बदले राजनीतिक समीकरण में टूटा बिहार का सपना
केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने बिहार का सपना तोड़ दिया। पिछले एक साल से बिहार को जिस विशेष राज्य या विशेष पैकेज का झुनझुना थमाया जा रहा था, चुनाव से ठीक पहले वह छीन लिया गया। चिदंबरम ने गैर कांग्रेस शासित बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों की इस दफा चर्चा तक नहीं की। यानी बिहा
नई दिल्ली, [आशुतोष झा]। केंद्रीय वित्तमंत्री पी. चिदंबरम ने बिहार का सपना तोड़ दिया। पिछले एक साल से बिहार को जिस विशेष राज्य या विशेष पैकेज का झुनझुना थमाया जा रहा था, चुनाव से ठीक पहले वह छीन लिया गया। चिदंबरम ने गैर कांग्रेस शासित बिहार, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और झारखंड जैसे पिछड़े राज्यों की इस दफा चर्चा तक नहीं की। यानी बिहार और दूसरे पिछड़े राज्यों का भविष्य अब नई सरकार ही तय करेगी।
एक साल पहले केंद्रीय बजट से ठीक पहले आर्थिक सर्वेक्षण ने ही बिहार के लिए आशा जगा दी थी। उसमें पिछड़े राज्यों के लिए मानक तय करने और उसके लिए वित्तीय इंतजाम करने का प्रस्ताव था। दरअसल, सत्ताधारी जदयू के साथ पक रहे राजनीतिक समीकरण के बीच रुक-रुक कर यह संदेश देने में कोई कोताही नहीं की गई कि बिहार को 'उसका हक' मिलेगा। ध्यान रहे कि इसके लिए दिल्ली में रैली कर चुके मुख्यमंत्री नीतीश कुमार विशेष राज्य को हक बता रहे थे। पूरा श्रेय भी जदयू के सिर बांधने की रणनीति थी। हालांकि इसके लिए सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भी प्रधानमंत्री का दरवाजा खटखटा चुका था, लेकिन जदयू इसे अपना चुनावी एजेंडा बनाना चाह रहा था।
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रघुराजन कमेटी की रिपोर्ट में भी यह संकेत दिया गया था कि बिहार पिछड़े राज्यों की श्रेणी में है। अलग मानकों पर उत्तर प्रदेश को भी इसमें शामिल कर लिया गया था। यही कारण था कि केंद्र से मिलते रहे हर छोटे बड़े संकेतों के बाद बिहार में जदयू इसे बड़ी जीत बताने में चूक नहीं रही थी। लेकिन कांग्रेस और जदयू के राजनीतिक समीकरण बदलते ही केंद्र सरकार का नजरिया भी बदल गया। ध्यान रहे कि जदयू और कांग्रेस के बीच बढ़ रही नजदीकी अब दूरी में बदल गई है। दोनों अलग-अलग खेमों में हैं। ऐसे में कुछ मिलता भी तो जदयू सरकार उसे अपनी उपलब्धि बताती।