकीय विकिरण के प्रति संवेदनशील होते हैं और मोबाइल टावर एयरवेव्स से उनका सेंसर प्रभावित होता है, जिससे उड़ान भरते वक्त वे गुमराह हो जाते हैं।
पक्षियों की कई और प्रजातियां होती जा रहीं गायब
शुभ्रांशु कहते हैं, यहां तक कि एक केस स्टडी में मुझे पता चला कि चेन्नई में पक्षियों की 200 विषम प्रजातियों में से कम से कम चार बहुत तेजी से गायब हो रही हैं। मोबाइल टावर की अधिकता पक्षियों को प्रभावित करती हैं। आमतौर पर गौरेया इमारत की दरारों में रहती थीं, लेकिन नए युग में कांच के घरों में उनके लिए जगह नहीं है।
आजकल शहरों में पेड़ गायब हो रहे हैं इसलिए पेड़ों की शाखाओं के बजाय बिजली की लाइन में पक्षी पाए जाते हैं। 11 केवी बिजली लाइन से कई पक्षी मर रहे हैं। इन नन्हें जीवों को बचाने के लिए विद्युत प्राधिकरण को कोटेड 11KV लाइन का इस्तेमाल करना चाहिये। इन्हीं छोटी-छोटी बातों का ख्याल कर हम गौरेया को विलुप्त होने से बचा सकते हैं।
इन उपायों से गौरेया को बचाने में मिल सकती है मदद
गर्मियों का मौसम आ रहा है, ऐसे में बालकनियों में घोंसले के बक्से और पानी/ अनाज के कटोरे रख इन चिड़ियाें की मदद की जा सकती है। खासकर जहां इनकी थोड़ी-बहुत अधिकता है, वहां तो बिल्कुल ऐसा करना चाहिए ताकि उन्हें प्रजनन में मदद मिल सके। पेड़ लगाने और शाखाओं की छंटाई से बचने से भी काफी हद तक इनके संरक्षण में मदद मिलेगी।