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Konark Festival 2019: रंगारंग प्रस्तुतियों के साथ कोणार्क फेस्टिवल का आगाज; देखें तस्वीरें

Konark Festival 2019 ओडिशा में पांच दिवसीय कोणार्क फेस्टिवल का रविवार को शुभारंभ किया गया इसके साथ ही यहां अंतरराष्ट्रीय सैंड आर्ट फेस्टिवल का आयोजन भी किया गया है।

By Babita kashyapEdited By: Published: Mon, 02 Dec 2019 11:24 AM (IST)Updated: Mon, 02 Dec 2019 11:24 AM (IST)
Konark Festival 2019: रंगारंग प्रस्तुतियों के साथ कोणार्क फेस्टिवल का आगाज; देखें तस्वीरें

कोणार्क, एएनआइ। Konark Festival 2019 ओडिशा में रविवार शाम कोणार्क मुक्त रंगमंच पर कोणार्क नृत्य उत्सव की रंगारंग शुरुआत हुई। राज्यपाल प्रोफेसर गणेशी लाल ने प्रदीप प्रज्वलन कर कोणार्क नृत्य उत्सव का आगाज किया। इस मौके पर पर्यटन व संस्कृति विभाग के मंत्री ज्यौति प्रकाश पाणिग्राही, खेल व युवा मामलों के मंत्री चन्द्र सारथी बेहरा, पर्यटन विभाग के सचिव विशाल देव,पुरी जिलाधीश बलवन्त सिंह, सहित अनेक मान्यगण उपस्थित थे।

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कोणार्क खेलमंत्री उत्सव की पहली प्रस्तुति भुवनेश्वर से आए सृजन गृप की रही। सृजन गृप के कलाकारों ने आकर्षक ओडिशा नृत्य पेश कर मुक्ताकाश रंगमंच पर उपस्थित हजारों देशी –विदेशी दर्शकों का मन जीत लिया। सृजन के कलाकारों ने सबसे पहले सूर्य वन्दना से अपना कार्यक्रम आरंभ किया। सूर्य वन्दना के बाद पल्लवी के जरिए नृत्यागंनाओं ने अपने नृत्य कौशल का प्रदर्शन किया। आकर्षक मुद्राओं सहित उनके नृत्य शैली देखकर दर्शक दंग रह गये। शरीर का संतुलन बनाते हुए कलाकारों द्वार मंच पर प्रस्तुत इन विभिन्न मुद्राओं पर दर्शक ताली बजाते रहे।

पल्लवी के बाद भगवति स्त्रोत्रम के जरिए देवी शक्ति का प्रदर्शन किया गया। अंत में इन कलाकारों ने नृत्य के जरिए वन्दे मातरम् पेश किया। सृजन के इस प्रस्तुति में गुरु रतिकांत महापात्र ने मर्दल पर , रमेशचन्द्र दास तथा अग्निमित्र बेहेरा वायलीन पर अपना हुनर दिखा रहे थे। रुपक कुमार परिडा गायन में तथा बांसुरी पर श्रीनिवास शतपथी और सितार पर प्रकाश चन्द्र महापात्र ने संगत किया।

कोणार्क उत्सव की पहली शाम की दूसरी प्रस्तुति थी कथक। पुणे से आए शमा खोटे एवं साथियों ने कथक नृत्य पेश किया। इस गृप की पहली प्रस्तुति भी सूर्य वन्दना के साथ हुई। कोणार्क सूर्य मंदिर प्रांगण में पहुंचा हर कलाकार जैसे सूर्य़ आराधना के साथ ही अपना नृत्य कौशल दिखाने की लालसा लेकर आया था। सूर्यवंदना के उपरांत कथक कलाकारों ने शुद्ध रुपक के जरिए अपनी कला का प्रदर्शन किया। ताल रुपक में प्रस्तुत यह नृत्य दर्शकों को पसंद भी आया।

इसके बाद कलाकारों ने नृत्य के जरिए -कालिय दलन- प्रसंग को मंच पर जीवन्त किया। नृत्य क जरिए भगवान कृष्ण के यमूना किनारे गेंद खेलने और गेंद के नदी में गीर जाने तथा गेंद लाने गये श्रीकृष्ण के कालिय मर्दन के दृश्य को कलाकारों ने अपने कला कौशल से जीवन्त बना दिया। दर्शकों ने पुणे से आए इन कलाकारों के नृत्य प्रतिभा की सराहना की। गृप की अंतिम प्रस्तुति थी भजन। इसके जरिए बाजे रे मूरलीया बाजे...भजन को कलाकारों ने नृत्य में पिरो कर पेश किया। अमीरा पाटणकर, अवनी गद्रे, शिवानी कर्मणकर, भार्गवी सरदेसाई,निरजा थोराट, ईशा नानलऔर निकिता कराले ने अपने नृत्य कौशल का प्रदर्शन किया। इन नृत्यांगनाओं का साथ गायन के जरिए बिनय रामदासन, हारमोनियम के जरिए अभिषेक शिणकर, तबले पर चारुदत्त फडके एवं बांसुरी पर संदीप कुलकर्णी ने दिया।    

इस वर्ष ये फेस्टिवल इको-टूरिज्म, संस्कृति, मेलों, महिला सशक्तीकरण और से नो टू प्लास्टिक और विरासत जैसे विषयों पर आधारित हैं। सैंड आर्ट फेस्टिवल में पूरे भारत के लगभग 123 कलाकार और यूएसए, आयरलैंड, डेनमार्क, रूस, कनाडा, टोगो और श्रीलंका के कलाकार भाग ले रहे हैं। 

एक डांसर ने बातचीत के दौरान बताया कि हमारे लिये ये एक गौरवपूर्ण क्षण है, हमें यहां नृत्य के लिए पुणे से आमंत्रित किया गया है। एक अन्य प्रतिभागी ने बताया कि हमें खुशी है कि हम इस भव्य कार्यक्रम के साक्षी बने हैं। यहां सब कुछ भव्य पैमाने पर किया जा रहा है। कथक से लेकर ओडिशी नृत्य कार्यक्रमों का प्रदर्शन हो रहा है। पर्यटकों और कलाकारों के लिए देश की सांस्कृतिक विविधता का आनंद लेने का मौका है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य आध्यत्मिक को बढ़ाकर अंतरराष्ट्रीय सांस्कृतिक सौहार्द और भाईचारे का निर्माण करना है। 

 गौरतलब है कि ओडिशा के पुरी जिले में चंद्रभागा नदी के किनारे कोणार्क का सूर्य मंदिर स्थित है। इस मंदिर की कल्पना सूर्य के मंदिर के रूप में की गयी है। इस रथ में बारह जोड़े विशाल पहिए लगे हैं और जिसे सात शक्तिशाली घोड़े तेजी से खींच रहे हैं। ये जितनी सुंदर कल्पना है, इसकी रचना भी उतनी ही भव्य है। ये खास मंदिर अपनी विशालता, निर्माणसौष्ठव तथा वास्तु और मूर्तिकला के समन्वय के लिये अद्वितीय है और ओडिशा की वास्तु और मूर्तिकलाओं की चरम सीमा प्रदर्शित करता है। एक शब्द में कहा जाये तो यह भारतीय स्थापत्य की महत्तम विभूतियों में से एक है।

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