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Bagha Jatin Anniversary: बालेश्वर की मिट्टी पर शहीद हुए थे क्रांतिकारी बाघा जतिन, मनाया जाएगा 107 वां शहीद दिवस

बाघा जतिन श्री अरबिंदो के संपर्क में आए थे जिसके बाद उनके मन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह की भावना और भी प्रबल हो गई थी। अरबिंदो की प्रेरणा से उन्होंने जुगांतर नामक गुप्त संगठन बनाया और यह संस्था नौजवानों में बहुत मशहूर थी।

By Shivam YadavEdited By: Published: Fri, 09 Sep 2022 05:40 PM (IST)Updated: Fri, 09 Sep 2022 05:40 PM (IST)
Bagha Jatin Anniversary: बालेश्वर की मिट्टी पर शहीद हुए थे क्रांतिकारी बाघा जतिन, मनाया जाएगा 107 वां शहीद दिवस
बाघा जतिन का शहीद दिवस प्रतिवर्ष 10 सितंबर को बालेश्वर में धूमधाम से मनाया जाता है।

बालेश्वर [ लावा पांडे]। क्रांतिकारी बाघा जतिन के लिए बस इतना ही कहा जा सकता है कि ऐसे व्यक्तित्व वाले इस दुनिया में कम ही जन्म लेते हैं। 27 साल की उम्र में उनका सामना एक खूंखार बाघ से हो गया था और उन्होंने उस बाघ को मार गिराया, बस तभी से लोग उन्हें बाघा जतिन बुलाने लगे। बाघा जतिन का जन्म पूर्वी बंगाल के कुशटिया जिला (जो कि अब बांग्लादेश मैं है) में 7 दिसंबर 1879 को हुआ था। उन्होंने अंतिम सांस 10 सितंबर 1915 को ओडिशा के बालेश्वर शहर में लिया था।

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शहीद बाघा जतिन का शहीद दिवस प्रतिवर्ष 10 सितंबर को बालेश्वर में धूमधाम से मनाया जाता है। इस मौके पर पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल से लोगों का  एक दल शहीद दिवस मनाने आता है, जिनमें पुरुष महिलाएं शामिल रहती हैं, जिन्हें रक्त तीर्थयात्रियों का दल कहा जाता है। इन दो राज्यों ओडिशा और पश्चिम बंगाल के लोग मिलकर शहीद बाघा जतिन को प्रतिवर्ष 10 सितंबर के दिन याद करते हैं। 

इस वर्ष उनका 107 वां शहीद दिवस मनाया जाएगा। इस मौके पर जिला प्रशासन और बाघा जतिन डेवलपमेंट कमेटी की ओर से सारी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। शहीद बाघा जतिन यानी कि जिनका असली नाम जतिंद्रनाथ मुखर्जी था, वे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के ऐसे नायक हैं जिनकी प्रतिभा और साहस का अंग्रेज अधिकारी भी कायल थे। 

इस भारतीय क्रांतिकारी की मृत्यु के बाद एक ब्रिटिश अधिकारी ने उनके लिए कहा था कि अगर यह व्यक्ति जीवित होता तो शायद पूरी दुनिया का नेतृत्व करता। बाघा जतिन जब मात्र 5 साल की उम्र के थे। तब उनके पिता का निधन हो गया था। बहुत कम उम्र में ही उन्होंने अपना घर और परिवार संभाला शिक्षा समाप्त करने के बाद वह अपने परिवार का खर्च चलाने के लिए स्टेनोग्राफी सीखकर कलकत्ता विश्वविद्यालय से जुड़ गए थे। 

कालेज में पढ़ते वक्त उन्होंने सिस्टर निवेदिता के साथ राहत कार्यों में भाग लेने लगे थे। उनकी मुलाकात स्वामी विवेकानंद से हुई स्वामी विवेकानंद ने जतिंद्रनाथ को एक उद्देश्य दिया और अपनी मातृभूमि के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया और उनके मार्गदर्शन में जतिंद्रनाथ ने उन युवाओं को आपस में जोड़ना शुरु किया जो आगे चलकर भारत का भविष्य बदलने की जुनून रखते थे। 

अरबिंदो की प्रेरणा से बनाया संगठन

इसके बाद वे श्री अरबिंदो के संपर्क में आए थे, जिसके बाद उनके मन में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ विद्रोह की भावना और भी प्रबल हो गई थी। अरबिंदो की प्रेरणा से उन्होंने जुगांतर नामक गुप्त संगठन बनाया और यह संस्था नौजवानों में बहुत मशहूर थी। 

जुगांतर की कमान जतिन स्वयं संभाले थे। ब्रिटिश पुलिस कई बार शहीद बाघा जतिन को गिरफ्तार की थी, लेकिन 9 सितंबर 1915 को जतिंद्रनाथ और उनके साथियों ने बालासोर के चसाखंड क्षेत्र मैं पहुंचे थे। यहीं पर गुप्त सूचना के आधार पर ब्रिटिश पुलिस पहुंच गई और इनका सामना ब्रिटिश पुलिस के साथ हुआ था। 

क्रांतिकारियों और ब्रिटिश पुलिस के बीच मुठभेड़

इसी बीच क्रांतिकारियों और ब्रिटिश पुलिस के बीच मुठभेड़ आमने-सामने हो गई। इस मुठभेड़ में क्रांतिकारी चित्प्रिय राय चौधरी की मृत्यु हो गई। जतिन और जतिश गंभीर रूप से घायल हो गए थे बाघा जतिन को बालासोर अस्पताल लाया गया। जहां उन्होंने 10 सितंबर 1915 को अंतिम सांस लिए थे। आज भी बालेश्वर के जेल में वह फांसी का तख्ता मौजूद है, जहां पर शहीद बाघा जतिन के दो मित्रों को फांसी के तख्ते पर चढ़ाया गया था। 

आज भी बालेश्वर के जेल परिसर में वह समाधि भी मौजूद है, जहां पर इन वीर सपूतों को दफनाया गया था। प्रति वर्ष बालेश्वर शहर के बारबाटी बालिका विद्यालय में शहीद बाघा जतिन का शहीद दिवस मनाया जाता है, क्योंकि अंग्रेजों के जमाने में यह बारबाटी विद्यालय चिकित्सालय हुआ करता था और यहीं पर शहीद बाघा जतिन का इलाज किया गया था, लेकिन वह अंग्रेजों की पट्टी और मरहम को निकाल फेंके थे तथा काफी घायल होने के कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। 

शहीद दिवस पर कई प्रतियोगिताओं का आयोजन

आज प्रतिवर्ष 10 सितंबर के दिन पश्चिम बंगाल और ओडिशा के लोग मिलकर शहीद बाघा जतिन डेवलपमेंट कमेटी की ओर से जिसके अध्यक्ष बालेश्वर के जिलाधीश होते हैं। उनके नेतृत्व में बाघा जतिन का शहीद दिवस मनाया जाता है। 

इस मौके पर स्कूली बच्चों के बीच कई प्रकार की प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है तथा सुबह 8 बजे से लेकर पूरा दिन यह कार्यक्रम चलता है, जिसमें शाम को जेल में जाकर जेल परिषद में उसी के तथ्य को नमन किया जाता है। शहीदों के समाधि पर माल्यार्पण किया जाता है। जिसने भी कहा है सही कहा है कि शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले। आज शायद शहीद बाघा जतिन जैसे वीर सपूत ना होते तो शायद हमें स्वाधीनता का स्वाद चखने को नहीं मिलता।


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