भोपाल के भगोड़े एंडरसन की गुमनाम मौत
भोपाल गैस त्रासदी में हजारों लोगों की मौत का कारण बनी यूनियन कार्बाइड कंपनी के प्रमुख वॉरेन एंडरसन की अमेरिका में मौत हो गई है।
न्यूयॉर्क। भोपाल गैस त्रासदी में हजारों लोगों की मौत का कारण बनी यूनियन कार्बाइड कंपनी के प्रमुख वॉरेन एंडरसन की अमेरिका में मौत हो गई है। वह 92 साल के थे। न्यूयॉर्क टाइम्स के अनुसार, एंडरसन की मौत 29 सितंबर को फ्लोरिडा के वीरो बीच स्थित घर में हुई, उस वक्त घरवालों ने इस बात की घोषणा नहीं की थी।
नहीं हैं एंडरसन से संबंधित अभिलेख
यूनियन कार्बाइड जहरीली गैस रिसाव न्यायिक जांच आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एसएल कोचर को भारत सरकार के कैबिनेट सचिव ने बताया था कि एंडरसन की गिरफ्तारी, रिहाई एवं वापसी के लिए निर्देश से संबंधित कोई अभिलेख उनके यहां उपलब्ध नहीं है।
मौखिक आदेश पर हुआ था रिहा
भोपाल गैस हादसे के लिए जिम्मेदार यूनियन कार्बाइड के प्रमुख एंडरसन की गिरफ्तारी आदेश तो लिखित में दिया गया था। मगर, उसकी रिहाई मौखिक आदेश पर हुई थी। तत्कालीन पुलिस अधीक्षक स्वराज पुरी ने एक सदस्यीय जस्टिस कोचर जांच आयोग के सामने यह खुलासा किया था।
पुरी ने बताया कि सात दिसंबर को राज्य सरकार की मांग पर केंद्र सरकार ने सीबीआई को जांच के लिए सौंप दिया गया। सात दिसंबर की सुबह तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व. अर्जुन सिंह ने बैठक बुलाई।
इस बैठक में कहा गया कंपनी के मालिक वॉरेन एंडरसन, केशव महेंद्रा और विजय गोखले इंडियन एयरलाइंस से भोपाल आ रहे हैं। लिहाजा तीनों व्यक्तियों को गिरफ्तार किया जाए। पुरी ने बताया कि गिरफ्तारी का आदेश लिखित में दिया गया था। मगर, वायरलेस सेट पर मिले संदेश पर एंडरसन को रिहा कर दिया गया था।
भोपाल गैस त्रासदी
02 दिसंबर, 1984 को घटित भोपाल गैस त्रासदी भारत के इतिहास में वह काला अध्याय है जिसे शायद ही कभी भुलाया जा सकेगा. भोपाल स्थित यूनियन कार्बाइड प्लांट में 2 दिसंबर को आधी रात में मिथाइल आइसोनेट (एमआईसी) के रिसाव के कारण हजारों की तादाद में लोगों की मृत्यु हो गई. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक इस दुर्घटना के कुछ ही घंटों के भीतर तीन हज़ार लोग मारे गए थे। लेकिन हमेशा की तरह यह सिर्फ सरकारी आंकड़ा था और मरने वाली की संख्या और भी ज्यादा थी।
घोर लापरवाही के कारण गैस कार्बाइड कारखाने से मिथाइल आइसोसायनाइड गैस का रिसाव हुआ था। मिथाइल आइसोसायनाइड के रिसाव ने न सिर्फ फैक्टरी के आसपास की आबादी को अपने चपेट मे लिया था, बल्कि हवा के झोकों के साथ दूर-दूर तक निवास करने वाली आबादी तक अपना कहर फैलाया था। गैस रिसाव से सुरक्षा का इंतजाम तक नहीं था। दो दिन तक फैक्टरी से जहरीली गैसों का रिसाव होता रहा. फैक्टरी के अधिकारी गैस रिसाव को रोकने के इंतजाम करने की जगह खुद भाग खड़े हुए थे. गैस का रिसाव तो कई दिन पहले से ही हो रहा था। फैक्टरी के आसपास रहने वाली आबादी कई दिनों से बैचेनी महसूस कर रही थी. इतना ही नहीं, बल्कि उल्टी और जलन जैसी बीमारी भी घातक तौर पर फैल चुकी थी। उदासीन और लापरवाह कंपनी प्रबंधन ने इस तरह मिथाइल गैस आधारित बीमारी पर गौर ही नहीं किया था।
मिथाइल आइसोसायनाइड गैस की चपेट में आने से करीब 15 हजार लोगों की मौत हुई थी। पांच लाख से अधिक लोग घायल हुए थे। जहरीली गैस के चपेट में आने से सैकड़ों लोगों की बाद में मौत हो गई. यही नहीं, आज भी हजारों पीड़ित ऐसे हैं, जो जहरीली गैस के प्रभाव से मुक्त नहीं हैं। भोपाल गैस कार्बाइड के आसपास की भूमि जहरीली हो गई है।
सबसे बड़ी बात यह है कि भोपाल गैस कांड के बाद में जन्म लेने वाली पीढ़ी भी मिथाइल गैस के प्रभाव से पीड़ित है और उसे कई खतरनाक बीमारियां विरासत में मिली हैं। इस हादसे ने देश को झकझोर कर रख दिया। लेकिन इससे भी दर्दनाक था इस मामले में सरकार का रवैया यूनियन कार्बाइड के मालिक वारेन एंडरसन को बचाने की सरकार ने पुरजोर कोशिश की। किसी भी अनहोनी से बचने के लिए उसे देश से बाहर जाने का रास्ता दिया गया जिसके बाद से वह कभी भारत के हाथ नहीं लगा।
और तो और न्यायालय ने भी अपने फैसले से उन तमाम लोगों की मौत का मजाक बनाया जिसमें उसने सात दोषियों को दो साल की सजा और एक लाख रुपये से अधिक का जुर्माना लगाया लेकिन सजा सुनाने के कुछ ही देर बाद सभी आरोपियों को जमानत पर रिहा कर दिया गया।
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