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हमारा प्रदेश

1857 के गदर में राज्य के लोगों की ऐतिहासिक भूमिका रही। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवध की बेगम हजरत महल, बख्त खान, नाना साहब, मौलवी अहमदुल्ला शाह, राजा बेनी माधव सिंह, अजीमुल्ला खान समेत अनगिनत देशभक्तों ने अंग्रेजी हुकूमत से जमकर लोहा लिया।

By Edited By: Published: Sat, 29 Sep 2012 04:15 PM (IST)Updated: Mon, 01 Oct 2012 12:44 PM (IST)
हमारा प्रदेश

1857 के गदर में राज्य के लोगों की ऐतिहासिक भूमिका रही। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, अवध की बेगम हजरत महल, बख्त खान, नाना साहब, मौलवी अहमदुल्ला शाह, राजा बेनी माधव सिंह, अजीमुल्ला खान समेत अनगिनत देशभक्तों ने अंग्रेजी हुकूमत से जमकर लोहा लिया।

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1858 में उत्तर-पश्चिम प्रांत से दिल्ली डिवीजन को अलग कर दिया गया और प्रदेश की राजधानी को आगरा से इलाहाबाद स्थानांतरित कर दिया गया। उसी साल एक नवंबर को ईस्ट इंडिया कंपनी के हाथों से राजनीतिक शक्ति महारानी विक्टोरिया के पास चली गई। 1877 में उत्तर-पश्चिम प्रांत के लेफ्टिनेंट गवर्नर और अवध के चीफ कमिश्नर के पदों का विलय हो गया। उसके बाद इस पूरे बड़े क्षेत्र को आगरा और अवध का उत्तर-पश्चिमी प्रांत कहा जाने लगा। 1902 में एक बार फिर इस नाम में परिवर्तन हुआ और इसको आगरा और अवध का संयुक्त प्रांत कहा जाने लगा। 1937 में इसके नाम संक्षिप्तीकरण हो गया और इसको संयुक्त प्रांत कहा जाने लगा। आजादी के ढाई साल बाद 12 जनवरी, 1950 को इस प्रांत को वर्तमान नाम उत्तर प्रदेश मिला। जब आजाद भारत में 26 जनवरी, 1950 को संविधान लागू हुआ तो उत्तर प्रदेश देश में पूर्ण राज्य के रूप में अस्तित्व में आया।

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