Move to Jagran APP

लीक से हटकर सोचना होगा प्रदूषण नियंत्रण को

कानपुर। प्रदेश में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड लगभग 35 वर्ष पुराना हो गया है। प्रदूषण की अधिकाश समस्याएं मूलभूत संसाधन प्रावधान से उत्पन्न होती हैं। यह विडम्बना है कि हमारा बोर्ड भी औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अधिक बन गया है एवं अपने अधिकाश संसाधन इस ओर लगा रहा है।

By Edited By: Published: Sat, 06 Oct 2012 02:57 PM (IST)Updated: Sat, 06 Oct 2012 02:59 PM (IST)
लीक से हटकर सोचना होगा प्रदूषण नियंत्रण को

कानपुर। प्रदेश में प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड लगभग 35 वर्ष पुराना हो गया है। प्रदूषण की अधिकाश समस्याएं मूलभूत संसाधन प्रावधान से उत्पन्न होती हैं। यह विडम्बना है कि हमारा बोर्ड भी औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड अधिक बन गया है एवं अपने अधिकाश संसाधन इस ओर लगा रहा है। अब आवश्यकता है कि प्रदूषण के गैर औद्योगिक क्षेत्रों को नियंत्रित करने करने के लिए विस्तृत कार्य योजना बनाने की। साथ ही स्थानीय निकायों को भी अपनी कार्य योजना बनाना अनिवार्य होगा। हमारे प्रदेश में जनसंख्या का दबाव सर्वाधिक है। हमारे संसाधन सीमित हैं। यदि हमको रोटी, कपड़ा, मकान से ऊपर स्वच्छता, सामाजिक सुरक्षा की ओर जाना है तो हमें अपनी जनसंख्या पर नियंत्रण करना होगा। स्वच्छ पर्यावरण की हमारी आवश्यकता रोटी, कपड़ा एवं मकान के बाद ही आती हैं। भूखा मनुष्य केवल रोटी के ही बारे में सोचता है। उससे यह अपेक्षा करना कि वह देश के बारे में सोचे मिथ्या है। प्रदेश में पर्यावरण के सुधार के सम्बन्ध में पहली बात जो हमारे मस्तिष्क में आती है वह गरीबी एवं जनसंख्या पर नियंत्रण है। इसके बिना पर्यावरण में किसी प्रकार का सुधार ला पाना कठिन है। बढ़ती जनसंख्या के कारण अपशिष्ट निस्तारण की समस्याएं बढ़ेंगी।

loksabha election banner

ग्रामीण क्षेत्रों से शहरी क्षेत्रों में पलायन एक वास्तविकता एवं आवश्यकता है। उत्तर प्रदेश की 22 प्रतिशत से अधिक जनसंख्या शहरों में रहती है। यह पलायन एवं संसाधन विकास का एक गम्भीर कुचक्त्र है जिसमें शहरों में संसाधन की उपलब्धता के कारण गाव से पलायन होता है एवं पलायन के फलस्वरूप बढ़ती जनसंख्या के लिए और अधिक संसाधनों के विकास की आवश्यकता होती है। प्रदेश में विकास का झुकाव पश्चिमी क्षेत्रों में अधिक है। हमें देखना होगा कि पूर्वी एवं कम विकसित क्षेत्रों को कैसे विकसित किया जाए। मेरे विचार में प्रदेश के पूर्वी एवं कम विकसित जिलों का विस्तृत अध्ययन किया जाना चाहिए ताकि वहा के पर्यावरण संसाधनों में की स्थिति का आकलन हो सके ताकि विकास को उस ओर और भी केंद्रित किया जा सके। पर्यावरणीय गुणवत्ता का संसाधन प्रयोग से सीधा सम्बन्ध है।

आवश्यकता से अधिक संसाधनों का प्रयोग अपशिष्टों में परिवर्तित होता है। यह वाणिज्यिक एवं पर्यावरणीय, दोनों की दृष्टियों से हानिकारक है। इसकी आवश्यकता है कि संसाधनों से अधिकतम उत्पादकता प्राप्त की जाए। प्रदेश में कई ऐसी औद्योगिक इकाइया जो अपने ही प्रकार की अन्य इकाइयों की तुलना में आवश्यकता से अधिक संसाधनों का प्रयोग कर रही है। पर्यावरणीय एवं ऊर्जा आडिट की व्यवस्था प्रदेश में विद्यमान है। इसको सुदृढ़ किये जाने की आवश्यकता है। इससे एक ओर तो संसाधन बचेंगे। दूसरी ओर उत्पादकता में वृद्धि होगी। मनुष्य के जीवन में जल की एक महत्वपूर्ण भूमिका है। विचार योग्य यह है कि प्रदेश में लगभग 75 प्रतिशत कृषि, भूगर्भ जल पर आधारित है एवं बहुत अधिक मात्रा में भूगर्भ जल का प्रयोग अनियंत्रित रूप से घरेलू एवं औद्योगिक जल आपूर्ति के लिए भी किया जा रहा है। भूगर्भ जल स्तर अत्यंत ही तीव्र गति से गिर रहा है। शहरी क्षेत्रों में भी स्थिति गम्भीर है। बढ़ती हुई आबादी एवं सूखते नदी-तालाब इस समस्या को और गम्भीर रूप देते हैं। भूगर्भ जल प्रयोग नियंत्रण के लिए अभी भी प्रदेश कोई ऐसा प्राधिकरण नहीं है जो भूगर्भ जल के प्रयोग को नियंत्रित कर सके।

राष्ट्रीय जल नीति में प्रदेश स्तर की ऐसी संस्था का प्रावधान है एवं यह भी प्रावधान है कि प्रदेश स्तर पर नियंत्रण के लिए अधिनियम बनाया जाए। हमारे प्रदेश में भी कुछ कार्य हुआ तो है परन्तु अधिनियम को अंतिम रूप शीघ्र देना होगा। उत्तर प्रदेश एक कृषि प्रधान देश है। जलवायु परिवर्तन का हमारे प्रदेश पर विशेषकर कृषि पर गहरा प्रभाव पड़ने की आशका है। गेहूं, धान की उत्पादकता कम होगी। चीनी के निर्माण में हम आगे हैं परन्तु इस पर हमारी तैयारी नहीं है कि जलवायु परिवर्तन से गन्ने के खेतों में लगभग 30 प्रतिशत की कमी आएगी। प्रदेश में जलवायु परिवर्तन के संबध में एक प्रारूप कार्ययोजना तैयार की गई थी जिसमें आवास, वनीकरण एवं जल संसाधन, ऊर्जा इत्यादि विषयों पर विस्तृत योजनाएं प्रस्तावित की गई थीं। लगभग 20 प्रदेशों द्वारा अपनी कार्य योजनाएं तैयार की जा चुकी हैं। उत्तर प्रदेश द्वारा इसको अंतिम रूप तत्काल देने का प्रयास करना होगा।

- डॉ.यशपाल सिंह

पूर्व निदेशक पर्यावरण उ.प्र.शासन,

मोबाइल पर ताजा खबरें, फोटो, वीडियो व लाइव स्कोर देखने के लिए जाएं m.jagran.com पर


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.