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नेहरू ने सिखाए थे अच्छे सांसद बनने के गुर

केद्रीय मत्री वीरभद्र सिह ने कहा है कि पंडित नेहरू के उन शब्दो को आधी सदी गुजर चुकी है जब उन्होने उन्हे अच्छा सासद बनने का गुरुमंत्र दिया था, लेकिन उनके मन मे ये शब्द आज भी गूंजते रहते है कि अच्छा सासद बनने के लिए आंख व कान खुले, लेकिन मुह बद रखो।

By Edited By: Published: Tue, 15 May 2012 05:14 PM (IST)Updated: Tue, 15 May 2012 05:51 PM (IST)

नई दिल्ली। केंद्रीय मंत्री वीरभद्र सिंह ने कहा है कि पंडित नेहरू के उन शब्दों को आधी सदी गुजर चुकी है जब उन्होंने उन्हें अच्छा सांसद बनने का गुरुमंत्र दिया था, लेकिन उनके मन में ये शब्द आज भी गूंजते रहते हैं कि अच्छा सांसद बनने के लिए आंख व कान खुले, लेकिन मुंह बंद रखो।

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वरिष्ठ कांग्रेस नेता वीरभद्र ने 1962 में हिमाचल प्रदेश से लोकसभा में प्रवेश किया था। लोकसभा में वर्तमान में ऐसा कोई सदस्य नहीं है, जिसने निचले सदन में उनसे पहले प्रवेश किया हो।

वीरभद्र ने रविवार को संसद के 60 साल पूरे होने के मौके पर कहा कि जब 1962 में मैं तीसरी लोकसभा का सदस्य बना तो उस समय मेरी उम्र मात्र 26 साल थी। पंडित जवाहर लाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री जैसे दिग्गजों और मधु लिमाए, हिरेन मुखर्जी तथा पीलू मोदी जैसे विपक्ष के नेताओं के साथ बैठना एक बड़ा अनुभव था।

उन्होंने याद करते हुए कहा कि जब मैं पंडित नेहरू से मिलने गया तो उन्होंने मुझे अच्छा सांसद बनने के लिए आंख और कान खुले रखने, लेकिन मुंह बंद रखने को कहा।

वीरभद्र ने कहा, मैंने उनकी सलाह का धर्म की तरह पालन किया और उसी के अनुसार सत्तारूढ़ एवं विपक्ष के नेताओं के भाषणों को ध्यान से सुनता तथा महत्वपूर्ण बिंदुओं को लिख लेता। उन्होंने कहा कि यह सलाह युवा सांसदों के लिए आज भी प्रासंगिक है।

तीसरी, चौथी, पांचवीं, सातवीं और 15वीं [वर्तमान] लोकसभा में निर्वाचित हुए वीरभद्र के पास इस समय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय है।

वह पांच बार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। उन्होंने लोकसभा की अपनी पारी 1962 में महासू से शुरू की जब हिमाचल प्रदेश पंजाब का हिस्सा था।

पुरानी संसदीय परंपरा एवं मौजूदा परंपरा की तुलना करते हुए उन्होंने कहा, उन दिनों सत्ता पक्ष और विपक्ष के सदस्य कड़ा एवं सटीक भाषण दिया करते थे, लेकिन उनके बीच कोई विवाद नहीं होता था।

उन्होंने कहा, उस समय विभिन्न पक्षों के सदस्यों के बीच मित्रवत हस्तक्षेप एवं स्वस्थ चर्चा होती थी। लोग एक-दूसरे को सम्मान के साथ सुना करते थे, लेकिन आजकल संसदीय कार्यवाही में बार बार बाधा डाल दी जाती है और सदस्य मामूली सी बात पर आसन के समक्ष आ जाते हैं।

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