मंडेला के जीवन पर एक नजर: त्याग और संघर्ष की अनूठी मिसाल थे वे
दक्षिण अफ्रीका के प्रथम और पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन रोहिल्हाला मंडेला ने अपनी जिंदगी के 27 वर्ष रॉबेन द्वीप पर कारागार में रंगभेद नीति के खिलाफ लड़ते हुए बिताए थे। मंडेला का जन्म बासा नदी के किनारे ट्रांस्की के मवेजों गांव में 1
दक्षिण अफ्रीका के प्रथम और पूर्व राष्ट्रपति नेल्सन रोहिल्हाला मंडेला ने अपनी जिंदगी के 27 वर्ष रॉबेन द्वीप पर कारागार में रंगभेद नीति के खिलाफ लड़ते हुए बिताए थे। मंडेला का जन्म बासा नदी के किनारे ट्रांस्की के मवेजों गांव में 18 जुलाई, 1918 को हुआ था। उनके पिता ने उन्हें नाम दिया 'रोहिल्हाला' यानी पेड़ की डालियों को तोड़ने वाला या फिर प्यारा शैतान बच्चा। नेल्सन के पिता गेडला हेनरी गांव के प्रधान थे।
उनका परिवार परंपरा से ही गांव का प्रधान परिवार था। घर का कोई लड़का ही इस पद पर सुशोभित होता था। नेल्सन के परिवार का संबंध क्षेत्र के शाही परिवार से था। अठारहवीं शताब्दी में यह इस क्षेत्र का प्रमुख शासक परिवार रहा था, जब तक कि यूरोप ने इस क्षेत्र पर अधिकार नहीं कर लिया।
नेल्सन अपनी पिता की तीसरी पत्नी नेक्यूफी नोसकेनी की पहली संतान थे। कुल मिलाकर वह तेरह भाइयों में तीसरे थे। लोग उम्मीद कर रहे थे कि वह परिवार की परंपरा के अनुसार शाही सलाहकार बनेंगे। नेल्सन की मां एक 'मेथडिस्ट' थीं। वह मेथडिस्ट मिशनरी स्कूल के विद्यार्थी बने। इसी बीच बारह साल की उम्र में ही नेल्सन के सिर से पिता का साया उठ गया। नेल्सन ने क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल से अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी की।
रंगभेद से साक्षात्कार
विद्यार्थी जीवन में उन्हें रोज याद दिलाया जाता कि उनका रंग काला है और सिर्फ इसी वजह से वह यह काम नहीं कर सकते। उन्हें रोज इस बात का एहसास करवाया जाता कि अगर वे सीना तान कर सड़क पर चलेंगे तो इस अपराध के लिए उन्हें जेल जाना पड़ सकता है। ऐसे अन्याय ने उनके अंदर असंतोष भर दिया। एक क्रांतिकारी तैयार हो रहा था। उन्होंने हेल्डटाउन से अपनी स्नातक शिक्षा पूरी की। हेल्डटाउन अश्वेतों के लिए बनाया गया एक विशेष कॉलेज था। यहीं पर उनकी मुलाकात ऑलिवर टाम्बो से हुई, जो जीवन भर के लिए उनके दोस्त और सहयोगी गए। 1940 तक नेल्सन मंडेला और ऑलिवर टाम्बो ने कॉलेज कैंपस में अपने राजनीतिक विचारों और कार्यकलापों से लोकप्रियता पा ली। कॉलेज प्रशासन को जब इस बात का पता लगा तो दोनों को कॉलेज से निकाल दिया गया और परिसर में उनके प्रवेश पर प्रतिबंध लगा दिया गया। फोर्ट हेयर उनके क्रियाकलापों के मूर्त गवाह के रूप में आज भी खड़ा है। कॉलेज से निकाल दिए जाने के बाद मंडेला माता-पिता के पास ट्रांस्की लौट आए।
परिवार से विद्रोह
उन्हें क्रांति की राह पर देखकर परिवार परेशान था और चाहता था कि वह हमेशा के लिए घर लौट आएं। जल्दी ही एक लड़की पसंद की गई जिससे नेल्सन को पारिवारिक जिम्मेदारियों में बांध दिया जाए। घर में विवाह की तैयारियां जोर-शोर से चल रही थीं, दूसरी ओर नेल्सन का मन उद्वेलित था और आखिर में उन्होंने अपने निजी जीवन को दरकिनार करने का फैसला किया और घर से भागकर जोहान्सबर्ग आ गए। वह जोहान्सबर्ग की विशाल सड़कों पर यायावर की तरह भटक रहे थे। नेल्सन ने एक सोने की खदान में चौकीदार की नौकरी करना शुरू कर दिया। जोहान्सबर्ग की एक बस्ती अलेक्जेंडरा उनका ठिकाना थी।
सहयोगी
नेल्सन ने अपनी मां के साथ जोहान्सबर्ग में ही रहने का इरादा किया। इसी जगह पर उनकी मुलाकात वाल्टर सिसुलू और वाल्टर एल्बरटाइन से हुई। नेल्सन के राजनीतिक जीवन को इन दो हस्तियों ने बहुत प्रभावित किया। नेल्सन ने जीवनयापन के लिए एक कानूनी फर्म में लिपिक की नौकरी कर ली, लेकिन वे लगातार अपने आपसे लड़ रहे थे। वह देख रहे थे कि उनके अपने लोगों के साथ इसलिए भेद किया जा रहा था क्योंकि प्रकृति ने उनको दूसरों से अलग रंग दिया था। इस देश में अश्वेत होना अपराध की तरह था। वे सम्मान चाहते थे और उन्हें लगातार अपमानित किया जाता था। रोज कई बार याद दिलाया जाता कि वे अश्वेत हैं और ऐसा होना किसी अपराध से कम नहीं है।
विवाह का निर्णय
1944 में नेल्सन की जिंदगी में इवलिन मेस आई और दोनों शादी के बंधन में बंध गए। इवलिन उनके सहयोगी और मित्र वाल्टर सिसुलू की बहन थीं। वह इन्हीं दिनों अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस में शामिल हो गए। जल्दी ही उन्होंने टाम्बो, सिसुलू और अपने कुछ साथियों के साथ मिलकर अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग का निर्माण किया। 1947 में मंडेला इस संस्था के सचिव चुन लिए गए। साथ ही उन्हें ट्रांन्सवाल एएनसी का अधिकारी भी नियुक्त किया गया।
शिक्षा और राजनीति
नेल्सन की विचार शैली और काम करने की क्षमता से लोग प्रभावित होने लगे। एक महान नेता धीरे-धीरे जन्म ले रहा था। इसी बीच अपने आप को कानून का बेहतर जानकार बनाने के लिए नेल्सन ने कानून की पढ़ाई शुरू कर दी, लेकिन अपनी व्यस्तता के कारण वे एलएलबी की परीक्षा पास करने में विफल रहे। इस विफलता के बाद उन्होंने एक वकील के तौर पर काम करने के बजाय अटार्नी के तौर पर काम करने के लिए पात्रता परीक्षा पास करने का फैसला किया। इसी बीच अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस को चुनावों में करारी पराजय का सामना करना पड़ा। कांग्रेस के अध्यक्ष को पद से हटाकर किसी नए अध्यक्ष को लाने की मांग जोर पकड़ने लगी। यूथ कांग्रेस के विचारों को अपनाकर मुख्य पार्टी को आगे बढ़ाने का विचार रखा गया। वाल्टर सिसुलू ने एक कार्ययोजना का निर्माण किया, जो अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस के द्वारा स्वीकार कर लिया गया। 1951 में नेल्सन को यूथ कांग्रेस का अध्यक्ष चुन लिया गया। नेल्सन ने अपने लोगों को कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए 1952 में एक कानूनी फर्म की स्थापना की।
गांधी जी का प्रभाव
यह वह दौर था जब पूरी दुनिया महात्मा गांधी से प्रभावित हो रही थी, नेल्सन भी उनमें से एक थे। वैचारिक रूप से वह स्वयं को गांधी के नजदीक पाते थे और यह प्रभाव उनके द्वारा चलाए गए आंदोलनों पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा था। कुछ ही समय में उनकी फर्म देश की पहली अश्वेतों द्वारा चलाई जा रही फर्म हो गई, लेकिन नेल्सन के लिए वकील का रोजगार और राजनीति को एक साथ लेकर चलना मुश्किल साबित हो रहा था। इसी दौरान उन्हें ट्रांसवाल कांग्रेस का अध्यक्ष बना दिया गया। जिम्मेदारियां बढ़ती जा रही थीं।
लोकप्रियता और कांग्रेस
सरकार को नेल्सन की बढ़ती हुई लोकप्रियता बिल्कुल पसंद नहीं आ रही थी और उन पर प्रतिबंध लगा दिया गया। उनको वर्गभेद के आरोप में जोहान्सबर्ग के बाहर भेज दिया गया और उन पर किसी तरह की बैठक में भाग लेने पर रोक लगा दी गई। अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस का भविष्य ही दांव पर लग गया था। सरकार के दमनचक्र से बचने के लिए नेल्सन और ऑलिवर टाम्ब ने एक एम प्लान बनाया। यहां पर एम से मतलब मंडेला से था। फैसला लिया गया कि कांग्रेस को टुकड़ों में तोड़कर काम किया जाए और जरूरत पड़े तो भूमिगत रहकर भी काम किया जाएगा। प्रतिबंध के बावजूद नेल्सन भागकर क्लिप टाउन पहुंच गए और कांग्रेस के जलसों में भाग लेने लगे। लोगों की भीड़ की आड़ में बचते हुए उन्होंने उन तमाम संगठनों के साथ काम किया, जो अश्वेतों की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे थे।
इसी दौरान उन्हें आम लोगों के साथ ज्यादा से ज्यादा वक्त बिताने का मौका मिला और उनमें जनमानस को समझने की समझ विकसित हुई। धीरे-धीरे अश्वेतों के अधिकारों के लिय चलाए जा रहे आंदोलन में उनकी सक्रियता बढ़ती ही चली गई। आंदोलन में अपनी व्यस्तता के कारण वे परिवार को समय नहीं दे पा रहे थे। पत्नी एल्विन से उनकी दूरियां बढ़ती ही चली गई और आखिर में वह वक्त भी आ गया जब हमेशा के लिए साथ निभाने और साथ चलने का वादा कर चुकीं एल्विन ने उनका साथ छोड़ दिया। नेल्सन के लिए यह एक व्यक्तिगत क्षति थी। लेकिन उन्हें कहीं बड़े लक्ष्य के लिए काम करना था।
आंदोलन और नेल्सन
आंदोलन और नेल्सन जीवनसंगी बन गए। नेल्सन के नेतृत्व में आंदोलन की तीव्रता बढ़ती ही जा रही थी। सरकार बुरी तरह से घबराई हुई थी। इसी बीच एएनसी ने स्वतंत्रता का चार्टर स्वीकार किया और इस कदम ने सरकार का संयम तोड़ दिया। पूरे देश में गिरफ्तारियों का दौर शुरू हो गया। एएनसी के अध्यक्ष और नेल्सन के साथ पूरे देश से रंगभेद का आंदोलन का समर्थन करने वाले एक सौ छप्पन नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया। आंदोलन नेतृत्व विहीन हो गया। नेल्सन और साथियों पर देश के खिलाफ युद्ध छेड़ने और देशद्रोह करने का आरोप लगाया गया। इस अपराध की सजा मृत्युदंड थी। इन सभी नेताओं के खिलाफ मुकदमा चलाया गया और 1961 में नेल्सन और 29 साथियों को निर्दोष घोषित करते हुए रिहा कर दिया गया। इसी मुकदमे के दौरान नेल्सन की मुलाकात नोमजामो विनी मेडीकिजाला से हुई, जो जल्दी ही उनकी दूसरी जीवन संगिनी बन गई।
अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस और नेल्सन
सरकार के द्वारा चलाया गया दमनचक्र अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस और नेल्सन का जनाधार बढ़ा रहा था। लोग संगठन से जुड़ने लगे और आंदोलन दिन प्रतिदिन मजबूत होता जा रहा था। रंगभेदी सरकार आंदोलन को तोड़ने के लिए हर संभव प्रयास कर रही थी। इसी बीच कुछ ऐसे कानून पास किए गए, जो अश्वेतों को नागवार थे। नेल्सन ने इन कानूनों का विरोध करने के लिए प्रदर्शन किया। इसी तरह के एक प्रदर्शन में दक्षिण अफ्रीकी पुलिस ने शार्पविले शहर में प्रदर्शनकारियों पर गोलियों की बौछार कर दी। 180 लोग मारे गए और 69 लोग घायल हुए। इस तरह की घटनाओं और सरकार द्वारा चलाए जा रहे क्रूर दमनचक्र ने नेल्सन का अहिंसा पर से विश्वास उठा दिया।
नए दल का गठन
रंगभेदी सरकार सभी सीमाओं को तोड़ती जा रही थी। दक्षिण अफ्रीका की जमीन अत्याचारों के रंग से सुर्ख लाल हो चुकी थी। एएनसी और दूसरे प्रमुख दल ने हथियाबंद लड़ाई लड़ने का फैसला लिया। दोनों ने ही अपने लड़ाका दल विकसित करने शुरू कर दिए। नेल्सन अपनी मौलिक राह छोड़कर एक दूसरे रास्ते पर निकल पड़े, जो उनके उसूलों से मेल नहीं खाता था। एएनसी के लड़ाके दल का नाम रखा गया, 'स्पीयर आफ दी नेशन' और नेल्सन को इस नए गुट का अध्यक्ष बना दिया गया। वे नए रास्ते पर पूरे जोश के साथ निकल पड़े। बस रास्ता नया था, मंजिल अभी भी वही थी-अपने लोगों के लिए न्याय और सम्मान। इस कदम ने रही-सही कसर पूरी कर दी और रंगभेदी सरकार ने नेल्सन के दल पर प्रतिबंध लगा दिया। दमनचक्र अपने पूरे जोर पर था। बौखलाई सरकार कोई भी कसर नहीं छोड़ नहीं थी। पूरी दुनिया में इस काम के लिए सरकार की आलोचना हो रही थी। मानवाधिकार संगठन इस हैवानी कृत्य की तरफ पूरी दुनिया का ध्यान आकर्षित करवा रहे थे। नेल्सन वैश्रि्वक नेता के तौर पर उभर रहे थे। सरकार का पूरा ध्यान नेल्सन को गिरफ्तार कर पूरे संगठन को खत्म करने में था। इस त्रासदी से बचने के लिए उन्हें चोरी से देश के बाहर भेज दिया गया, ताकि वे स्वतंत्र रहकर अपने लोगों का नेतृत्व कर सकें। देश के बाहर आते ही उन्होंने सबसे पहले अदीस अबाबा में अफ्रीकी नेशनलिस्ट लीडर्स कांफ्रेंस को संबोधित किया और बेहतर जीवन के अपने आधारभूत अधिकार की मांग की। वहां से निकलकर वे अल्जीरिया चले गए और लड़ने की गुरिल्ला तकनीक का गहन प्रशिक्षण लिया। इसके बाद उन्होंने लंदन की राह पकड़ी जहां ओलिवर टाम्बो एक बार फिर उनके साथ आ मिले। लंदन में विपक्षी दलों के साथ उन्होंने मुलाकात की और अपनी बात को पूरी दुनिया के सामने समझाने की कोशिश की। इसके बाद वे एक बार फिर दक्षिण अफ्रीका पहुंचे। वहां की सरकार उनके स्वागत के लिए एकदम तैयार थी, और पहुंचते ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
जेल और नेल्सन
नेल्सन को पूरे पांच साल की सजा सुनाई गई। आरोप लगा कि वे अवैधानिक तरीके से देश से बाहर गए। सरकार अभी भी उन्हें किसी क्रांति का नेता मानने को तैयार नहीं थी। एक आदमी ने पूरी सरकार को डरा रखा था। इसी बीच जोहानसबर्ग के लीलीसलीफ में सरकार ने छापा मारकर एसके मुख्यालय को तहस-नहस कर दिया। एमके के सभी बड़े नेता पकड़े गए और नेल्सन सहित सभी लोगों पर देश के खिलाफ लड़ने का आरोप तय किया गया। उनके सहित पांच और लोगों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई। आम जनता से दूर रखने के लिए उन्हें रोबन द्वीप पर भेज दिया गया। यह दक्षिण अफ्रीका का कालापानी माना जाता है।
नेल्सन की जीत
जेल जाने से पहले अदालत को अपने बयान से संबोधित करते हुए नेल्सन ने कहा-'अपने पूरे जीवन के दौरान मैंने अपना सबकुछ अफ्रीकी लोगों के संघर्ष में झोंक दिया। मैं श्वेत रंगभेद के खिलाफ लड़ा हूं, और मैं अश्वेत रंगभेद के खिलाफ भी लड़ा हूं। मैंने हमेशा एक मुक्त और लोकतांत्रिक समाज का सपना देखा है। जहां सभी लोग एक साथ पूरे सम्मान, प्रेम और समान अवसर के साथ अपना जीवन यापन कर पाएंगे। यही वह आदर्श है, जो मेरे लिए जीवन की आशा बनी और मैं इसी को पाने के लिए जिंदा हूं, और अगर कहीं जरूरत है कि मुझे इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए मरना पड़े तो मैं इसके लिए भी पूरी तरह से तैयार हूं।'
अदालत में उपस्थित हर एक आत्मा नेल्सन का ही समर्थन कर रही थी। इन शब्दों ने दक्षिण अफ्रीकी आंदोलन को हमेशा एक नई ऊर्जा दी। 1976 में पुलिस मंत्री जिमी क्रूगर नेल्सन के पास सरकार की तरफ से एक प्रस्ताप लेकर आए कि अगर वे आंदोलन को समाप्त कर दें तो सरकार उन्हें मुक्त कर ट्रांस्की में बसने की अनुमति दे देगी। रंगभेदी सरकार पर पूरी दुनिया से दबाव बढ़ता जा रहा था। इन दबावों ने असर दिखाया और नेल्सन तथा सिसुलू को रोबन द्वीप से अफ्रीका लाकर केपटाउन के नजदीक पाल्समूर जेल में रखा गया। यह नेल्सन की नेता के तौर पर जीत थी। अपने प्रभाव से वे सरकार को झुकाने में सफल रहे। इसी बीच उनकी तबीयत खराब हुई। सरकार ने आपातकाल घोषित कर दिया। नेल्सन को तत्काल अस्पताल ले जाया गया। प्रोस्टेड ग्लेंड का आपरेशन सफल रहा। इस घटना के बाद सरकार नेल्सन के प्रति थोड़ी नरम हुई।
जेल और खराब स्वास्थ्य
कानून मंत्री कोबी कोएत्जी ने उनसे आग्रह किया कि वे आजादी प्राप्त करने के अपने लक्ष्य में हिंसा का रास्ता त्याग दें। हालांकि नेल्सन ने एक बार फिर से साफ इन्कार कर दिया, लेकिन सरकार ने उन पर रियायतों की झड़ी लगा दी। उन्हें परिवार से मिलने की छूट दी गई। साथ ही वे अब एक जेल वार्डन के साथ केपटाउन में घूमने भी जा सकते थे। काफी लंबे अरसे के बाद नेल्सन ने बाहरी दुनिया की खुली हवा में सांस लेना शुरू किया था। एक प्रेमिल व्यक्ति अपनी सबसे बड़ी इच्छा डूबते हुए सूरज को देखना और साथ में बेहतरीन संगीत सुनना, पूरी करने के लिए तरस गया था। एक साक्षात्कार के दौरान नेल्सन ने स्वीकार किया कि उन्होंने अपनी जिंदगी में इन चीजों की कमी महसूस की, लेकिन लक्ष्य ज्यादा बड़ा था। 1983 एक बार फिर से नेल्सन के लिए मौत करीब ले आया। जांच में पाया गया कि उन्हें टीबी हो गया है। उपचार देने के लिए उन्हें बेहतर जगह की जरूरत थी। उन्हें पार्ल के नजदीक विक्टर जेल में पहुंचा दिया गया। जिंदगी बस निकली जा रही थी। संघर्ष पक रहा था और आखिर में रंगभेद के दिन लदते हुए दिखाई देने लगे। 1989 में दक्षिण अफ्रीका में सत्ता परिवर्तन हुआ और उदार एफ डब्ल्यू क्लार्क देश के मुखिया बने। सत्ता संभालते ही उन्होंने सभी अश्वेत दलों पर लगा हुआ प्रतिबंध हटा लिया। साथ ही सभी राजनीतिक बंदियों को आजाद कर दिया गया जिन पर किसी तरह का आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं था। नेल्सन भी उनमें से एक थे। जिंदगी की शाम में आजादी का सूर्य नेल्सन के जीवन को रोशन करने लगा। 11 फरवरी, 1990 को नेल्सन आखिर में पूरी तरह से आजाद कर दिए गए।
आजादी की ओर
अश्वेतों को उनका अधिकार दिलवाने के लिए 1991 में 'कनवेंशन फॉर ए डेमोक्त्रेटिक साउथ अफ्रीका' या 'कोडसा' का गठन कर दिया गया, जो देश के संविधान में आवश्यक परिवर्तन करने वाली थी। डी क्लार्क और मंडेला ने इस काम में अपनी समान भागीदारी निभाई। अपने इस उत्कृष्ट कार्य के लिए ही उन्हें नोबेल पुरस्कार दिया गया।
भारत रत्न
1990 में भारत सरकार की ओर से नेल्सन मंडेला को भारत रत्न पुरस्कार दिया गया।
नोबल पुरस्कार
अपने इस उत्कृष्ट कार्य के लिए ही 1993 में नेल्सन मंडेला और डी क्लार्क दोनों को संयुक्त रूप से शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया।
राजनीतिक जीत
ठीक अगले साल दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद रहित चुनाव हुए। अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस ने सबको पछाड़ते हुए 62 फीसद मतों पर अपना कब्जा कर लिया। 10 मई, 1994 को अश्वेतों के लिए दक्षिण अफ्रीका की उस भूमि पर नेल्सन मंडेला ने अपनी जनता को संबोधित करते हुए कहा-'आखिरकार हमने अपने राजनीतिक लक्ष्य को प्राप्त कर ही लिया। हम अपने आप से वादा करें कि हम अपने सभी लोगों को आजादी देंगे, गरीबी से, मुश्किलों से, तकलीफों से, लिंगभेद से और किसी भी तरह के शोषण से और कभी भी इस ख़ूबसूरत धरती पर एक-दूसरे के साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं किया जाएगा। स्वतंत्रता का लुत्फ उठाइए। ईश्वर अफ्रीका पर अपनी कृपा बनाए रखे।'
नेल्सन के इस संबोधन ने अफ्रीका के श्वेत लोगों के मन से डर को निकाल दिया, जो देश की बहुसंख्यक जनता का प्रतिनिधित्व करती थी। जिसे युगों से उनके द्वारा प्रताड़ित और शोषित किया गया था।
सक्रिय राजनीति से किनारा
1997 में नेल्सन ने सक्त्रिय राजनीति जीवन से किनारा कर लिया।
1999 में उन्होंने दल के अध्यक्ष पद को भी छोड़ दिया।
विनी मंडेला से अलग होने के बाद अपने 80वें जन्मदिन पर ग्रेस मेकल से विवाह किया।
नेल्सन ने आजादी की लड़ाई में अपना सौ फीसद दिया। लोग समझते थे कि नेल्सन अब रिटायर हो गए हैं, लेकिन वे खुद ऐसा नहीं मानते थे। उन्होंने कहा था-मैंने एक सपना देखा है, सबके लिए शांति हो, काम हो, रोटी हो, पानी और नमक हो। जहां हम सबकी आत्मा, शरीर और मस्तिष्क को समझ सके और एक-दूसरे की जरूरतों को पूरा कर सकें। ऐसी दुनिया बनाने के लिए अभी मीलों चलना बाकी है। हमें अभी चलना है, चलते रहना है।
संक्षिप्त परिचय
पूरा नाम : नेल्सन रोहिल्हाला मंडेला
जन्म : 18 जुलाई, 1918
जन्मभूमि : मम्बासा नदी के किनारे मवेजों गांव, ट्रांस्की
माता-पिता : गेडला हेनरी (पिता), नेक्यूफी नोसकेनी (माता)
जीवन संगिनी : इवलिन मेस (प्रथम पत्नी), नोमजामो विनी मेडीकिजाला (द्वितीय पत्नी) तथा ग्रेस मेकल (तीसरी पत्नी)
नागरिकता : दक्षिण अफीका
प्रसिद्धि : रंगभेद विरोधी नेता के रूप में ख्याति प्राप्त
पार्टी : अफ्रीकन नेशनल कांग्रेस यूथ लीग
पद : पूर्व राष्ट्रपति दक्षिण अफ्रीका
शिक्षा : मेथडिस्ट मिशनरी स्कूल, क्लार्कबेरी मिशनरी स्कूल और हेल्डटाउन कॉलेज [स्नातक]
पुरस्कार-उपाधि : भारत रत्न (1990 ई.), नोबेल पुरस्कार (1993 ई.)
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