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किसान हलकान, फसल की लागत भी नहीं निकल पा रही

यूपीए टू यानी मनमोहन सरकार ने मंगलवार को अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे कर लिए। इन तीन साल के उसके कार्यकाल से कोई भी संतुष्ट नही है। हर वर्ग परेशान है और चारो ओर त्राहि-त्राहि मची हुई, लेकिन सरकार व उसमे शामिल मंत्री अपनी मस्ती मे मस्त है। किसानो की भी सबसे अधिक दुर्गति इस सरकार के कार्यकाल मे ही हुई है। उनकी जमीन अधिग्रहित कर उसे बड़े-बड़े उद्योगपतियो को दिया जा रहा है।

By Edited By: Published: Tue, 22 May 2012 04:17 PM (IST)Updated: Tue, 22 May 2012 04:24 PM (IST)
किसान हलकान, फसल की लागत भी नहीं निकल पा रही

गुड़गांव [वरिष्ठ संवाददाता]। यूपीए टू यानी मनमोहन सरकार ने मंगलवार को अपने कार्यकाल के तीन साल पूरे कर लिए। इन तीन साल के उसके कार्यकाल से कोई भी संतुष्ट नहीं है। हर वर्ग परेशान हैं और चारों ओर त्राहि-त्राहि मची हुई, लेकिन सरकार व उसमें शामिल मंत्री अपनी मस्ती में मस्त हैं। किसानों की भी सबसे अधिक दुर्गति इस सरकार के कार्यकाल में ही हुई है। उनकी जमीन अधिग्रहित कर उसे बड़े-बड़े उद्योगपतियों को दिया जा रहा है। दूसरी ओर, जो किसान फसल बो रहे हैं उन्हें भी न तो कोई सहूलियत दी जा रही इसके चलते फसल की लागत न निकलने से किसान लगातार कर्ज के दलदल में धंसते जा रहा है। महंगाई अपने चरम पर है और गांव के लोगों को बुरा हाल है।

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रामपुरा गांव के वेदप्रकाश का कहना है यूपीए टू की बजाए वन का कार्यकाल फिर भी ठीक था। यूपीए टू से पूरे देश को खासी उम्मीद थी, लेकिन वह इस पर जरा भी खरी नहीं उतरी। उसकी हर राज्य में अलग-अलग नीतियां हैं और यही कारण हैं कि कहीं के किसान को फायदा मिल रहा तो कहीं के बर्बाद हो रहे। इससे बड़ी दुर्गति किसानों की ओर क्या होगी कि बेहतर फसल देने वाली जमीन उनसे लेकर उद्योगपतियों को औने-पौने दाम में दी जा रही है। वहीं यह इस जमीन को आगे बेचकर अपनी जेब गर्म कर रहे हैं। गांव बहरामपुर के रामनारायण यादव का कहना है सरकार के तीन साल देश पर भारी पड़े और इसी प्रकार से इसने आगे भी काम किया तो पतन तय है। किसान भूखमरी के शिकार हो रहे हैं और उन्हें राहत देने के लिए सरकार के पास कोई योजना नहीं है। इससे तो लग रहा है कि सरकार पैसे वालों की है और गरीब, मध्यमवर्गीय वर्ग की कहीं भी सुनवाई नहीं है। गांव डूंडाहेड़ा के जेबी यादव का कहना है किसी जगह बंपर फसल होती है, तो किसी जगह कुछ भी नहीं होता। इसके चलते बंपर जगह तो उस फसल का कोई मूल्य नहीं होता, लेकिन दूसरी जगह मंहगी दर पर वह मिलती है। सरकार को इसके लिए इस प्रकार की नीति बनाना चाहिए कि इस प्रकार की फसल को आवश्यकतानुसार एक जगह से दूसरी जगह भेजा जा सके। इससे जहां किसानों को फसल की लागत मिल पाएगी वहीं दूसरी जगह लोगों की जेब भी अधिक ढीली नहीं होगी। नाथूपुर गांव के योगेंद्र सिंह भाटी का कहना है पहले तो दाल-रोटी खाकर ही संतुष्ट थे लेकिन अब तो यह भी दूर होती नजर आ रही है। मनमोहन सरकार लोगों को राहत देने के लिए कुछ भी नहीं कर पा रही है और इससे गरीब वर्ग का मरण तय है। सरहौल गांव के पूर्व सरपंच नरेश कुमार का कहना है प्रधानमंत्री मनमोहन से पूरे देश को खासी उम्मीद थी लेकिन लगता है गठबंधन के जाल में वह पूरी तरह उलझ चुके हैं। महंगाई अपने चरम पर है और लोग मूलभूत सुविधाओं के लिए भी तरस रहे हैं। महंगाई के कारण किसान की हालात सबसे अधिक खराब है। यही स्थिति रही तो लोग सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरने में भी संकोच नहीं करेंगे।

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