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आखिर शेल कंपनियों का चार दशकों से महफूज ठिकाना कोलकाता ही क्यों बना हुआ?

मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक निलय डागा के ठिकानों ने जो सच उगला है उससे एक बार फिर कोलकाता के लाल बाजार की मर्केटाइल बिल्डिंग चर्चा में है। इससे पहले भी कई नेताओं और उद्योगपतियों की शेल कंपनियां इसी ठिकाने पर पाई गई थी।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 24 Feb 2021 09:24 AM (IST)Updated: Wed, 24 Feb 2021 09:24 AM (IST)
आखिर शेल कंपनियों का चार दशकों से महफूज ठिकाना कोलकाता ही क्यों बना हुआ?
हावड़ा ब्रिज बनने के समय र्मकटाइल बिल्डिंग का इस्तेमाल इंग्लैंड से आयातित लोहे की बीम रखने के लिए हुआ था

इंद्रजीत सिंह, कोलकाता। आयकर विभाग की ओर से गत दिनों मध्य प्रदेश के बेतुल के सोया उत्पाद निर्माता समूह के 22 परिसरों में तलाशी और जब्ती अभियान चलाने के बाद बंगाल की राजधानी कोलकाता एक बार फिर सुíखयों में है। क्योंकि इस ग्रुप ने कोलकाता की शेल कंपनियों से ऊंचे प्रीमियम पर पेपर निवेश बिक्री माध्यम से 259 करोड़ रुपये की शेयर पूंजी हासिल की थी। ग्रुप ने अपने खाते में 90 करोड़ रुपए की अघोषित आय दिखाई है जो कोलकाता की अनेक शेल कंपनियों की कागजी निवेश बिक्री से प्राप्त हुई।

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बताए गए पते पर कोई भी कंपनी नहीं मिली और ग्रुप ने ऐसी कागजी कंपनियों और उनके निदेशकों के बारे में कोई जानकारी नहीं दी। इनमें से अनेक कंपनियां कॉर्पोरेट कार्यालय मंत्रलय द्वारा सूची से हटा दी गई हैं। यह अभियान मध्य प्रदेश के बेतुल तथा सतना, महाराष्ट्र के मुंबई तथा सोलापुर और बंगाल के कोलकाता में चलाया गया। तलाशी अभियान के दौरान आठ हजार करोड़ रुपए से अधिक की नकदी तथा 44 लाख से अधिक मूल्य की विभिन्न देशों की करेंसी जब्त की गई। तलाशी के दौरान नौ बैंक लॉकर भी पाए गए। इसके बाद एक बार फिर सवाल उठने लगा है कि कोलकाता ही क्यों शेल कंपनियों का महफूज ठिकाना है।

क्या है शेल कंपनी: दरअसल काले धन को सफेद करने का जरिया शेल कंपनियां होती हैं। शेल कंपनियों के जरिये संपत्ति छिपाने वाला शख्स टैक्स की चोरी करता है।अधिकांश मामलों में शेल कंपनियों का व्यवसाय सिर्फ कागजों पर चलता है। जानकारों के मुताबिक, सामान्य कंपनियों की तरह ही शेल कंपनियों का रजिस्ट्रेशन होता है। उनमें भी निदेशक होते हैं और सामान्य कंपनियों की तरह रिटर्न भी फाइल की जाती है।

बंगाल में तीन सालों में 24 हजार से अधिक शेल कंपनियों का पता चला: गौरतलब है कि चिटफंड कंपनियों की तरह ही शेल कंपनियां भी सबसे ज्यादा बंगाल में हैं। बंगाल में हजारों करोड़ रुपये के सारधा, रोज वैली चिटफंड घोटालों की जांच के दौरान केंद्रीय जांच एजेंसी केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआइ) को पिछले तीन सालों में 24 हजार से अधिक शेल कंपनियों का पता चला है जिनका वजूद सिर्फ कागज कलम पर है। इनका इस्तेमाल काली कमाई को सफेद मर्कंटाइल बिल्डिंग्स का निर्माण 1918 में हुआ था करने तथा टैक्स चोरी के लिए किया जाता है। एक कर अधिकारी के अनुसार मनी लांडिंग के लिए कोलकाता एक खास जगह माना जाता है। यह प्रमुख व्यवसायिक स्थल होने के साथ कोलकाता अन्य व्यवसायिक स्थलों को जोड़ने का भी प्रमुख मार्ग है।

शेल कंपनियां कोलकाता में ही क्यों: कर तथा वित्तीय जानकार नारायण जैन का कहना है बंगाल शुरू से ही गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों का केंद्र रहा है और इसी की आड़ में ही बंगाल के पिछड़े जिलों में बड़ी संख्या में चिटफंड कंपनियों तथा कोलकाता में शेल कंपनियों ने अपना जाल फैलाया है। जैन के अनुसार कोलकाता और आसपास के शहरों में चिटफंड से संबंधित काम करने वाले पेशेवर जानकार काफी हैं। यह काफी सस्ते में उपलब्ध होते हैं तथा शेल कंपनियां गढ़ने में माहिर हैं।

दो लाख से अधिक कंपनियां बंद: जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी का एलान किया था तो अधिकारियों का ध्यान एक मुद्दे पर गया।अधिकारियों ने ध्यान दिया कि अचानक शेल कंपनियों (फर्जी कंपनियों) के बैंक जमा बढ़ गया। नोटबंदी के बाद ऐसे मामले को केंद्र सरकार ने सहज रूप में नहीं लिया। सरकार ने इस बात का अंदाजा तो लगा ही लिया था कि रुपये के असली मालिक को बचाने के लिए फर्जी कंपनियों के सहारे पर जोर दिया जा रहा है। मोदी सरकार ने ऐसी शेल कंपनियों पर सख्ती बरतनी शुरू कर दी। इसके बाद फर्जी कंपनियों के ठिकाने के रूप में कोलकाता का नाम सामने आने लगा। केंद्र सरकार फर्जी कंपनियों पर सख्त कार्रवाई कर टैक्स चोरी पर अंकुश लगाना चाहती है। इसके लिए एक टास्क फोर्स का भी गठन किया गया है। कालेधन पर अंकुश लगाने के लिए शेल कंपनियों को बंद किया जा रहा है। अब तक करीब दो लाख से अधिक शेल कंपनियों को बंद किया जा चुका है। आने वाले समय में और कंपनियों को बंद करने की तैयारी है।


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