आतंकियों ने तबाह की जिन्ना की आरामगाह
इस्लामाबाद। पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम बलूचिस्तान प्रांत में आतंकियों ने शनिवार को 121 साल पुरानी ऐतिहासिक इमारत पर हमला किया, जिसमें देश के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना ने अपनी जिंदगी के आखिरी दिन गुजारे थे। हमले में एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई जबकि इमारत को काफी नुकसान पहुंचा। विद्रोही संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने हमले की जिम्मेदारी ली है।
इस्लामाबाद। पाकिस्तान के दक्षिण पश्चिम बलूचिस्तान प्रांत में आतंकियों ने शनिवार को 121 साल पुरानी ऐतिहासिक इमारत पर हमला किया, जिसमें देश के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना ने अपनी जिंदगी के आखिरी दिन गुजारे थे। हमले में एक पुलिसकर्मी की मौत हो गई जबकि इमारत को काफी नुकसान पहुंचा। विद्रोही संगठन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी ने हमले की जिम्मेदारी ली है।
आतंकियों ने बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा से करीब 120 किमी दूर स्थित जियारत में कायदा-ए-आजम रेजीडेंसी पर शनिवार सुबह हमला किया। उन्होंने वहां पांच बम लगाकर विस्फोट किया। बाद में खुलेआम गोलीबारी भी की। विस्फोट और गोलियों के कारण इमारत में आग लग गई। आग इतनी भीषण थी कि उसे काबू करने में चार घंटे लग गए।
1892 में बनी इस इमारत का इस्तेमाल ब्रिटिश गवर्नर जनरल के एजेंट गर्मियों में यहां पर रहने के लिए करते थे। भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के एक साल बाद 1948 में टीबी का इलाज कराने के दौरान जिन्ना इसी इमारत में रहे थे। उसी साल सितंबर में कराची में उनका निधन हो गया था। बाद में इस इमारत को राष्ट्रीय स्मारक घोषित कर दिया गया था।
जिले के पुलिस प्रमुख असगर अली ने बताया कि बम निरोधक दस्ते ने छह बमों को ढूंढ़कर निष्क्रिय किया। हर बम में करीब तीन किग्रा विस्फोट का इस्तेमाल किया गया। आग में दो मंजिला इमारत का लकड़ी से बना हिस्सा, फर्नीचर और जिन्ना से जुड़ी यादगारें स्वाहा हो गई। टीवी पर फुटेज में दिखाया गया है कि इमारत की छत नष्ट हो गई है। सिर्फ ईट से बना हिस्सा बचा है। गृहमंत्री निसार अली खान ने संसद के निचले सदन नेशनल असेंबली में बताया कि पांच आतंकियों ने इमारत पर हमला किया। उन्होंने पाकिस्तान के झंडे को हटाकर बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी का झंडा फहराया। सुरक्षा बलों ने इलाके को घेर लिया है। हमलावरों की तलाश की जा रही है। उल्लेखनीय है कि बलूचिस्तान में कुछ अलगाववादियों का मानना है कि जिन्ना ने क्षेत्र के नेताओं को पाकिस्तान को नए राष्ट्र के तौर पर स्वीकार करने के लिए मजबूर किया।
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