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Lok Sabha Election 2024: देवभूमि के राजनीतिक समर में कसौटी पर यह 11 मुद्दे, मतदाताओं पर दिखाई दे रहा असर

Lok Sabha Election 2024 देवभूमि उत्तराखंड से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लगाव किसी से छिपा नहीं है। लोकसभा की पांच सीटों वाले इस राज्य में माहभर चले इस अभियान के दौरान राजनीतिक समर में तमाम मुद्दों की गूंज रही। कौन सा मुद्दा निर्णायक रहेगा इसका पता तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही चलेगा लेकिन पूरे प्रचार अभियान के बाद कुछ मुद्दों का असर मतदाताओं पर दिखाई दे रहा है।

By kedar dutt Edited By: Nirmala Bohra Published: Thu, 18 Apr 2024 12:47 PM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2024 12:47 PM (IST)
Lok Sabha Election 2024: राज्य के गांवों से पलायन का सिलसिला आज भी थमा नहीं है।

केदार दत्त, जागरण, देहरादून: Lok Sabha Election 2024: देवभूमि उत्तराखंड में चुनाव प्रचार थम चुका है। लोकसभा की पांच सीटों वाले इस राज्य में माहभर चले इस अभियान के दौरान राजनीतिक समर में तमाम मुद्दों की गूंज रही। पहाड़ से लेकर तराई तक राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे खूब उछले तो राज्य और नितांत स्थानीय मुद्दे भी फिजां में तैरते रहे।

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देवभूमि से विशेष अनुराग रखने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वाभाविक रूप से पूरे चुनावी अभियान के केंद्र में रहे तो अयोध्या में श्रीराम मंदिर का निर्माण, अनुच्छेद 370 की समाप्ति, अग्निपथ योजना, राष्ट्रीय सुरक्षा, उत्तराखंड में डबल इंजन का दम, समान नागरिक संहिता की पहल, पलाायन, कानून व्यवस्था, पेपर लीक, सशक्त भू-कानून, मानव-वन्यजीव संघर्ष, महिला सशक्तीकरण, पर्यावरण जैसे विषयों के साथ ही स्थानीय स्तर के मुद्दे भी निरंतर उठते रहे। इन सबको लेकर वादों, दावों का भी दौर निरंतर चला।

मतदाताओं ने खामोशी के साथ सभी को सुना, कसौटी पर परखा, लेकिन राजनीतिक दलों और प्रत्याशियों को अपने मन की थाह नहीं लेने दी। यद्यपि, तमाम मुद्दों में से कुछ मतदाताओं के मन में घर अवश्य कर गए हैं। इस परिदृश्य में कौन सा मुद्दा निर्णायक रहेगा, इसका पता तो चुनाव परिणाम आने के बाद ही चलेगा, लेकिन पूरे प्रचार अभियान के बाद कुछ मुद्दों का असर मतदाताओं पर दिखाई दे रहा है।

नमो-नमो और डबल इंजन का दम

देवभूमि उत्तराखंड से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लगाव किसी से छिपा नहीं है। वह समय-समय पर इसे प्रदर्शित करने के साथ ही इसी अनुरूप कार्य भी करते रहे हैं। चुनावी समर में उनकी लोकप्रियता को भुनाने के लिए भाजपा ने पुरजोर प्रयास किए।

प्रचार अभियान के दौरान बीते 10 वर्ष में राज्य को केंद्र से मिली 1.66 लाख करोड़ की योजनाओं को प्रभावी ढंग से जनता के बीच रखा गया तो डबल इंजन के बूते यहां हुए विकास कार्यों को भी बखूबी रेखांकित किया गया। इस सबके बीच आमजन में यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से उठ रहा है कि प्रदेश में चल रही मेगा परियोजनाओं को अंजाम तक पहुंचाने के लिए किसे वोट दिया जाना चाहिए।

प्रथम सीडीएस का अपमान बनाम अग्निवीर भर्ती

सैन्य बहुल उत्तराखंड में चुनाव प्रचार अभियान में देश के पहले सीडीएस जनरल बिपिन रावत बनाम अग्निवीर भर्ती का मुद्दा भी खूब गूंजा। कांग्रेस ने अग्निपथ योजना में अग्निवीर भर्ती को लेकर सवाल खड़े किए तो भाजपा ने कांग्रेस द्वारा किए गए सीडीएस जनरल बिपिन रावत के अपमान को प्रमुखता से मुद्दा बनाया।

इन विषयों पर दोनों ही दलों की ओर से जुबानी जंग अधिक देखने को मिली। इस आलोक में देखें तो उत्तराखंड सैन्य बहुल प्रदेश होने के कारण इसका असर भी दिखा, लेकिन यहां का मतदाता देवभूमि के लाल अपने नायक के अपमान को भी ध्यान में रखेगा।

आस्था और विकास

देवभूमि में आस्था और विकास का विषय अयोध्या में भगवान श्रीराम के भव्य मंदिर का निर्माण और वहां श्रीरामलला के विराजमान होने के आलोक में चर्चा में रहा। उत्तराखंड के मतदाताओं ने प्रदेश में आस्था के केंद्रों में हो रहे कार्यों को इससे जोड़कर देखा।

नए कलेवर में निखर चुके श्रीकेदारनाथ धाम के माडल और इसी तर्ज पर बदरीनाथ धाम को निखारने को चल रहे काम, मानसखंड मंदिर माला मिशन में कुमाऊं क्षेत्र के मंदिरों में यात्री सुविधाओं के विकास व सुंदरीकरण और हरिद्वार-ऋषिकेश गंगा कारीडोर के विकास को इस क्रम में वे देख रहे हैं।

समान नागरिक संहिता

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता लागू करने के दृष्टिगत इससे संबंधित विधेयक विधानसभा से पारित होने के बाद इसे राष्ट्रपति से मंजूरी मिल चुकी है। ऐसा करने वाला उत्तराखंड देश का पहला राज्य बन चुका है। जल्द यह लागू होगा। इसमें महिला अधिकारों को अधिक सुरक्षा दी गई है। महिला केंद्रित होने के कारण यह विशेषकर महिला मतदाताओं के मन में रहेगा।

पलायन निवारण

राज्य के गांवों से पलायन का सिलसिला आज भी थमा नहीं है। फर्क इतना आया है कि पहले अन्य राज्यों में लोग दौड़ लगाते थे, अब गांव की चौखट से निकले कदम ज्यादा राज्य के शहरों में ही थमने लगे हैं। मूलभूत सुविधाओं व रोजगार के अवसरों की कमी पलायन के मूल में मुख्य कारण है। पलायन की समस्या सभी लोकसभा क्षेत्रों के अंतर्गत है। ऐसे में मतदाता अपने दिमाग यह अवश्य रखेगा कि पलायन की रोकथाम को किसकी क्या योजना है और कौन इसमें भूमिका निभा सकता है।

वन्यजीवों के हमले

71.05 प्रतिशत वन भूभाग वाला उत्तराखंड वन्यजीव संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है, लेकिन यही वन्यजीव पूरे पहाड़ में संकट बनकर भी उभरे हैं। आए दिन वन्यजीवों के हमलों की घटनाएं सुर्खियां बन रही हैं। प्रचार अभियान के दौरान इस समस्या से निजात पाने को सरकार की योजनाएं रखी गई तो विपक्ष ने सरकार पर हीलाहवाली का आरोप लगाते हुए उसे कोसा भी। अब जबकि अवसर अपने प्रतिनिधि के चुनाव का है तो लोग यह ध्यान में रखेंगे कि कौन सा दल और कौन सा प्रत्याशी निरंतर गहराती इस समस्या से मुक्ति दिलाने में सक्षम होंगे।

प्रकृति की मार

मध्य हिमालयी राज्य उत्तराखंड निरंतर ही प्रकृति की मार झेल रहा है। बीते मानसून सीजन में ही यहां विभिन्न क्षेत्रों में आपदा से एक हजार करोड़ रुपये से अधिक की क्षति आंकलित की गई थी। यही नहीं, प्राणवायु का भंडार कहे जाने वाले यहां के जंगलों पर आग रूपी आपदा पहले से मुंहबाए खड़ी है। इस परिदृश्य में लोग यह मंथन करेंगे ही कि प्रकृति की मार से बचाने को कौन सक्षम हो सकता है और कौन वनों की आग की रोकथाम को मजबूत इच्छाशक्ति दिखाएगा।

बेरोजगारी

राज्य में युवा मतदाताओं की अच्छी-खासी संख्या है, लेकिन बेरोजगारी के दंश से वह भी अछूता नहीं है। लोकसभा चुनाव के प्रचार अभियान में युवाओं को साधने के लिए बेरोजगारी का मुद्दा प्रमुखता से उठा। यह ऐसा विषय है, जिससे युवाओं के साथ ही उनके स्वजन की अपेक्षाएं भी जुड़ी हैं।

भर्ती परीक्षाओं में शुचिता हो, ताकि योग्य युवा आगे बढ़ सकें, यह सभी चाहते हैं। इस दृष्टि से सरकार ने सख्त कानून बनाकर इसके लिए पहल की है। जाहिर तौर पर वोट डालते समय लोग रोजगार-स्वरोजगार के लिए अब तक उठाए गए कदमों को तो कसौटी परखेंगे ही, सरकारी क्षेत्र में रोजगार के अवसर देने में कौन सा दल महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, यह अपने जहन में रखेंगे।

अतिक्रमण व अनियोजित विकास

अतिक्रमण का नासूर भविष्य में किसी बड़े खतरे का सबब न बन जाए, यह हर जागरूक नागरिक की चिंता है। राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में दिख रहे जनसांख्यिकीय बदलाव को भी इससे जोड़कर देखा जा रहा है। विभिन्न क्षेत्रों में सरकारी भूमि के साथ ही पर्यटक स्थलों में भी अतिक्रमण हो रहा है। शहरों में अतिक्रमण के साथ ही जगह-जगह वोट रूपी फसल के रूप में बस्तियां उग आई हैं। यही नहीं, शहरी क्षेत्रों के अनियोजित विकास ने दिक्कतें बढ़ाई हुई हैं। यद्यपि, चुनाव प्रचार के दौरान शहरों व पर्यटक स्थलों की स्थिति को लेकर कुछ नहीं कहा, लेकिन मतदाता इन विषयों को कसौटी पर अवश्य तौल रहा है।

सशक्त भू-कानून

प्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों में जनसांख्यिकीय बदलाव दिख रहा है। यह देवभूमि के स्वरूप के अनुकूल तो कतई नहीं है। इसके साथ ही कुछ क्षेत्रों में भूमि से संबंधित अपराधों का ग्राफ भी बढ़ा है। इन समस्याओं से पार पाने के लिए ही राज्य में सशक्त भू-कानून की मांग उठ रही है। ऐेसे में जिन क्षेत्रों में यह समस्या है, वहां इसका असर मतदाताओं में दिख सकता है।

राष्ट्रीय सुरक्षा

उत्तराखंड सैन्य बहुल क्षेत्र है। परिणामस्वरूप यहां के मतदाताओं के मन में राष्ट्रीय सुरक्षा और सीमावर्ती क्षेत्रों का विकास भी स्वाभाविक रूप से रहता है। पिछले कुछ वर्षों में अंतरराष्ट्रीय सीमा से सटे इस राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में अवस्थापना सुविधाओं के विकास के साथ ही सीमा प्रहरी माने जाने वाले वहां के गांवों के विकास की पहल हुई, लेकिन जनता की अपेक्षाएं और अधिक हैं। साफ है कि लोग यहां राष्ट्रीय सुरक्षा के विषय को भी केंद्र में रखेंगे।


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