पानी बिना ज्यादा मुनाफा देती है ग्वार की फसल
उरई। बुंदेलखंड में शुष्क खेती होती रही है लेकिन पिछले एक दशक में दिन भर पानी पीने वाली मैथा की खेती ज्यादा मुनाफे के कारण इतनी छा गयी कि आज 15 हजार हेक्टेयर में इसका विस्तार पहुंच चुका है।
उरई। बुंदेलखंड में शुष्क खेती होती रही है लेकिन पिछले एक दशक में दिन भर पानी पीने वाली मैथा की खेती ज्यादा मुनाफे के कारण इतनी छा गयी कि आज 15 हजार हेक्टेयर में इसका विस्तार पहुंच चुका है। भूगर्भ जल भंडार को उलीचने वाला मैथा अल्प वर्षण की स्थिति की वजह से आगे चलकर भीषण जल संकट के सिर उठाने का कारण साबित न हो जाये इस पर प्रशासन बेहद फिक्रमंद हो गया था लेकिन अब उसका तोड़ ढूंढ लिया गया है। मैथा से कम से कम डेढ़ गुना ज्यादा मुनाफा देने वाली ग्वार को इसके विकल्प के रूप में अपनाने के लिए किसानों को प्रेरित करने का प्रयोग बेहद कामयाब रहा है। जिलाधिकारी मनीषा क्रिघाटिया की पहल पर परमार्थ संस्था ने किसानों को बीज और तकनीक उपलब्ध कराने में हाथ बंटाया। परमार्थ के सचिव संजय सिंह ने बताया कि ग्वार का भाव इस समय 28 हजार रुपए क्विंटल है और एक बीघा में कम से कम 2 क्विंटल ग्वार हो जाता है। खास बात यह है कि सिंचाई के नाम पर इसके लिए वर्षा जल पर्याप्त है। ऊंचे नीचे खेतों वाली काश्त में ग्वार खूब फलती फूलती है। जिले में 1 हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल में इस बार ग्वार बोयी गयी है। महेबा व कदौरा ब्लाक में इसका काफी जोर हो गया है। किसानों को अगर अच्छे नतीजे मिले तो बुंदेलखंड में स्थानीय जलवायु के अनुकूल नकदी फसल की धमाकेदार शुरूआत होगी।
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