वैज्ञानिकों को मिली बड़ी सफलता, जानिए- कैसे बदलता है फूलों का रंग
जापान के नेशनल बायोरिसोर्स प्रोजेक्ट में इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने मॉर्निग ग्लोरी फूल को चुना क्योंकि यह जापान के परंपरागत बागवानी मॉडल के दो पौधों में से एक है।
टोक्यो, प्रेट्र। दुनिया में पहली बार जापान के वैज्ञानिकों ने सीआरआइएसपीआर जीन एडिटिंग की मदद से फूल का रंग बदलने में सफलता हासिल की है। वैज्ञानिकों ने एक जीन में फेरबदल कर बैंगनी रंग के मॉर्निग ग्लोरी फूल को सफेद कर दिया।
जापान के नेशनल बायोरिसोर्स प्रोजेक्ट में इस अध्ययन के लिए वैज्ञानिकों ने मॉर्निग ग्लोरी फूल को चुना क्योंकि यह जापान के परंपरागत बागवानी मॉडल के दो पौधों में से एक है। इसके अलावा इस पौधे पर व्यापक स्तर से अनुवांशिक अध्ययन पहले से ही किए जा चुके हैं। इसकी जीनोम अनुक्रम और डीएनए हस्तांतरण विधि को स्थापित किया जा चुका है।
लोगों को शिक्षित करने में मिलेगी मदद
शोधकर्ताओं के मुताबिक, वर्तमान में सीआरआइएसपीआर/सीएएस9 जैसी जेनेटिक टेक्नोलॉजीं जापान का सामाजिक मुद्दा बनी हुईं हैं। लोग इसे लेकर चिंतित हैं। इस प्रसिद्ध और व्यापक स्तर पर उगने वाले फूल पर अध्ययन कर लोगों को इस विषय पर शिक्षित किया जा सकेगा।
एक जीन को किया लक्षित
जापान की एग्रीकल्चर एंड फूड रिसर्च ऑर्गेनाइजेशन (एनएआरओ) और योकोहामा सिटी यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने फूल का रंग बदलने के लिए उसके एक जीन डीएफआर-बी को लक्षित किया। इसमें सामने आया कि पौधों के तने, पत्तियों और फूलों के रंग के लिए एक विशेष एंजाइम जिम्मेदार होता है। इसके आलावा दो अन्य करीबी जीन्स (डीएफआर-ए और डीएफआर-सी) भी सामने आए। इस वजह से वैज्ञानिकों की सबसे बड़ी चुनौती इन दोनों जीन्स को छेड़े बिना केवल डीएफआर-बी जीन में परिवर्तन करना था।
इसके लिए जीन एडिटिंग की सीआरआइएसआरपी/सीएएस9 प्रणाली का प्रयोग किया गया, जो वर्तमान में सबसे सटीक विधि है। यह प्रणाली बैक्टीरिया रक्षा तंत्र पर आधारित है। यह दो अणुओं से बना होता है जो डीएनए अनुक्रम को बदल देता है। सीएएस9 तकनीक डीएनए की दो किस्मों को एक विशेष स्थान से काट देती है ताकि उसमें डीएनए को जोड़ा या उससे हटाया जा सके। सीएएस9 को सही स्थान की जानकारी जीआरएनए से मिलती है, जिसे डीएनए अनुक्रम के एक विशेष हिस्से को लक्षित करने के लिए बनाया गया।
75 फीसद मिली सफलता
वर्तमान में सीआरआइएसपीआर/सीएएस9 टेक्नोलॉजी 100 फीसद सफल नहीं है और न ही यह सभी पौधों पर काम करती है। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों को इस टेक्नोलॉजी में 75 फीसद सफलता मिली है, जो अपेक्षाकृत एक परिणाम है। यह भी एक वजह है कि वैज्ञानिक इस खोज से खुश हैं और भविष्य में इसके जरिए फूलों के न केवल रंग बल्कि आकार में भी परिवर्तन लाने की तैयारी कर रहे हैं।