माइक्रोबिएम की मदद से भी की जा सकती है फॉरेंसिक जांच
फॉरेंसिक जांच में किसी मनुष्य के अंगुलियों के निशान द्वारा उसकी पहचान की जा सकती है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में कई ऐसी चीजें मौजूद हैं जिनसे उसकी पहचान संभव है। एक शोधकर्ता के अनुसार किसी मुनष्य की पहचान उसके शरीर में मौजूद वैक्टीरिया और माइक्रोब्स के समूहों
मियामी। फॉरेंसिक जांच में किसी मनुष्य के अंगुलियों के निशान द्वारा उसकी पहचान की जा सकती है, ठीक उसी प्रकार मनुष्य के शरीर में कई ऐसी चीजें मौजूद हैं जिनसे उसकी पहचान संभव है। एक शोधकर्ता के अनुसार किसी मुनष्य की पहचान उसके शरीर में मौजूद वैक्टीरिया और माइक्रोब्स के समूहों से की जा सकती है। इसके अलावा मनुष्य की त्वचा से भी उसकी पहचान की जा सकती है।
हावर्ड विश्वविद्यालय में अनुसंधान की मदद से ये बात सामने आई है कि जांच के दौरान किसी मनुष्य की पहचान सबसे पहले उसके शरीर में मौजूद वैक्टीरिया से की जाती है। इसकी मदद से उस व्यक्ति की उम्र, खानपान, जैविक स्थिति और उसके पूरे स्वास्थ्य के बारे में पता लगाया जा सकता है।
हावर्ड विश्वविद्यालय के वायोस्टैटिस्टिक्स ( जैवसांख्यिकी) विभाग में रिसर्च कर रहे एरिक फ्रांजोस ने कहा है कि मनुष्य के डीएनए के नमूने और अंगुलियों के निशान से प्राप्त डीएनए के आंकड़ों से फॉरेंसिक रिपोर्ट तैयार करना पिछले कई दशकों से चला आ रहा है। उन्होंने कहा कि हमने अपनी रिसर्च में ये दिखाया है कि मनुष्य के डीएनए के बिना ही माइक्रोब्स की मदद से सारी जानकारी हासिल की जा सकती है।
नेशनल एकैडमी ऑफ साइंसेज के वैज्ञानिकों ने पाया कि स्टूल ( मल) नमूने काफी भरोसेमंद होते हैं। एक साल के बाद भी 86 फीसद तक लोगों की पहचान उनके पेट के वैक्टीरिया से की जा सकती है। त्वचा के नमूने कम भरोसेमंद होते हैं। एक साल बाद सिर्फ एक तिहाई लोगों की पहचान ही इससे की जा सकती है। इसके अलावा अगर नमूने मेल नहीं खाते हैं तो बहुत कम गलतियां ही ठीक हो पाती हैं। बहुत से मामलों में या तो नमूने मेल खाते हैं या नहीं खाते हैं। ऐसी स्थिति में गलत आदमी की पहचान हो जाती है।
मुनष्य के माइक्रोबिएम प्रोजेक्ट के लिए किये गए अध्ययन हेतु 242 लोगों में से 120 के नमूनों के आधार पर किया गया। माइक्रोबिएम प्रोजेक्ट के लिए इन लोगों से नमूने के रूप में स्टूल (मल), लार और त्वचा लिये गए, इनले प्राप्त आंकड़ों को शोधकर्ताओं के लिए सार्वजनिक किये गए। शोधकर्ताओं का कहना है कि उनके अध्ययन से पता चलता है कि इन प्राप्त आंकड़ों से मुनष्य के सारे जांच मालूम किये जा सकते हैं। हांलांकि उन्होंनेे इसे नीतियों के खिलाफ माना। उनका मानना है कि इस जांच के सहारे मनुष्य के सेक्स संबंधित बीमारियों का भी पता लगाया जा सकता है।
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