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पूर्वाचल टास्क फोर्स की जरूरत

उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास निवेश एवं ऋण जमा अनुपात के आकड़ों से अगर केवल नोएडा एवं गाजियाबाद के आकड़ों को हटा दिया जाए तो यह शायद ओडिशा से भी नीचे चला जाएगा। साफ्टवेयर निर्यात में अगर हम देश में चौथे स्थान पर है तो उसमें भी केवल नोएडा का ही योगदान है।

By Edited By: Published: Mon, 01 Oct 2012 01:33 PM (IST)Updated: Mon, 01 Oct 2012 03:11 PM (IST)
पूर्वाचल टास्क फोर्स की जरूरत

लखनऊ, [अशोक कपूर]। उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास निवेश एवं ऋण जमा अनुपात के आकड़ों से अगर केवल नोएडा एवं गाजियाबाद के आकड़ों को हटा दिया जाए तो यह शायद ओडिशा से भी नीचे चला जाएगा। साफ्टवेयर निर्यात में अगर हम देश में चौथे स्थान पर है तो उसमें भी केवल नोएडा का ही योगदान है। उसी प्रकार अगर हम नए उद्यमियों की बात करें तो लखनऊ-कानपुर के बाद पूर्वाचल की ओर कोई आना तो दूर यहा से जाने की होड़ मची है। तो क्या यह हम समझें की पूर्वाचल में क्षमता ही नहीं है या यहा के उद्यमी निपुण नहीं हैं। सच बिलकुल अलग है। अगर ऐसा ही होता तो 1960 के आसपास बिरला समूह यहा हिंडालको जैसी इकाई क्यों स्थापित करता। भारत सरकार यहा डीजल लोकोमोटिव व‌र्क्स क्यों शुरू करता जहा के इंजन अब निर्यात किए जा रहे हैं। हिंडालको की अब केवल देश में नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक अग्रणी अल्युमिनियम कंपनी में गणना होती है।

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इस पूर्वाचल का देश के कुटीर उद्योग में अग्रिम स्थान है। बनारस का सिल्क भदोही व मिर्जापुर का कालीन उद्योग, बनारस का ही ग्लास बीड उद्योग, हस्तकला, बनारस का काला पंखा एवं अन्य कई उत्पाद केवल क्षेत्र के नाम से जाने जाते हैं। यह सभी उत्तर प्रदेश के विकास में अपना बहुमूल्य योगदान देते रहे हैं।

सरकार का इस क्षेत्र के विकास में ध्यान न देना, उद्यमियों की उपेक्षा और बैंकों द्वारा इस क्षेत्र में उधार कम से कम देने के कारण आज जो पूर्वाचल उत्तर प्रदेश के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है, वह दम तोड़ता नजर आ रहा है। प्रदेश सरकार भारत सरकार के सहयोग से केवल योजनाओं को क्रियान्वित करने में ही रूचि दिखाए तो शायद पूर्वाचल के आकड़े ही उत्तर प्रदेश के विकास व निवेश में गुजरात की बराबरी कर सकते हैं। ऋण जमा अनुपात अगर पक्ष में हो तो यहा के उद्यमी नोएडा गाजियाबाद से आगे निकल सकत हैं। सस्ते लेबर व सस्ती जमीन, उच्चस्तरीय शिक्षण संस्थाओं से निकले प्रोफेशनल यहा की ताकत है। कुटीर उद्योगों की एक लंबी फेहरिस्त है। उसके कारीगर धीरे-धीरे यहा से पलायन कर रहे हैं।

कालीन उद्योग केवल 2200 करोड़ का निर्यात करता था। वहीं उद्यमी, वहीं क्षेत्र अगर सरकार ध्यान देती तो शायद अब 4500 करोड़ हो जाए। क्यों नहीं इधर ध्यान जाता। क्यों नहीं पूर्वाचल की क्षमता को पहचाना जाता है। केवल बनारस का पर्यटन उद्योग ही पूरे विकास के आकड़ों को दोगुना कर सकता है। बनारस के घाट व सारनाथ मिलकर दोगुने पर्यटक आकर्षित कर सकता है लेकिन सड़कों का हाल व गंदगी देख कोई नहीं आना चाहता। अगर 10-12 वर्षो से शुरू देव दीपावली को ही ले तो पर्यटकों का अंदाजा लगाया जा सकता है। आज पर्यटन उद्योग भी अपने को कोस रहा है कि क्या यहीं बनारस हम दिखाएंगे। क्यों नहीं पर्यटन उद्योग की क्षमता का सही आकलन होता। केवल बौद्ध कान्क्लेव की तैयारी की कहानी ही सब कुछ बया कर सकती है।

उत्तर प्रदेश सरकार को अगर गुजरात, तमिलनाडु या कर्नाटक की बराबरी करनी है तो पूर्वाचल की ओर देखना होगा। नोएडा गाजियाबाद के उद्यमी कभी भी उत्तराचल जा सकते हैं। साफ्टवेयर निर्यात कभी भी गुड़गाव या मानेसर की ओर भाग सकता है लेकिन पूर्वाचल के उद्यमी अपनी जमीन से जुड़े हैं। नोएडा के उद्यमी भी दिल्ली से आए हैं उन्हें प्रदेश से लगाव नहीं है। केवल जरूरत है पूर्वाचल की सड़कें, संसाधन, बिजली वगैरह सुधारना एवं वित्तीय संस्थानों को प्रोत्साहित करना। धार्मिक पर्यटन की ओर सरकार का झुकाव बिलकुल नगण्य है। केवल कुंभ का उदाहरण लें तो साफ हो जाएगा कि इस उद्योग में कितनी क्षमता है।

बनारस में योग, हिंदी, संगीत एवं संस्कृत की शिक्षा का एक विशाल केंद्र यहा की अर्थव्यवस्था को बदल सकता है। ज्यादातर विदेशी हिंदी पढ़ने मसूरी के एक इसाई स्कूल में जाते हैं। बनारस जो विद्या का केंद्र रहा हैं वह क्यों पिछड़ रहा है। सास्कृतिक संकुल का उपयोग इस कार्य के लिए हो सकता है। प्रदेश सरकार को पिछले छह महीने में भारत सरकार से सहयोग मिला है। अगर मिलजुल कर काम करें तो पूर्वाचल के विकास को कोई रोक नहीं सकता है। पूर्वाचल रीढ़ की हड्डी साबित हो सकता है, केवल सोच बदलने की जरूरत है।

एक बहुत साधारण सा सुझाव देकर इस लेख को विराम देना चाहूंगा कि पूर्वाचल के लिए एक अलग से विकास निगम या टास्क फोर्स बनाकर उसमें सभी हित धारक को सम्मिलित करें और मुख्यमंत्री या एक वरिष्ठ मंत्री उसको सीधे अपने नियंत्रण में रखे तो पूर्वाचल उत्तर प्रदेश का ही नहीं बल्कि देश का नाम एवरेस्ट की ऊंचाई तक पहुंचाएगा।

[अशोक कपूर, इंडो-अमेरिकन चेंबर ऑफ कामर्स के पूर्व अध्यक्ष]

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