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पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून का कहर, नवजात समेत तीन की हत्या

पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर ईशनिंदा कानून का कहर जारी है। अहमदी संप्रदाय के एक युवक पर संदिग्ध ईशनिंदा सामग्री सोशल साइट पर पोस्ट करने का आरोप लगने के बाद भड़की भीड़ ने गुजरांवाला में समुदाय की एक महिला और उसकी दो पोतियों की हत्या कर दी। पुलिस के मुताबिक मारी गई बच्चियों में एक सात वर्ष की आ

By Edited By: Published: Mon, 28 Jul 2014 11:59 PM (IST)Updated: Mon, 28 Jul 2014 11:59 PM (IST)
पाकिस्तान में ईशनिंदा कानून का कहर, नवजात समेत तीन की हत्या

इस्लामाबाद। पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों पर ईशनिंदा कानून का कहर जारी है। अहमदी संप्रदाय के एक युवक पर संदिग्ध ईशनिंदा सामग्री सोशल साइट पर पोस्ट करने का आरोप लगने के बाद भड़की भीड़ ने गुजरांवाला में समुदाय की एक महिला और उसकी दो पोतियों की हत्या कर दी। पुलिस के मुताबिक मारी गई बच्चियों में एक सात वर्ष की और दूसरी उसकी नवजात बहन थी।

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पुलिस ने बताया कि रविवार को गुजरांवाला में युवकों के बीच कहासुनी से ¨हसा शुरू हुई। इनमें एक युवक अहमदी संप्रदाय का था, जिस पर आपत्तिजनक सामग्री फेसबुक पर पोस्ट करने का आरोप है। इसके बाद करीब 150 लोग थाने आए और आरोपी के खिलाफ ईशनिंदा का मामला दर्ज करने की मांग करने लगे। पुलिस बातचीत कर ही रही थी कि कुछ लोगों ने हमला कर दिया।

हमले में फेसबुक पर आपत्तिजनक पोस्ट करने का आरोपी घायल नहीं हुआ। अहमदी समुदाय के लोगों ने बताया कि भीड़ के हमले के बाद उन्होंने पड़ोसियों को सुरक्षित जगहों पर पहुंचाया। हमलावर लूटपाट में जुट गए। वे फर्नीचर बाहर निकालकर जलाने लगे। घरों में भी आग लगा दी गई। कुछ लोग हवा में गोलियां चला रहे थे। उन्होंने आरोप लगाया कि पुलिस की मौजूदगी में फसाद चलता रहा। समुदाय के प्रवक्ता सलीम उद्दीन ने इसे चार साल में सबसे बड़ा हमला बताया है। चार साल पहले समुदाय के पूजास्थलों पर हमले कर 86 अहमदी की हत्या की गई थी।

अहमदी खुद को मुस्लिम मानते हैं। पैगंबर में विश्वास करते हैं। पाकिस्तान में 1984 के एक कानून में उन्हें गैर-मुस्लिम घोषित किया जा चुका है, लेकिन बहुत से पाकिस्तानी उन्हें धर्मविरोधी मानते हैं। कानून के तहत अहमदी समुदाय के नमाज पढ़ने पर प्रतिबंध है। यहां तक कि वे अपने पूजास्थल को मस्जिद भी नहीं कह सकते। पाकिस्तान के मानवाधिकार आयोग के मुताबिक, पिछले साल ईशनिंदा के 68 मामले सामने आए थे, जबकि 2011 में केवल एक। ज्यादातर मामलों में व्यक्तिगत झगड़ों और संपत्ति विवाद के चलते दूसरे पक्ष को इस कानून में फंसा दिया जाता है। साफ है कि देश में ईशनिंदा कानून का दुरुपयोग बढ़ता जा रहा है।

पढ़ें: पाकिस्तान में अहमदी समुदाय के छह लोगों पर ईशनिंदा का आरोप

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