जरूरत है ईमानदार पहल की
गोरखपुर। कभी हम चीनी और हथकरघा उद्योग के लिए देश में मशहूर थे और अब पूर्वाचल की विपन्नता के बारे में सुनते-सुनते कान पकने लगे हैं। इन उद्योगों के बंद होने से हालात पूर्वाचल बदहाल हो गया। इसे केंद्र से लगायत प्रदेश की सरकारों और इस बाबत गठित आयोग भी मानते हैं।
गोरखपुर। कभी हम चीनी और हथकरघा उद्योग के लिए देश में मशहूर थे और अब पूर्वाचल की विपन्नता के बारे में सुनते-सुनते कान पकने लगे हैं। इन उद्योगों के बंद होने से हालात पूर्वाचल बदहाल हो गया। इसे केंद्र से लगायत प्रदेश की सरकारों और इस बाबत गठित आयोग भी मानते हैं। हैरत यह कि बावजूद इसके जिस प्रभावी तरीके से बदहाली दूर करने की की पहल होनी चाहिए, नहीं हुई। 1962 में पहली बार गाजीपुर के सासद विश्र्र्वनाथ सिंह गहमरी ने पूर्वाचल के पिछड़ेपन के मुद्दे को संसद में उठाया था। तबके प्रधानमंत्री और योजना आयोग के अध्यक्ष जवाहर लाल नेहरू की पहल पर पटेल आयोग गठित हुआ। उसने पूर्वाचल के विकास की योजना तैयार कर 1964 में अपनी रिपोर्ट आयोग को सौंपी। रिपोर्ट अब तक फाइलों में ही बंद है। तीसरी पंचवर्षीय योजना [1962-67] में महसूस किया गया कि योजनाओं को नतीजापरक बनाने के लिए उनका क्रियान्वयन क्षेत्रीय स्तर पर हो। इसके लिए प्रदेश को पाच आर्थिक क्षेत्रों में बाटा गया। इनमें से पूर्वी उत्तर प्रदेश भी एक है। क्षेत्र फल 85844 किलोमीटर और आबादी 7 करोड़ के लिहाज से सबसे बड़ा होने के बावजूद विकास के हर मानक में आज इस पर सबसे पिछड़ा होने का कलंक है। सरकारी आकड़ों के मुताबिक सूबे में गरीबी रेखा के नीचे रहने वाले 40 फीसद लोगों की तुलना में पूर्वाचल में यह संख्या 70 फीसद है। 83 फीसद जोतों का आकार एक हेक्टेयर से कम होने के कारण परंपरागत खेती लाभकर नहीं है। जो लोग खेती में नहीं खप पाते वे रोजी-रोटी के लिए दूसरे बड़े शहरों या परदेश जाते हैं। मंच से तो ये बातें कही जाती हैं कि अपना घर कोई मजबूरी में ही छोड़ता है। सवाल यह है कि लाखों की संख्या में परदेश में रहने वाले पूर्वाचल के लोग यहा आए इसके लिए कभी ईमानदारी से प्रयास हुआ। आबादी, क्षेत्रफल और पिछड़ेपन के आधार पर पूर्वाचल को कोई पैकेज क्यों नहीं मिला, जिससे लोग लौटें। क्षेत्र की खुशहाली में अपना योगदान दें। अभी भी समय है कि तुरंत कदम उठाए जाए।
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