हौसले की उड़ान से मिला शिक्षा का जहान
पीतल की नगरी में एक भव्य इमारत है। दिल्ली रोड पर खड़ा यह तीर्थकर महावीर विश्वविद्यालय (टीएमयू) का भवन है। पर, भवन से खूबसूरत यहा की नीव है, बुलंद है। इस बुलंदी का स्वामी दुष्यंत कुमार की पंक्तियां..एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों का मुकम्मल यार है।
मुरादाबाद, [ज्ञानेंद्र त्रिपाठी]। पीतल की नगरी में एक भव्य इमारत है। दिल्ली रोड पर खड़ा यह तीर्थकर महावीर विश्वविद्यालय (टीएमयू) का भवन है। पर, भवन से खूबसूरत यहा की नीव है, बुलंद है। इस बुलंदी का स्वामी दुष्यंत कुमार की पंक्तियां..एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों का मुकम्मल यार है। खुद की शिक्षा 10वीं पार तक न ले जा सका, लेकिन शैक्षणिक संस्थाओं की ख्याति को सात समंदर पार की राह पकड़ा चुका है। बीस हजार छात्रों को सौ से भी अधिक पाठ्यक्रमों की शिक्षा मुहैया कराने वाला किसान का बेटा यह शख्स कोई और नहीं टीएमयू के कुलाधिपति सुरेश जैन हैं।
जैन शिक्षा जगत में मुरादाबाद के बढ़ते कदम की जिंदा मिसाल हैं। उनका जीवन कोशिशों को हकीकत में बदलने का प्रमाण है। पैंसठ वसंत का साक्षी यह कर्म योद्धा पिता की प्रेरणा को पहाड़ सी ऊंचाई दिला चुका है। पिता जी के सपने को साकार करने के लिए खेती की, लकड़ी बेची, क्रशर चलाए और एक्सपोर्ट की राह पकड़ कर शैक्षणिक विश्व में झडा गाड़ने चल पड़े। उनके पिता प्रेम प्रकाश जैन ने पैतृक गाव हरियाना में 1966 में एक इंटर कॉलेज की स्थापना की थी। उसके बाद शिक्षा की इस लौ को हर दर्जे की मशाल बनाने का काम सुरेश जैन ने किया।
उन्होंने हरियाना गाव का पैतृक आवास न केवल नर्सरी स्कूल को समर्पित कर दिया, बल्कि इसमें पढ़ने वाले छह सौ बच्चों की शिक्षा भी नि:शुल्क कर दी। इस पुनीत कार्य के बाद सुरेश जैन गाव छोड़ कर शहर आ गए। यहा एक्सपोर्ट एवं टिम्बर व्यवसाय को आय का साधन बना शिक्षा की मशाल को जलाने में जुट गए। पंजाब नेशनल बैंक से आर्थिक सहयोग मिलने पर उन्होंने 2001 में दिल्ली रोड पर तीर्थकर महावीर इंस्टीट्यूट की नींव रखी। इसके बाद इस परिसर में एक-एक कर उन्होंने डेढ़ दर्जन से अधिक कॉलेज स्थापित कर सौ से अधिक पाठ्यक्रम की पढ़ाई मुहैया कराई। इस परिसर के इंस्टीट्यूट अब टीएमयू का हिस्सा बन गए हैं, जो यूपी का पहला जैन अल्पसंख्यक विश्वविद्यालय है। 135 एकड़ के परिसर में 50 लाख वर्ग फुट में निर्मित यहा के भवनों में चल रहे कालेजों में जैन छात्र-छात्राओं को वार्षिक शुल्क के रूप में दस से पचास फीसद तक छात्रवृत्ति दी जाती है।
सुरेश जैन अपनी इस यात्रा को अभी विराम देना नहीं चाहते। बताते हैं शुरू में धन की कमी थी, तब परेशानी होती थी, अब बैंक का साथ है, विश्वविद्यालय शुल्क के रूप में कोष बढ़ रहा है। ऐसे में परेशानी विदा लेने को है। जहा तक इस काम से मेरी विदाई की बात है तो अभी शिक्षा में बहुत करना है। इस विश्वविद्यालय को देश का नंबर वन संस्थान बनाना है, विश्व के सर्वश्रेष्ठ सौ विश्वविद्यालयों की सूची में इसका नाम दर्ज कराना है।
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