राजा को चाहिए राज का साथ
राजा को चाहिए राज का साथ न सिर्फ ताज और न बड़े उद्योग। यहा तो खेतों की माटी भी सिर पर ताज सजाए बैठी है। सरकार जरा सा साथ दे दे, तो सब्जियों के राजा आलू की ये राजधानी सारे जहा में परचम लहरा दे। खेतों में हल चला-चलाकर किसान ने तस्वीर तो बना दी, अब सरकार एक कलम चला दे तो तकदीर भी बदल जाए।
आगरा,[जितेन्द्र शर्मा]। राजा को चाहिए राज का साथ न सिर्फ ताज और न बड़े उद्योग। यहा तो खेतों की माटी भी सिर पर ताज सजाए बैठी है। सरकार जरा सा साथ दे दे, तो सब्जियों के राजा आलू की ये राजधानी सारे जहा में परचम लहरा दे। खेतों में हल चला-चलाकर किसान ने तस्वीर तो बना दी, अब सरकार एक कलम चला दे तो तकदीर भी बदल जाए। सफलता का मुकाम बहुराष्ट्रीय कंपनियों का हाथ किसानों की ओर बढ़ा हुआ है और नजरें उस सरकार की तरफ, जिसकी जड़ें धरतीपुत्र से ही जुड़ी हैं।
विश्व का 10-15 प्रतिशत आलू उ.प्र. में उगता है। उसमें भी सात प्रतिशत भागीदारी सिर्फ आगरा की है। खंदौली के आलू की माग को देखते हुए अधिकाश किसानों ने इस फसल को ही अपनाया। इसके सहारे आगरा में कोल्ड स्टोरेज व्यवसाय भी बढ़ा। बाजार में आलू की इतनी मजबूत स्थिति के बाद भी कभी मौसम की मार, तो कभी कीमतों के उतार-चढ़ाव किसान की कमर तोड़ देते हैं। ऐसे में सरकार ने फूड प्रोसेसिंग यूनिट, आलू आधारित उद्योगों की स्थापना की प्रक्रिया शुरू की, जो कागजी प्रयासों से आगे नहीं बढ़ीं, लेकिन बहुराष्ट्रीय कंपनियां जरूर आलू की चाहत में खेतों तक आ गईं। पेप्सिको, रिलायंस फ्रेश और मदर डेयरी जैसी कंपनिया विदेशों का उन्नत बीज और डीएपी किसानों को उपलब्ध कराने को रजामंद हैं। अब लगभग एक दर्जन कंपनिया खेतों में निवेश को भी तैयार हैं। खेतों में इस बड़ी डील के सारे रास्ते साफ होने के बाद भी कंपनियों और किसानों के दिल में हिचक है, क्योंकि उ.प्र.में अभी तक सरकार ने काट्रैक्ट फार्मिंग को मान्यता नहीं दी है।
जानकारों का मानना है कि यदि सरकार ऐसा कर दे, तो कई कंपनियां यहा कृषि में निवेश को कदम बढ़ा सकती हैं। खाद-पानी से आएगी खुशहाली आगरा में रबी, खरीफ और जायद की फसल मिलाकर कुल रकबा लगभग 2.70 लाख हेक्टेयर है। आलू के अलावा यहा गेहूं,तिलहन, दालें और मक्के की खेती होती है।
कृषि के लिए बेहतर मानी जाने वाली जमीन के बावजूद किसान परेशान है। आलू उत्पादक किसान समिति के पुष्पेंद्र जैन का कहना है कि सभी फसलों में खाद और पानी की समस्या है। सहकारी समिति और बाजार में खाद की कीमत अलग-अलग है। सरकार को चाहिए कि एक जिले में खाद की कीमत एक ही हो। फसल से लगभग बीस दिन पहले खाद उपलब्ध हो। इसके साथ ही बिजली 16 घटे मिलने लगे तो सिंचाई की समस्या भी नहीं रहेगी। अवैध मंडी टैक्स की वसूली क्यों मंडी अधिनियम 1964 के मुताबिक, कोई भी किसान अपनी कृषि उपज कहीं भी बेच सकता है। उस पर मंडी टैक्स नहीं लगेगा। इसके बावजूद आगरा में आलू किसानों को मंडी टैक्स देना पड़ रहा है। किसानों का मानना है कि उनके खसरा-खतौनी देख लिए जाएं, बेवजह उन्हें व्यापारी कहकर अवैध मंडी टैक्स न वसूला जाए।
जरूरतें यह भी हैं
-आगरा में प्रोसिसिंग यूनिटों की स्थापना के लिए उदार नीति अपनाई जाए।
- आलू क्षेत्र और उत्पादन को लेकर सटीक सूचना उपलब्ध हों।
- फूड पार्क की स्थापना की जाए। सीपीआरआइ, पोटेटो बोर्ड आदि प्रोजेक्ट आगे बढ़ाए जाएं।
- लो सल्फर डीजल से जनरेटर और ब्वायलर चलाने की अनुमति मिले। सिंचाई को मिले पानी तो लहलहाएं खेत कृषि की तरक्की को सबसे बड़ी मुश्किल सिंचाई की है। जिले में सबसे पुराना और बड़ा आगरा नहर निचले खंड का सिंचाई तंत्र है। इससे फतेहपुर सीकरी अछनेरा, सैंया, शमसाबाद, बरौली अहीर और बिचपुरी ब्लॉक का आशिक भाग सिंचित होता है। 600 किमी के इस तंत्र का दायरा फिलहाल 15 प्रतिशत कम हो गया है। चंबल डाल परियोजना से 60 किमी नहरें जनपद में जुड़ी हैं। इनसे बाह, जैतपुर और पिनाहट के क्षेत्र सिंचित होते हैं। एत्मादपुर और खंदौली ब्लॉक को पोषित करने वाले दो तंत्र हैं। जिनमें से सहपऊ रजवाह की 80 किमी नहरों से केवल 20 किमी की नहरें ही चल पाती हैं। दूसरे माट निचली ब्राच की टेल केवल तीन-चार किमी खंदौली में है। सबसे ज्यादा 225669 हेक्टेयर क्षेत्र निजी नलकूपों से ही सिंचित होता है। इसमें मुश्किल बिजली की है। चंबल परियोजना से पोषित नहरों में पानी भी बिजली की आपूर्ति पर ही निर्भर है। यदि विद्युत आपूर्ति में सुधार हो और कुछ क्षेत्रों में चेकडैम बन जाएं, तो स्थिति बदल सकती है।
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