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India-Nepal Border News: बाज नहीं आ रहा नेपाल, अब बासमती पर दावा, भारत के आवेदन को चुनौती

नेपाली पीएम ने अब बासमती धान पर भी अपना अधिकार जताया है। उसका दावा है कि बासमती धान प्राचीन काल से नेपाल में पैदा होता है। भारत द्वारा बासमती को अपने उत्पाद के रूप में पंजीकरण कराने के बाद नेपाल ने यूरोपीय संघ मुख्यालय में अपना दावा पेश किया है।

By Satish chand shuklaEdited By: Published: Mon, 11 Jan 2021 05:33 PM (IST)Updated: Mon, 11 Jan 2021 07:45 PM (IST)
India-Nepal Border News: बाज नहीं आ रहा नेपाल, अब बासमती पर दावा, भारत के आवेदन को चुनौती
बासमती धान की फसल की फाइल फोटो।

विश्वदीपक त्रिपाठी, महराजगंज। सियासी संकट के बीच भी नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली भारत विरोध का कोई मौका नहीं छोड़ रहे हैं। अयोध्या व भगवान राम को अपना बताने वाले नेपाली पीएम ने अब बासमती धान पर भी अपना अधिकार जताया है। सरकार का दावा है कि बासमती धान प्राचीन काल से नेपाल में पैदा होता है। इसकी उत्पत्ति नेपाल में हुई है। भारत द्वारा बासमती को अपने उत्पाद के रूप में पंजीकरण कराने के बाद नेपाल ने यूरोपीय संघ मुख्यालय में अपना दावा पेश किया है। यूरोपीय संघ ने नेपाल से इस संबंध में सभी वैज्ञानिक साक्ष्य फरवरी के पहले सप्ताह में पेश करने को कहा है। ओली सरकार के निर्देश के बाद नेपाल कृषि अनुसंधान परिषद ने नेशनल जीन बैंक के वरिष्ठ वैज्ञानिक बाल कृष्ण जोशी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया है। यह समिति बासमती धान के संबंध में आवश्यक प्रमाण एकत्र कर रही है। पर्याप्त वैज्ञानिक आधार और सबूत प्रदान करने वाले देशों को बासमती चावल के भौगोलिक संकेत (जीआइ ) का अधिकार मिलेगा।

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सरकारी राजपत्र में प्रकाशित हैं बसमती की चार प्रजातियां

नेपाल में बासमती की उत्पत्ति की खोज के लिए गठित की गई समिति वैज्ञानिक आधार के साथ ही धार्मिक पुस्तकों में उल्लिखित तथ्यों को एकत्र कर रही है। वरिष्ठ वैज्ञानिक बाल कृष्ण जोशी ने बताया कि नेपाल सरकार के राजपत्र में बासमती चावल की चार किस्में प्रकाशित की गईं हैं। जीन बैंक ने भी नेपाल के विभिन्न हिस्सों से 25 किस्म के स्वदेशी बासमती चावल एकत्र किए हैं ।

पंजीकरण के लिए जीआइ कानूनों के तहत संरक्षित करना आवश्यक

अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपने उत्पाद को पंजीकरण कराने के लिए पहले भौगोलिक संकेतक कानूनों के तहत संरक्षित किए जाने का प्रावधान है। यदि यूरोपीय संघ में नेपाल के दावों को मान्यता मिलती है तो नेपाल हमेशा के लिए बासमती धान के नाम के उपयोग का अधिकारी हो जाएगा। उसके बाद भारत समेत जो भी देश उक्त किस्म के चावल का उत्पादन करेगा उसे बिक्री मूल्य से स्वत: एक निर्धारित राशि मिलेगी।

सीमा से सटे भारतीय क्षेत्र में होती है बासमती की खेती

नेपाल के दावे के विपरीत वास्तविकता यह है कि नेपाल से सटे भारतीय क्षेत्र में बड़े पैमाने पर बासमती धान की खेती होती है। सीमावर्ती महराजगंज व सिद्धार्थनगर जिले में बासमती व काला नमक बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। कृषि विशेषज्ञ नागेंद्र पांडेय बताते हैं कि महराजगंज की भूमि बासमती धान के लिए उपयुक्त है। नेपाल के दावे में कोई दम नहीं है। उधर, नेपाल कृषि अनुसंधान परिषद

के कार्यकारी निदेशक डा. दीपक भंडारी का कहना है कि बासमती को लेकर नेपाल का दावा पूरी तरह से पुख्ता है। नेशनल जीन बैंक के वैज्ञानिकों की टीम इस संबंध में प्रमाण जुटा रही हैं। इस बात के पुख्ता सबूत हैं कि बासमती की उत्पत्ति नेपाल में हुई है।

नेपाल का दावा निराधार

महराजगंज जनपद के जिला कृषि अधिकारी वीरेंद्र कुमार का कहना है कि बासमती को लेकर नेपाल सरकार का दावा पूरी तरह से निराधार है। महराजगंज सहित पूर्वी उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में बासमती की खेती बहुत पहले से होती है। जहां तक इसकी उत्पत्ति का सवाल है तो उत्तराखंड के पहाड़ी भूभाग में इसकी उत्पत्ति हुई है।


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