जीन थेरैपी से नेत्रहीनों की रोशनी वापस लाना होगा संभव
अब नेत्रहीनों को रोशनी दिखाने के लिए नयी राह खोजी गयी है। अमेरिकी शोधकर्ताओं ने नेत्रहीनों के खराब कोशिकाओं को हटाकर नये के निर्माण करने का रास्ता निकाल लिया है।
नई दिल्ली। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने नेत्रहीनों के लिए नयी उम्मीद की किरण को खोज निकाला है। दस साल तक जानवरों पर शोध करने के बाद पहली बार वे मानव पर ऐसा प्रयोग करने जा रहे हैं जिसमें कामयाबी हासिल हो जाने के बाद लाखों लोगों की आंखों की रोशनी आंशिक रूप से वापस लौटाई जा सकेगी।
मिशिगन में रेट्रो सेंस थेराप्युटिक्स कंपनी द्वारा प्रायोजित इस प्रयोग में 15 नेत्रहीनों की आंखों में डीएनए के साथ हानिरहित वायरस का टीका लगाया जाएगा। मानव पर ऐसा अनुसंधान पहली बार किया जाएगा। इसे ओप्टोजेनेटिक्स नाम दिया गया है जिसमें स्नायु तंत्र को जेनेटिकली मॉडिफाइड करके प्रकाश के प्रति संवेदनशील बनाया जाएगा।
फोटोरिसेप्टर कोशिकाएं:
साउथ वेस्ट रेटिना फाउंडेशन के चिकित्सक यह प्रयोग करने जा रहे हैं। इसमें फोटोरिसेप्टर(प्रकाश को तरंगों में परिवर्तित करने वाली कोशिका जो रेटिना में होती है) का काम किसी अन्य कोशिका से लिया जाएगा ताकि रोशनी वापस लौट सके। आंखों कीे कोशिकाओं का समूह प्रकाश को इलेक्टि्रक तरंगों में बदल देता है, इसके बाद इनका प्रसंस्करण होता है और मस्तिष्क में तस्वीर बनने की प्रक्रिया पूरी होती है।
विकारों का समूह:
फोटोरिसेप्टर कोशिकाएं इस श्रृंखला की पहली कड़ी का काम करती हैं। ये प्रकाश के प्रति बेहद संवेदनशील होती हैं। रेटिनिस पिगमेंटोस( जेनेटिक विकारों का समूह) इन कोशिकाओं को विकृत कर देता है जिससे व्यक्ति का पहले आस पास का सतही विजन खराब होता है, फिर रात को दिखाई देना बंद हो जाता है और अंतत: पूरी तरह नेत्रहीन हो जाता है।
नई कोशिकाएं:
नए प्रयोग में विकृत फोटोरिसेप्टर कोशिकाओं को दरकिनार(बाइपास) करके रेटिना के अंदरूनी हिस्से में कोशकाएं( गैंगलियोन) बनाई जाएंगी जो प्रकाश के प्रति संवेदनशील होंगी और उसे तरंगों में तबदील करेंगी। डीएनए साथ मिला कर इंजेक्शन से वायरस आंख में डाले जाने से गैंगलियोन कोशिकाओं से प्रकाश के प्रति संवेदनशील प्रोटीन बनना शुरू होगा। इस प्रक्रिया के दौरान मस्तिष्क की प्रतिक्रिया नियंत्रित रखने के लिए उसके एक खास स्थान पर फाइबर ऑप्टिक भी लगाया जाएगा।
शोधकर्ता उत्साहित:
नेशनल आइ इंस्टीट्यूट के निदेशक थॉमस ग्रीनवेल तथा रेटिना फाउंडेशन के निदेशक यी जूंग के अनुसार प्रयोग का परिणाम आने का इंतजार करना चाहिए। इससे पहले ऐसा प्रयोग चूहों और बंदरों पर किया जा चुका है जो पूरी तरह सफल रहा था। निदेशकों के अनुसार सबसे अहम चुनौती यह है कि पशुओं पर किया गया प्रयोग क्या मानव पर सफल हो पाएगा। हम बेहद उत्साहित और रोमांचित हैं।