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सरकार के साथ नहीं दिखा मदद का 'हाथ'

मुश्किल के क्षणो मे क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पूरी तरह अकेले थे? पिछले तीन साल मे घोटालो की मार, अदालत के चक्कर और आंदोलनो की आंधी जब जब ताकतवर हुई, तब कई बार सरकार की पीठ पर पार्टी का मजबूत हाथ नजर नही आया। दिल्ली के राजनीतिक हलको में यह महसूस करने वाले कम नही है, कांग्रेस ने उपलब्धियो के जुलूस मे अपना झंडा बुलंद रखा, मगर सरकार जब फंसी तो पार्टी सिद्धांतवादी हो गई। तीन साल में ऐसे मौके कम नहीं थे जब खुद पार्टी ने भी सरकार की मुसीबत बढ़ाई।

By Edited By: Published: Tue, 22 May 2012 04:17 PM (IST)Updated: Tue, 22 May 2012 04:24 PM (IST)

नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। मुश्किल के क्षणों में क्या प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पूरी तरह अकेले थे? पिछले तीन साल में घोटालों की मार, अदालत के चक्कर और आंदोलनों की आंधी जब जब ताकतवर हुई, तब कई बार सरकार की पीठ पर पार्टी का मजबूत हाथ नजर नहीं आया। दिल्ली के राजनीतिक हलकों में यह महसूस करने वाले कम नहीं हैं, कांग्रेस ने उपलब्धियों के जुलूस में अपना झंडा बुलंद रखा, मगर सरकार जब फंसी तो पार्टी सिद्धांतवादी हो गई। तीन साल में ऐसे मौके कम नहीं थे जब खुद पार्टी ने भी सरकार की मुसीबत बढ़ाई।

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तीन साल का बहीखाता मिलाते हुए कांग्रेस पार्टी और संप्रग सरकार के अपने तर्क हो सकते हैं लेकिन रिटेल में विदेशी निवेश से लेकर एनसीटीसी तक जटिल राजनीतिक मौकों पर दस अकबर रोड [कांग्रेस मुख्यालय] की रहस्यमय तटस्थता ने बार बार यह महसूस कराया कि अगर कांग्रेस ने यूपीए गठबंधन की सियासत को कुछ सूझ बूझ के साथ संभाला होता तो ममता इतनी बड़ी मुसीबत न बनतीं और सरकार इस कदर विकलांग न हो जाती।

छोटी बात नहीं थी कि सरकारी वकील ने सुप्रीम कोर्ट में यह दिया कि 2जी आवंटन दौरान संचार मंत्री ए. राजा के कार्यकलापों की जानकारी प्रधानमंत्री को भी थी। यह प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह के लिए यह बहुत मुश्किल वक्त था। मगर इस मौके पर पार्टी ने मामले को अदालती बताकर किनारा कर लिया।

यह तो सबने देखा कि दिल्ली में आतंकियों के साथ बाटला हाउस की मुठभेड़ को गृह मंत्री चिदंबरम सही ठहराते रह गए और कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने खम ठोंककर उसे फर्जी करार दे दिया। चिदंबरम बनाम दिगी और आतंक को लेकर राजनीति के इस नाजुक दौर में कांग्रेस का आलाकमान की चुप्पी दिल्ली के राजनीतिक हलकों में काफी देर तक गूंजती रही।

अन्ना हजारे व बाबा रामदेव के आंदोलनों को संभालने में चूक पर सरकार की फजीहत बड़ी बेबाक थी। इस मौके पर तो खुद पार्टी के नेताओं ने ही दबी जुबान से अपनी ही सरकार को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया। इस दौरान पार्टी के मंच से सरकार पर तीर चलाने वाले दिगी ही थे, जो उन बाबा रामदेव को ढोंगी बता रहे थे जिन्हें मनाने के लिए सरकार दोहरी हो गई थी। मामला तब और गंभीर हो गया, जब सोनिया गांधी की मौजूदगी में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में कुछ नेताओं ने इन आंदोलनों को ठीक न संभाल पाने का सारा दोष सरकार पर मढ़ दिया। सूत्रों की मानें तो जब आहत प्रधानमंत्री ने इस्तीफे तक पेशकश कर दी तब जाकर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने मामले को ठंडा किया।

तीन साल का रिपोर्ट कार्ड दे रहे प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह आज अगर निस्तेज दिख रहे हैं और सरकार के पास कुछ भी चमकदार नहीं है तो इसकी एक बड़ी तोहमत कांग्रेस के खाते में भी दर्ज होती है, जो इस सरकार की राजनीतिक नियंत्रक है।

पार्टी बनाम सरकार

1. बाटला पर भिड़े चिदंबरम और दिगी

2. दिगी के ढोंगी बाबा रामदेव सरकार के मेहमान

3. अन्ना के आंदोलन दौरान कांग्रेस से ही उठे सरकार पर सवाल

4. गठबंधन के घटकों की ब्लैकमेलिंग और कांग्रेस की चुप्पी

5. रिटेल से लेकर एनसीटीसी तक सरकार हाशिये पर और कांग्रेस तटस्थ।

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