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पुलिस के मौलिक अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका

मौलिक अधिकार आम लोगों के ही नहीं, पुलिस के भी होते हैं। बिना उनका पक्ष सुने परिकल्पना के आधार पर उनके खिलाफ आदेश देने से पुलिसकर्मियों के भी मौलिक अधिकारों का हनन होता है। हाल के कुछ मामलों में पुलिस कार्रवाई के खिलाफ स्वयं संज्ञान लेकर जारी आदेशों को आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका

By Edited By: Published: Mon, 20 May 2013 01:19 AM (IST)Updated: Mon, 20 May 2013 01:21 AM (IST)
पुलिस के मौलिक अधिकार को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका

नई दिल्ली, [माला दीक्षित]। मौलिक अधिकार आम लोगों के ही नहीं, पुलिस के भी होते हैं। बिना उनका पक्ष सुने परिकल्पना के आधार पर उनके खिलाफ आदेश देने से पुलिसकर्मियों के भी मौलिक अधिकारों का हनन होता है।

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हाल के कुछ मामलों में पुलिस कार्रवाई के खिलाफ स्वयं संज्ञान लेकर जारी आदेशों को आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल हुई है जिसमें ऐसे आदेशों को निरस्त करने के साथ ही पुलिस के मौलिक अधिकारों के हनन का मुद्दा उठाया गया है।

यह जनहित याचिका [पीआइएल] सुप्रीम कोर्ट के वकील मनीष कुमार ने दाखिल की है। 6 मई को जब मामला सुनवाई के लिए जस्टिस पी. सतशिवम एवं जस्टिस एमवाई इकबाल के सामने आया उन्होंने सवाल किया कि याचिका में सुप्रीम कोर्ट के ही आदेशों को कैसे चुनौती दी जा सकती है। सइ पर कुमार ने कहा कि अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिका में मौलिक अधिकारों के हनन पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को भी चुनौती दी जा सकती है। एआर अंतुले के मामले में संविधान पीठ ने भी ऐसा कहा है। कुमार की दलीलें सुनने के बाद पीठ ने याचिका को छुंिट्टयों के बाद सुनवाई के लिए लगाने का आदेश दिया। याचिका में केंद्र सरकार सहित सभी राज्यों को पक्षकार बनाया गया है।

याचिका में अवधारणा के आधार पर पुलिस के खिलाफ जारी न्यायिक और प्रशासनिक आदेशों को निरस्त करने की मांग की गई है। साथ ही भविष्य में ऐसे आदेश जारी नहीं किए जाने का आदेश मांगा गया है। कहा गया है कि उग्र प्रदर्शनों के दौरान आम जनता और संपत्तिकी सुरक्षा के साथ पुलिस की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कानूनी प्रावधान लागू करने के दिशानिर्देश जारी किए जाएं।

कहा गया है कि पुलिस के गिरते हौसले और कार्रवाई नहीं होने का ही परिणाम है कि सड़कों और सार्वजनिक स्थलों पर उग्र प्रदर्शन बढ़ रहे हैं। इससे लोगों की सुरक्षा का खतरा पैदा हो गया है। पुलिस पर हमले इस कदर बढ़ गए हैं कि प्रदर्शन चाहे छोटा हो या बड़ा उसे निशाना बनाया जाता है। पुलिसकर्मी घायल होते हैं, मार दिए जाते हैं। पुलिस वाहन जलाए जाते हैं और सरकारी संपत्तिको नुकसान पहुंचाया जाता है। अगर पुलिस कानूनी कार्रवाई करती है तो वह राजनैतिक या प्रशासनिक प्रताड़ना का शिकार होती है। उसे निलंबित किया जाता है। नौकरी से हटा दिया जाता है या फिर अपना विधायी कर्तव्य निभाने पर उसे गैरजिम्मेदार होने का टैग दे दिया जाता है। सुप्रीम कोर्ट ने भी मीडिया रिपोर्ट के आधार पर कई मामलों में स्वत: संज्ञान लिया है। पुलिस पर ड्यूटी निभाने पर प्रशासनिक व कानूनी कार्रवाई होती है। याचिका में कहा गया है कि पुलिस कार्रवाई की वैधानिकता तय करते समय भारतीय दंड संहिता और पुलिस एक्ट के विभिन्न प्रावधानों को या तो नजरअंदाज कर दिया जाता है या फिर उनका उल्लंघन होता है।

बिना जांच प्रथम दृष्ट्या कोई भी राय बनाकर दण्डात्मक कार्रवाई से पुलिसकर्मियों का अहित होता है और उनके मौलिक व कानूनी अधिकारों का हनन होता है। यह धारणा बना लेना कि पुलिस कार्रवाई गलत थी या फिर बर्बरता पूर्ण थी, पुलिस के मौलिक और कानूनी अधिकारों का हनन है।

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