Move to Jagran APP

प्रयागराज में कीडगंज का गोरा कब्रिस्तान, जहां दफन हैं 1857 की क्रांति में मारे गए छह सौ अंग्रेज

बैरहना चौराहे पर स्थापित कीडगंज सीमेट्री में तकरीबन 600 कबे्रं हैं। लंबे चौड़े भू-क्षेत्र में बने इस कब्रिस्तान को बकायदा उद्यान का रूप दिया गया है। अंग्रेजों के इस कब्रिस्तान की रखवाली के लिए कब्रिस्तान के बायीं ओर एक कक्ष बना था जिसमें चौकीदार तैनात होता था।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Wed, 24 Feb 2021 07:00 AM (IST)Updated: Wed, 24 Feb 2021 08:30 AM (IST)
कीडगंज सीमेट्री है जिसे स्थानीय लोग गोरा कब्रिस्तान के नाम से भी जानते हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। बैरहना से पुराने यमुना पुल की ओर जाने वाली सड़क पर बिल्कुल चौराहे पर कीडगंज सीमेट्री है जिसे स्थानीय लोग गोरा कब्रिस्तान के नाम से भी जानते हैं। यहां पर छह सौ कब्रें हैं। कहा जाता है कि यह सन् 1857 की क्रांति के समय क्रांतिकारियों के हमले में मारे गए अंग्रेज अफसरों व सिपाहियों की हैं। हालांकि बाद में यहां प्रथम विश्व युद्ध में मारे गए कई अंग्रेज सिपाही व अफसर भी दफनाए गए थे। वर्तमान में यह कब्रिस्तान ऐतिहासिक विरासत है जिसका रखरखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग करता है।

loksabha election banner

प्रयागराज में क्रांतिकारियों से जंग में मारे गए थे सैकड़ों अंग्रेज

इतिहासकार प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि देश की आजादी के लिए मेरठ से शुरू हुई क्रांति की ज्वाला 12 मई 1857 को ही इलाहाबाद (अब प्रयागराज) पहुंच चुकी थी, लेकिन क्रांति का असली सूत्रपात छह जून को हुआ जब भारी मात्रा में यहां अंग्रेज सैनिक और अफसर पहुंचे थे। भारी मारकाट मची थी। क्रांतिकारियों ने किले पर भी हमला बोल दिया था। लेफ्टीनेंट अलेक्जेंडर को गोली मार दी गई थी। लेफ्टीनेंट हावर्ड जान बचाकर किले में भाग गया था। किले में तैनात दो पलटनों के ज्यादातर अंग्रेज और यूरोपीय अधिकारी मार दिए गए थे। सात जून को बागियों ने आजादी की घोषणा कर दी थी। गदर के बाद ही कीडगंज में सीमेट्री बनी और अंग्रेज सिपाहियों व अफसरों को दफनाया गया था।  

बैरहना चौराहे पर बनी इस सीमेट्री में हैं छह सौ कब्रें

बैरहना चौराहे पर स्थापित कीडगंज सीमेट्री में तकरीबन 600 कबे्रं हैं। लंबे चौड़े भू-क्षेत्र में बने इस कब्रिस्तान को बकायदा उद्यान का रूप दिया गया है। अंग्रेजों के इस कब्रिस्तान की रखवाली के लिए कब्रिस्तान के बायीं ओर एक कक्ष बना था जिसमें चौकीदार तैनात होता था। इसके चारो तरफ बाउंड्री भी बनाई गई थी। प्रवेश के लिए बड़ा सा गेट था। लेकिन रखरखाव के अभाव में कई कब्रें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। कई से नाम पट्टिका तक गायब हो चुकी है।

भारतीय पुरातत्व विभाग करता है कब्रिस्तान का संरक्षण

अंग्रेजों के इस कब्रिस्तान को देश की विरासत में शामिल कर लिया गया है। इसकी ऐतिहासिकता को देखते हुए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने 1920 में इसको संरक्षित स्थान घोषित किया था। विभाग के वरिष्ठ संरक्षण सहायक पंकज तिवारी का कहना है कि विभाग को मिलने के पहले इस कब्रिस्तान की हालत बहुत ही खराब थी। आसपास के लोगों ने यहां की जमीन पर कब्जा कर लिया था। दीवारों को तोड़कर यहां पर पशुशाला आदि खोल लिया गया था। दीवार क्षतिग्रस्त होने के कारण लोग यहां अनावश्यक आकर लोग बैठते थे और कब्रों को भी नुकसान पहुंचाते थे। पूर्व में क्षतिग्रस्त कब्रों को ठीक कराने के साथ ही यहां से कब्जे हटवाए गए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.