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सूचना आयुक्त के पास हाजिर ना होना पूर्व सूचना अधिकारी को पड़ा महंगा, जारी हुआ वारंट

सूचना अधिकारी को बारंबार नोटिस जारी करने के बावजूद सूचना आयुक्त के पास हाजिर ना होने पर वारंट जारी कर दिया गया है। आगामी 22 मार्च तक आयुक्त के पास हाजिर नहीं होते हैं तो फिर उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है।

By Babita KashyapEdited By: Published: Sat, 20 Feb 2021 12:06 PM (IST)Updated: Sat, 20 Feb 2021 12:06 PM (IST)
सूचना आयुक्त के पास हाजिर ना होना पूर्व सूचना अधिकारी को पड़ा महंगा, जारी हुआ वारंट
बारंबार नोटिस-समन जारी करने के बावजूद सूचना आयुक्त के पास हाजिर ना होना मंहगा पड़ा

भुवनेश्वर, जागरण संवाददाता। एक अवसर प्राप्त सूचना अधिकारी को बारंबार नोटिस-समन जारी करने के बावजूद सूचना आयुक्त के पास हाजिर ना होना मंहगा पड़ गया है क्योंकि राज्य सूचना आयुक्त ने उक्त पूर्व सूचना अधिकारी के खिलाफ वारंट जारी कर दिया है। ऐसे में यदि वह आगामी 22 मार्च तक आयुक्त के पास हाजिर नहीं होते हैं तो फिर उन्हें गिरफ्तार भी किया जा सकता है। ऐसे में एक पूर्व सूचना अधिकारी के खिलाफ राज्य सूचना आयुक्त द्वारा वारंट जारी करने का प्रदेश में यह पहला मामला, जिसकी चर्चा अब चहुंओर हो रही है। 

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 प्राप्त खबर के मुताबिक ओडिशा के बरगड़ जिले के बीजेपुर ब्लाक अन्तर्गत जारिंग पंचायत में व्यापक भ्रष्टाचार होने को लेकर सुशांत गड़तिया ने सूचना अधिकार कानून के बल पर कुछ तथ्य मांगे थे। गड़तिया ने 2015 में यह तथ्या मांगा था, मगर तथ्य देने में काफी देरी की गई। सूचना मांगने वाले गड़तिया बीपीएल वर्ग से होने के बावजूद उनसे 1315 रुपया लिया गया था। 

 इसके खिलाफ गड़तिया ने 2017 में सूचना आयोग के पास शिकायत की थी। गड़तिया के शिकायत की सुनवाई करते हुए सूचना आयुक्त ने उस समय बीजेपुर ब्लाक में कार्यरत सूचना अधिकारी अक्षय कुमार बड़पंडा को हाजिर होने के लिए नोटिस भेजा। बार-बार नोटिस भेजने के बावजूद वह आयुक्त के पास हाजिर नहीं हुए। ऐसे में सूचना कानून 2005 की धारा 18(3) के अनुसार पड़पंडा के खिलाफ वारंट जारी किया गया है। राज्य सूचना आयुक्त दिलीप विशोई ने इस संदर्भ में सम्बलपुर एसपी को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने 22 मार्च तक उपयुक्त रेकर्ड के साथ आयुक्त के सामने होने को कहा है। 

सूचना अधिकार कर्मी प्रदीप प्रधान ने कहा है कि 15 साल से राज्य में सूचना अधिकार कानून लागू है, मगर इससे पहले इस तरह की घटना कभी नहीं हुई है। सूचना कानून में इस तरह का नियम पहले से है मगर अब तक किसी सूचना आयुक्त ने इस तरह का कदम नहीं उठाया था। इस कदम से राज्य में सूचना कानून और अधिक क्रियाशील होगा।


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