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गुमशुदा बच्चों के मामले में बिहार, छत्तीसगढ़ को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

गुमशुदा बच्चों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार और छत्तीसगढ़ सरकार को फिर फटकार लगाई। गुरुवार को बच्चों की गुमशुदगी के सभी मामलों में तुरंत एफआइआर न दर्ज करने पर बिहार को आड़े हाथों लिया तो छत्तीसगढ़ की ओर से संसद और सुप्रीम कोर्ट में पेश आंकड़ों में अंतर पर नाराजगी जताई गई। कोट

By Sudhir JhaEdited By: Published: Thu, 30 Oct 2014 09:43 PM (IST)Updated: Thu, 30 Oct 2014 09:46 PM (IST)
गुमशुदा बच्चों के मामले में बिहार, छत्तीसगढ़ को सुप्रीम कोर्ट की फटकार

नई दिल्ली, जागरण ब्यूरो। गुमशुदा बच्चों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बिहार और छत्तीसगढ़ सरकार को फिर फटकार लगाई। गुरुवार को बच्चों की गुमशुदगी के सभी मामलों में तुरंत एफआइआर न दर्ज करने पर बिहार को आड़े हाथों लिया तो छत्तीसगढ़ की ओर से संसद और सुप्रीम कोर्ट में पेश आंकड़ों में अंतर पर नाराजगी जताई गई। कोर्ट ने दोनों राच्यों के हलफनामों पर असंतोष जताते हुए उन्हें बेहतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया है। मामले में अगली सुनवाई 13 नवंबर को होगी।

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कोर्ट ने ये निर्देश नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के एनजीओ बचपन बचाओ आंदोलन की याचिका पर सुनवाई के दौरान दिए। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायाधीश एचएल दत्तू की अध्यक्षता वाली पीठ कर रही है। कोर्ट ने पिछली सुनवाई पर भी बिहार और छत्तीसगढ़ सरकार को फटकार लगाई थी और दोनों राच्यों के मुख्य सचिवों और पुलिस महानिदेशकों को कोर्ट में तलब किया था। कोर्ट के निर्देश पर दोनों राच्यों के अधिकारी गुरुवार को पेश हुए।

बिहार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल रंजीत कुमार ने गुमशुदा बच्चों का ब्योरा पेश करते हुए कहा कि 2011 से 2013 के बीच कुल 2874 बच्चे गायब हुए, जिनमें से 2241 बच्चे ढूंढ लिए गए जबकि 633 अभी लापता हैं। हालांकि याचिकाकर्ता के वकील एचएस फूलका ने कहा कि राच्य में बच्चों की गुमशुदगी के सिर्फ 40 फीसद मामलों में ही एफआइआर दर्ज होती है। 60 फीसद मामलों में तो एफआइआर दर्ज ही नहीं होती। अगर एफआइआर दर्ज हो तो बच्चों को ढूंढना आसान होता है। इससे उनकी फोटो और ब्योरा राष्ट्रीय स्तर पर सभी जगह भेजा जाता है।

जब पीठ ने बिहार के वकील से पूछा कि आखिर सभी मामलो की एफआइआर क्यों नहीं दर्ज की जाती तो वकील का जवाब था कि पहले सूचना की डायरी इंट्री होती है और बाद में एफआईआर दर्ज की जाती है। हालांकि गत वर्ष के सुप्रीम के एक आदेश के अनुसार, इन मामलों में पहले एफआइआर दर्ज होनी चाहिए। कोर्ट ने कहा कि अगर ऐसा है तो पहले की सभी डायरी इंट्री एफआइआर में तब्दील होनी चाहिए थी, लेकिन ऐसा नहीं किया गया। कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि अभी भी 633 बच्चे लापता हैं। सरकार उनके माता पिता की परेशानी और चिंता नहीं समझ रही है। राच्य की ओर से पेश रंजीत कुमार ने कहा कि उन्हें एक सप्ताह का समय दिया जाए वे सभी मामलों में एफआइआर दर्ज किए जाने के साथ बेहतर हलफनामा दाखिल करेंगे। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के वकील ने बताया कि 2011 से 2013 के बीच प्रदेश में कुल 9,428 बच्चे लापता हुए और उनमें से 8234 ढूंढ लिए गए, जबकि 1204 बच्चे अभी भी लापता हैं। इस पर याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि छत्तीसगढ़ सरकार की ओर से गत छह अगस्त को संसद में दी गई सूचना के मुताबिक राच्य में अभी भी चार हजार से ज्यादा बच्चे गायब हैं। आंकड़ों के इस अंतर पर पीठ ने राच्य सरकार को कड़ी फटकार लगाई।

कोर्ट ने कहा कि अगली सुनवाई पर सरकार इसका स्पष्टीकरण दे वरना कोर्ट के समक्ष गलत आंकड़े देने पर उनके अधिकारी मुश्किल में फंस जाएंगे।

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