Punjab Politics: शिअद और बीजेपी में नहीं होगा गठबंधन, इस खास वजह के कारण दोनों में नहीं बन सकी बात
Punjab Lok Sabha Election कई दौर की बैठकों और बातचीत के बाद अब तय हो गया है कि शिरोमणि अकाली दल और बीजेपी के बीच कोई गठबंधन नहीं होगा। ये गठबंधन न होने का कारण सीटों के बंटवारे को बताया जा रहा है। क्योकि बीजेपी पंजाब में 13 में से छह सीटें मांग रही है लेकिन शिअद चार सीटों से ज्यादा देने को तैयार नहीं है।
कैलाश नाथ, चंडीगढ़। दो माह की लंबी कवायद के बाद आखिर में तस्वीर स्पष्ट हो गई कि शिरोमणि अकाली दल और भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन नहीं होगा। कई दौर की बैठकों के बाद दोनों ही दलों में सीटों का बंटवारा नहीं हो पाया। शिअद जहां बड़े भाई का रुतबा छोड़ना नहीं चाह रहा था। वहीं, भाजपा छोटा भाई बनने को तैयार नहीं थी। भाजपा जहां पंजाब की 13 में से 6 सीटें मांग रही थी तो अकाली दल 4 से ऊपर नहीं बढ़ रहा था। क्योंकि शिअद को लगता था कि इससे उसके बड़े भाई का रुतबा खत्म हो जाएगा।
सीटों का बंटवारा बना गठबंधन न होने का कारण
भाजपा 2027 के विधान सभा चुनाव में भी ज्यादा सीटों की मांग कर सकती है। गठबंधन में रहते हुए भाजपा लोकसभा की 3 और विधान सभा (117 सीटें) में 23 सीटों पर चुनाव लड़ती थी। भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर भले ही शिअद ने एमएसपी गारंटी, बंदी सिंहों की रिहाई आदि शर्तों को आगे बढ़ाया हो लेकिन पार्टी के उच्च स्तरीय सूत्र बताते हैं कि दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन नहीं होने के पीछे सीटों का बंटवारा सबसे बड़ा पेंच बना।
भाजपा अकाली दल से गुरदासपुर, अमृतसर, होशियारपुर (जिस पर वह पहले भी लड़ती थी) के अलावा पटियाला, श्री आनंदपुर साहिब और लुधियाना सीट भी मांग रही थी। जबकि चंडीगढ़ की सीट पहले ही भाजपा के कोटे में थी। शिअद केवल पटियाला को छोड़ने के लिए तैयार था। शिअद को लगता था कि ऐसा होने से विधान सभा में भाजपा 45 से 50 सीटों की मांग कर सकती है। शिअद यह जोखिम उठाना नहीं चाहता था। जिस कारण गठबंधन की बात सिरे नहीं चढ़ पाई।
एक दूसरे के पूरक थे शिअद- भाजपा
शिअद और भाजपा का गठबंधन पंजाब में राजनीतिक ही नहीं बल्कि सामाजिक भी था। हिंदू सिख एकता की तस्वीर भी थी। यही कारण है कि पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय प्रकाश सिंह बादल इस गठबंधन को नाखून और मांस का रिश्ता बताया करते थे। गठबंधन नहीं होने से लोक सभा चुनाव में दोनों ही पार्टियों को नुकसान उठाना पड़ सकता है। क्योंकि 25 वर्षों में गठबंधन में रहते हुए शिअद ग्रामीण तो भाजपा शहरी क्षेत्रों को संभालती थी। शहर शुरू होने के साथ ही शिअद का ग्राफ नीचे आ जाता है तो गांव शुरू होने पर भाजपा का।
किसान आंदोलन के बाद ग्राणीण क्षेत्र में बढ़ी बीजेपी की परेशानी
किसान आंदोलन शुरू होने के बाद गांव में भाजपा की परेशानी बढ़ गई थी। वहीं, शिअद को यह चिंता थी कि फरवरी माह से शुरू हुए किसानी आंदोलन के बीच अगर गठबंधन किया जाए तो कहीं उनका ग्रामीण आधार भी खिसक न जाए। यह डर शिअद पर भारी रहा। वहीं, एक पहलू यह भी है कि 2020 में हुए किसानी आंदोलन के बाद पंजाब में संगरूर और जालंधर लोक सभा में उप चुनाव हुए। जिसमें दोनों ही जगह पर शिअद का ग्राफ नीचे आया तो भाजपा का ग्राफ ऊपर गया।
गठबंधन में रहते हुए इन दोनों सीटों पर शिअद ही चुनाव लड़ता रहा है। संगरूर में तो शिअद भाजपा से भी नीचे चौथे स्थान पर आया। वहीं जालंधर में जहां शिअद को 1.58 लाख वोट पड़े थे तो भाजपा को 1.34 लाख वोट मिले थे। जबकि गठबंधन में रहते हुए भाजपा मात्र तीन विधान सभा सीटों पर चुनाव लड़ती थी।
कांग्रेस को मिल सकता है लाभ
सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को छोड़ दिया जाए तो कांग्रेस ही ऐसी पार्टी है, जिसका गांव व शहर दोनों ही जगह पर सामान्य वोट बैंक है। चूंकि पंजाब में कांग्रेस हमेशा ही अकेले चुनाव लड़ती रही है। इसलिए गांव और शहर दोनों की क्षेत्रों में उसका एक आधार रहा है। वहीं, 2022 में सत्ता में आने के बाद आप के लिए यह पहला लोक सभा चुनाव है। विधान सभा चुनाव में आप को गांव और शहर दोनों ही जगह पर बंपर वोट मिले थे। हालांकि 2019 को लोक सभा चुनाव में आप 4 में से 1 सीट पर ही सिमट गई थी। इसलिए चुनाव परिणाम आने के बाद ही स्थिति स्पष्ट होगी कि आप का गांव और शहर पर कितना प्रभाव है।
सत्ता विरोधी वोट होगी एक्स फैक्टर
हरेक चुनाव में सत्ता विरोधी वोट एक्स फैक्टर की भूमिका अदा करता है। राज्य में जहां आम आदमी पार्टी की सरकार है तो केंद्र में भाजपा की। राज्य सरकार से नाराज मतदाता किस ओर वोट करता है और केंद्र से नाराज मतदाता किस ओर जाता है। यह एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा।
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