तो चमके जूता उद्योग
आगरा की तंग गलियों से निकल कर विश्व बाजार में दौड़ रहे जूते को घर में ही ठोकर लगी है। पिछले साल की तुलना में निर्यात में आई सीधे 35 प्रतिशत की गिरावट के बाद यह उद्योग कराह उठा है कि अब सरकार ने सहारा न दिया तो लड़खड़ाता जूता उद्योग कहीं घुटने न टेक दे। हा, माद्दा भी इतना है कि मुख्यमंत्री यदि दिल्ली में दखल देकर
आगरा [जासं]। आगरा की तंग गलियों से निकल कर विश्व बाजार में दौड़ रहे जूते को घर में ही ठोकर लगी है। पिछले साल की तुलना में निर्यात में आई सीधे 35 प्रतिशत की गिरावट के बाद यह उद्योग कराह उठा है कि अब सरकार ने सहारा न दिया तो लड़खड़ाता जूता उद्योग कहीं घुटने न टेक दे। हा, माद्दा भी इतना है कि मुख्यमंत्री यदि दिल्ली में दखल देकर चमड़े के निर्यात पर रोक लगवा दें तो फिर आगरा के जूते की चाल देख लें। आगरा के विकास के प्रति खास दिलचस्पी दिखा रहे मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से उस जूता उद्योग ने उम्मीदें जोड़ ली हैं, जिसने दुनिया में आगरा का नाम चमकाया है। 60 प्रतिशत हिंदुस्तानी आगरा का जूता पहनते हैं और विदेशों में लगभग 25000 करोड़ रुपये का निर्यात है। इस उपलब्धि पर जिन उद्यमियों के चेहरे चमक रहे थे, अब उन्हीं चेहरों पर शिकन है। इसकी वजह है चमड़े की अनुपलब्धता और कीमतों में लगातार उछाल। दबे पाव उद्योग की ओर बढ़ रही इस समस्या पर लगातार चीख रहे जूता उद्योग की बात पर न तो लखनऊ में गौर किया गया और न दिल्ली के दरबार पर कोई असर हुआ। परिणाम सामने हैं। आगरा फुटवियर मैन्युफैक्चरर्स एंड एक्सपोर्ट चैंबर (एफमेक) के वरिष्ठ उपाध्यक्ष शाहरू मोहसिन का कहना है कि चमड़े की कीमत एक साल में ही लगभग 35 प्रतिशत बढ़ गई है। महंगा होने के बावजूद चमड़े की गुणवत्ता गिरी है। उस पर भी मुसीबत ये कि यह चमड़ा भी माग के अनुसार नहीं मिल रहा। यही सबसे बड़ी वजह है, जिसके चलते उद्योग को तगड़ा झटका लगा है। काउंसिल फॉर लेदर एक्सपोर्ट के रीजनल चेयरमैन नजीर अहमद ने बताया कि आगरा के जूता निर्यात में कुछ समय से प्रतिवर्ष 20 प्रतिशत का इजाफा हो रहा था। इस वर्ष न सिर्फ 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी रुकी, बल्कि लगभग 15 प्रतिशत की कमी भी आई है। इस तरह निर्यात में सीधे 35 प्रतिशत की गिरावट आई है।
सरकार से उद्यमियों का मजबूत तर्क है कि जब हमें इजिप्ट, बाग्लादेश और पाकिस्तान से महंगी दरों पर चमड़ा आयात करना पड़ रहा है तो तमिलनाडु, कानपुर, जालंधर और कोलकाता से चमड़ा निर्यात क्यों किया जा रहा है। इसमें भी लगभग 40 प्रतिशत चमड़ा भारत के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी देश चीन को निर्यात किया जा रहा है। यदि प्रदेश सरकार केंद्र सरकार से वार्ता कर ऐसी नीति बनवाए कि देश से चमड़े के निर्यात पर रोक लगाकर यहा सिर्फ तैयार जूता ही निर्यात किया जाए तो यहा के जूता उद्योग का निर्यात कुछ ही समय में कई गुना बढ़ जाएगा।
काश! नजर-ए-इनायत यहा भी हो जाए
- कॉमन फैसिलिटेशन सेंटर के लिए केंद्र सरकार पंद्रह करोड़ रुपये देने को
तैयार है। प्रदेश सरकार से जमीन की दरकार है।
- केंद्र सरकार ने फुटवियर डवलपमेंट एंड डिजाइनिंग सेंटर के लिए सौ करोड़ देने की सहमति दी है। इसके लिए भी जमीन प्रदेश सरकार को ही देनी होगी।
- मेगा लेदर क्लस्टर की सौगात आगरा को देने के लिए भारत सरकार तैयार है, लेकिन जमीन यहा भी बाधा बनी हुई है।
- आगरा या आसपास कहीं फुटवियर ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट शुरू किया जाए, क्योंकि चमड़े की उपलब्धता के बाद सबसे बड़ा संकट कुशल कारीगरों का ही है। यहा जूता इकाइयों को मैनेजर या सुपरवाइजर नहीं, बल्कि हर साल हजारों की संख्या में जूता बनाने वाले मजदूर चाहिए। प्रशिक्षण संस्थान से उद्योग की स्थिति तो सुधरेगी ही, साथ में हजारों बेरोजगारों को रोजगार भी मिलेगा।
अफसर दबाए बैठे 30 करोड़
उद्योग को राहत देना तो दूर, यहा तो सरकारी तंत्र उद्यमियों के उत्पीड़न में जुटा है। दरअसल 2010 में वैट लागू हुआ तो जूता उद्योग को भी इसकी परिधि में शामिल कर लिया, जबकि निर्यात पर टैक्स नहीं लगता। बाद में सरकार ने प्रावधान किया कि उद्यमी वैट जमा करेंगे। इसके बाद वाणिज्य कर विभाग में आवेदन करेंगे। विभाग 21 दिन में सभी औपचारिकताएं कर 30 दिन में वैट की राशि वापस कर देगा। इस नियम का पालन विभागीय अधिकारियों ने नहीं किया। तमाम शिकायतों के बाद कुछ इकाइयों का ही पैसा लौटाया गया है। इसके बावजूद विभाग पर जूता निर्यातकों का लगभग 30 करोड़ रुपया अभी भी बकाया है। गौरतलब है कि गुप्ता ओवरसीज ने विभाग से बकाया वसूलने को हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो कोर्ट ने ब्याज समेत पैसा लौटाने के आदेश दिए हैं।
उद्यमी चाहते हैं कि मुख्यमंत्री इस ओर सख्त आदेश दें तो यह मुश्किल हल हो जाए।
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