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तुर्की पर एर्दोगन का एकाधिकार, जनमत संग्रह में मिली जीत

तुर्की की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के तहत राष्ट्रपति के पास कार्यकारी शक्तियां नहीं होती। इस व्यवस्था में एर्दोगन 2024 तक ही राष्ट्रपति रह सकते थे।

By Manish NegiEdited By: Published: Mon, 17 Apr 2017 08:52 PM (IST)Updated: Mon, 17 Apr 2017 08:52 PM (IST)
तुर्की पर एर्दोगन का एकाधिकार, जनमत संग्रह में मिली जीत

इस्तांबुल, रायटर/एएफपी। तीन फीसद से भी कम के अंतर की जीत ने तुर्की में राष्ट्रपति रेसेप तैयप एर्दोगन के एकाधिकार का रास्ता प्रशस्त कर दिया है। नई राजनीतिक व्यवस्था को लेकर रविवार को हुए जनमत संग्रह में 'हां' के पक्ष में 51.41 और 'ना' के पक्ष में 48.59 फीसद मत पड़े। विपक्षी दलों ने दोबारा मतगणना की मांग की है। हालांकि इसकी उम्मीद नहीं है कि क्योंकि मतदान के दौरान गड़बड़ी के आरोप को सुप्रीम इलेक्शन बोर्ड के प्रमुख सादी गुवेन पहले ही ठुकरा चुके हैं।

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उम्मीद के मुताबिक बड़े अंतर से जीत नहीं मिलने के बावजूद परिणाम की घोषणा होते ही एर्दोगन के समर्थक जश्न मनाने के लिए सड़क पर उतर गए। राष्ट्रपति ने इस ऐतिहासिक फैसले के लिए लोगों की प्रशंसा की। उन्होंने कहा, 'हम अपने इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण सुधार को पहचानने में कामयाब रहे। जनता ने नई प्रणाली और बदलाव के लिए मतदान किया है।' कई शहरों में प्रदर्शन कर नतीजों का विरोध भी किया गया।

तुर्की की मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था के तहत राष्ट्रपति के पास कार्यकारी शक्तियां नहीं होती। इस व्यवस्था में एर्दोगन 2024 तक ही राष्ट्रपति रह सकते थे। नई व्यवस्था से उनके 2029 तक राष्ट्रपति बने रहने की राह खुल गई है। ऐसा होने पर तुर्की के इतिहास में उनका कद देश के संस्थापक मुस्तफा कमला अतातुर्क और उनके उत्तराधिकारी इस्मत इनोनु जैसा हो जाएगा।

तीन बड़े शहरों में ना

तुर्की में विभाजन स्पष्ट तौर पर नजर आ रहा है। देश के तीन बड़े शहरों राजधानी अंकारा, इस्तांबुल और इजमिर में ना खेमा विजयी रहा। कुर्द बहुल दक्षिण-पूर्वी हिस्से के लोगों ने भी नई व्यवस्था को खारिज कर दिया है। मुख्य विपक्षी दल रिपब्लिकन पीपुल्स पार्टी (सीएचपी) और कुर्द समर्थक पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (एचडीपी) का कहना है कि 60 फीसद ऐसे मतपत्रों की गिनती भी की गई है जिनपर मुहर नहीं लगे थे। दोबारा मतगणना नहीं होने पर सीएचपी ने नतीजों को संवैधानिक अदालत और यूरोपीय संघ की मानवाधिकार अदालत में चुनौती देने की बात कही है।

आपातकाल के बीच जनमत संग्रह

राष्ट्रपति की कार्यकारी शक्तियां बढ़ाने को लेकर जनमत संग्रह आपातकाल के बीच कराया गया है। बीते साल जुलाई में एर्दोगन के तख्तापलट की कोशिश की गई थी। इसके बाद से ही आपातकाल लागू है। तख्तापलट की कोशिश में अब तक 47 हजार लोग गिरफ्तार किए जा चुके हैं। करीब एक लाख 20 हजार लोग नौकरी से निकाले गए हैं।

2019 से प्रभावी

-नई व्यवस्था नवंबर 2019 के राष्ट्रपति चुनाव के बाद प्रभावी होगी।

-राष्ट्रपति का शासनकाल पांच साल और अधिकतम दो कार्यकाल होगा।

-प्रधानमंत्री का पद समाप्त हो जाएगा। सारी कार्यकारी शक्तियां राष्ट्रपति के पास होंगी।

-राष्ट्रपति कैबिनेट मंत्रियों की नियुक्ति करेगा, एक या उससे ज्यादा उपराष्ट्रपति रखने का अधिकार होगा।

-सरकारी अधिकारियों, जजों की नियुक्ति और उनको बर्खास्त करने का अधिकार होगा।

-न्यायिक मामलों में दखलंदाजी, आपातकाल लागू करने और संसद को भंग करने का भी अधिकार होगा।

एर्दोगन की शक्ति बढ़ाने पर तुर्की में ऐतिहासिक जनमत संग्रह


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