ज्ञान का दीया जलता रहा है, जलता रहेगा
जीवन चाहे जितने भी संकटों से घिरा हो, शिक्षा संभावनाओं के द्वार खोल देती है। यही वो द्वार है जिससे किसी दिन मजदूरी करने वाला बच्चा आइएएस बनकर निकल आता है। शिक्षा के बिना कोई भी देश विकास के सपने नहीं देख सकता। लेकिन आजादी के 65 साल बाद भी हमारी शिक्षा चुनौतियों के चक्रव्यूह में फंसी हुई है। कहीं खुले में कक्षाएं लग
अलीगढ़। जीवन चाहे जितने भी संकटों से घिरा हो, शिक्षा संभावनाओं के द्वार खोल देती है। यही वो द्वार है जिससे किसी दिन मजदूरी करने वाला बच्चा आइएएस बनकर निकल आता है। शिक्षा के बिना कोई भी देश विकास के सपने नहीं देख सकता। लेकिन आजादी के 65 साल बाद भी हमारी शिक्षा चुनौतियों के चक्रव्यूह में फंसी हुई है। कहीं खुले में कक्षाएं लग रही हैं तो कहीं शिक्षक ही नहीं हैं। मिड डे मील में कभी कीड़े निकल आते हैं तो कभी छिपकली। प्राथमिक से लेकर उच्च शिक्षा तक ज्ञान का दीया टिमटिमा रहा है। इस दीये की लौ को बढ़ाए बिना रोशन कल की उम्मीद नहीं कर सकते। ज्ञान ने ही कभी हमें विश्वगुरु का दर्जा दिलाया था। क्या यह फिर संभव है? आइए चुनौतियों के बीच संभावनाएं ढूंढें..
पहली चुनौती साक्षरता की है। जिले में साक्षरता दर 69 है। महिलाओं की बात करें तो यह महज 54 फीसदी है। राष्ट्रीय साक्षरता मिशन-2012 के तहत 1700 से अधिक प्रेरक लगे हुए हैं। इन्हें जिले में 853 लोक शिक्षा केंद्रों की जरूरत है। इस पर किसी का ध्यान ही नहीं है।
दूसरी बड़ी चुनौती बेसिक शिक्षा को पटरी पर लाने की है। सालाना डेढ़ अरब खर्च करने और सर्व शिक्षा अभियान शुरू होने के एक दशक बाद भी शैक्षिक गुणवत्ता के क्षेत्र में जिला बहुत पिछड़ा हुआ है। 5500 शिक्षक इस काम में लगे हैं, लेकिन हर निरीक्षण में शिक्षक गायब मिलते हैं। हम आज तक शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित नहीं कर पाए। हर साल हाउस होल्ड सर्वे के माध्यम से आउट ऑफ स्कूल बच्चों का सर्वे होता है। इसके बावजूद ऐसे बच्चों की कमी नहीं हो पा रही है। आज भी जिले के 450 विद्यालयों में बिजली नहीं है। शिक्षा का अधिकार कानून के मानकों को देखें तो अब भी जिले में 28 स्कूल कम हैं।
तीसरी बड़ी चुनौती कक्षा आठ पास करने वाले विद्यार्थियों की ड्राप आउट दर कम करने की है। इसके लिए राजकीय और सहायता प्राप्त विद्यालयों की कमी दूर करनी होगी। माध्यमिक शिक्षा में तकरीबन ढाई लाख विद्यार्थी होने के बावजूद जिले में मात्र 22 राजकीय और 94 वित्त सहायता प्राप्त विद्यालय हैं। इसी के चलते माध्यमिक शिक्षा में माफिया का दखल बढ़ रहा है। राष्ट्रीय माध्यमिक शिक्षा अभियान के तहत सात किमी पर इंटर कॉलेज और पाच किमी पर हाईस्कूल होना चाहिए। जिले को आज भी 76 हाईस्कूलों की जरूरत है। इसके अलावा राजकीय और सहायता प्राप्त विद्यालयों की हालत सुधारने के लिए वहा शिक्षकों की तैनाती और वषरें से बंद स्कूल मेंटीनेंस ग्राट को दोबारा शुरू करने की जरूरत है।
चौथी चुनौती उच्च शिक्षा में है। जिले में आगरा विश्वविद्यालय से संबद्ध तीन सहायता प्राप्त और छह राजकीय महाविद्यालय हैं। हर साल करीब 50 हजार छात्र इंटर पास करते हैं, लेकिन 10 फीसदी को ही इन कॉलेजों में दाखिला मिल पाता है। ऐसे में छात्रों के पास पलायन के अलावा कोई चारा नहीं बचता। मंडल में एक विश्वविद्यालय बन जाए तो उच्च शिक्षा की तस्वीर बदल सकती है। यहा पर न तो कोई सरकारी पॉलिटेक्निक है, न राजकीय इंजीनियरिंग कॉलेज। लाचारी में निजी कॉलेजों का रुख करना पड़ता है जहा फीस काफी है।
क्या करे सरकार-
1. शिक्षकों की नियुक्ति उनके घर के निकटतम स्कूलों में कर दी जाए तो वे समय से स्कूल पहुंच सकते हैं। शिक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए बायोमेट्रिक मशीन लगाने पर भी विचार किया जा सकता है।
2. शहर में किराये के जर्जर भवनों में चल रहे स्कूलों को खाली कराकर मल्टीस्टोरी प्राइमरी व जूनियर हाईस्कूल बनवाए जा सकते हैं।
3. शिक्षकों को गैर शैक्षणिक कायरें से मुक्त करने की जरूरत है। तभी वे शैक्षिक गुणवत्ता सुधारने पर ध्यान केंद्रित कर पाएंगे।
4. जिले में बेसिक के करीब 100 और माध्यमिक के पाच मॉडल स्कूल बनाने का प्रस्ताव अधर में लटका हुआ है। इन स्कूलों के लिए ग्राम पंचायत या फिर दान की जमीन नहीं मिल पा रही है। जनप्रतिनिधि रुचि लें तो यह काम हो सकता है। इससे निर्धारित दूरी पर पर्याप्त स्कूल खुल सकेंगे।
5. राजकीय और सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालयों की संख्या बढ़ाने की जरूरत है।
6. छात्रों की संख्या और माग के मद्देनजर मंडल मुख्यालय पर एक विश्वविद्यालय बनाने की जरूरत है ताकि छात्रों को बाहर न जाना पड़े।
शिक्षा का परिदृश्य-
बेसिक शिक्षा-
प्राइमरी स्कूल- 1757
जूनियर हाईस्कूल- 763
शिक्षक
प्राइमरी विद्यालय- 2492
जूनियर हाईस्कूल- 2127
छात्र संख्या
प्राइमरी विद्यालय- 370495
जूनियर हाईस्कूल- 238123
माध्यमिक शिक्षा
कुल विद्यालय- 571
राजकीय विद्यालय- 22
सहायता प्राप्त विद्यालय- 94
वित्त विहीन विद्यालय- 455
विद्यार्थी- 2.46 लाख
उच्च शिक्षा
राजकीय कालेज- 6
एडिड कॉलेज- 3
निजी कॉलेज- 82
अलीगढ़ में शिक्षा
-450 स्कूलों में बिजली नहीं है।
-21 स्कूलों में हैंडपंप नहीं हैं।
-26 स्कूल शौचालय विहीन हैं।
-27 स्कूलों के भवन जर्जर हैं।
-3500 शिक्षकों के पद खाली हैं।
स्कूल हैं, शिक्षक भी होने चाहिए
[प्रमोद कुमार सिंह] हाथरस
जिस तरह कमजोर नींव पर बुलंद इमारत खड़ी नहीं की जा सकती, उसी तरह खंडहरों में भविष्य की नींव नहीं रखी जा सकती। जिले में शिक्षा के क्षेत्र में यही उलटबासी है। बेसिक से लेकर उच्च शिक्षा तक सिसक रही है। क्या मुरझाई उम्मीदों के बीच आशा की कोई किरण है? निश्चित रूप से है। जहा चाह, वहा राह। वो राह कौन-सी होगी, आइए तलाश करें..
पहले चुनौतिया देखें। बेसिक और माध्यमिक स्कूलों में शिक्षकों की कमी है। करीब 1000 पद खाली हैं। जब शिक्षक ही नहीं होंगे तो बच्चे क्यों आएंगे। स्कूल बैग, मिड डे मील से लेकर छात्रवृत्ति वितरण तक में गड़बड़िया हैं। दूसरी चुनौती मूलभूत सुविधाओं की है। जिले में करीब 400 स्कूलों में बिजली नहीं है। 40 स्कूलों में हैंडपंप लगे ही नहीं तो 80 स्कूलों में खराब पड़े हैं। 40 स्कूलों में शौचालय ध्वस्त पड़े हैं। जरा सोचिए, बच्चे किस मनोस्थिति और परिस्थिति में पढ़ते होंगे। उच्च शिक्षा की बात करें तो जिले में चार अशासकीय अनुदानित कालेज हैं, जिनमें विषयों की कमी खलती है। यहा सारे विषयों की पढ़ाई की व्यवस्था की जा सकती है।
क्या है रास्ता-
1. 100 से अधिक परिषदीय विद्यालय बंद पड़े हैं या एकल संचालित हैं। यहा शिक्षकों की तैनाती करके प्राथमिक शिक्षा को पटरी पर लाया जा सकता है।
2. शिक्षकों की उपस्थिति, मिड डे मील की गुणवत्ता व सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन पर कड़ी निगरानी की जरूरत है।
3. स्कूलों में शिक्षकों की कमी को दूर करना जरूरी है। मूलभूत सुविधाएं भी मिलनी चाहिए।
हाथरस में शिक्षा-
प्राथमिक विद्यालय- 1055
जूनियर विद्यालय- 456
शिक्षकों की संख्या- 2378
बच्चों की संख्या- 1.50 लाख
माध्यमिक शिक्षक- 700
साक्षरता दर- 62 प्रतिशत
बहस-
शिक्षा में कुछ किंतु-परंतु-
आज के दौर में सार्थक शिक्षा किसे कहेंगे? वही न जो सभ्यता-संस्कृति, जीवन मूल्य, ज्ञानवर्द्धन के साथ रोजगार के मौके भी प्रदान करे। जरा सोचिए, क्या ऐसा हो रहा है? परिस्थितिया जटिल होती जा रही हैं। आप खुद देखिए। इस साल अलीगढ़ के 45 हजार बच्चों ने यूपी बोर्ड से इंटर पास की। एएमयू में यूपी बोर्ड के बच्चों को दाखिला न के बराबर मिलता है। शहर में अंबेडकर विवि से संबद्ध सिर्फ तीन कॉलेज हैं। एक तो इनमें रोजगारपरक पाठ्यक्रमों का अभाव है, दूसरा स्नातक के लिए कुल 5200 सीटें हैं। बाकी बच्चे कहा पढ़ेंगे? तीन ही विकल्प हैं-प्राइवेट कॉलेज, पलायन या फिर पढ़ाई छोड़ें। क्या किसी को इन बच्चों की चिंता है? दूसरा सवाल। अलीगढ़ का ताला व हार्डवेयर उद्योग विश्वप्रसिद्ध है। क्या यहा इनसे संबंधित कोई तकनीकी शिक्षा दी जाती है? यदि नहीं तो क्यों? क्या यहा ऐसा तकनीकी संस्थान नहीं खोला जाना चाहिए जिससे इन उद्योगों को संजीवनी मिले। एक सवाल और। आगरा स्थित डॉ. भीमराव अंबेडकर विवि पर लगभग 500 कॉलेजों का भार है। क्या यह कम नहीं होना चाहिए? अलीगढ़ मंडल में विद्यार्थियों की भारी संख्या है तो एक विश्वविद्यालय यहा क्यों नहीं। क्या सरकार विचार करेगी?
-डॉ. एके दीक्षित, प्रचार्य, एसवी कॉलेज
एक रुपये से कमाल-
वे शिक्षक नहीं हैं लेकिन 125 बेसहारा बच्चों का जीवन रोशन कर रहे हैं। वो भी सिर्फ एक रुपये से। यह शुभ कार्य कर रहा है वात्सल्य सेवा संस्थान। इस संस्था में 600 सदस्य हैं। हर सदस्य एक साल में 365 रुपये समिति को देता है। यानि हर रोज एक रुपये। संस्था ने 125 बच्चे गोद ले रखे हैं। इनकी पढ़ाई पर सालाना दो लाख से अधिक खर्च होते है। इन बच्चों में नर्सरी से लेकर बीए, बीकॉम तक के छात्र हैं। कैसे मिली प्रेरणा? समिति के महामंत्री आलोक वाष्र्णेय बताते हैं, महावीर गंज के तीन बहन-भाइयों को फीस जमा न होने पर स्कूल ने बाहर कर दिया था। घर के मुखिया की अचानक मौत से यह परिवार आर्थिक संकट में फंस गया था। मुझे पता चला तो उन बच्चों की फीस जमा करा दी। उसी दिन मन में आया कि ऐसे बच्चों के लिए कुछ किया जाए। दोस्तों से चर्चा की और समिति का गठन किया। हर सदस्य सालाना 365 रुपये दान देता है। इससे ज्यादा किसी से नहीं लिया जाता। यह एक रुपया कमाल कर रहा है। यकीन न हो तो महावीरगंज की पूनम [नाम परिवर्तित] से पूछिए। शहर के नामी कालेज से बीटेक कर रही इस छात्रा के पिता की मौत हो चुकी है। संस्था ने पढ़ाई का जिम्मा उठाया तो पूनम ने फिर मुड़ कर नहीं देखा। पेशे से दवा कारोबारी आलोक वाष्र्णेय का कहना है कि पूनम जितना पढ़ना चाहेगी, संस्था पढ़ाएगी।
जनमत-
पर्यावरण संरक्षण की जितनी बातें होती हैं, क्या उसका चौथाई हिस्सा भी अमल हो पाता है? सरकार योजनाएं तो खूब बनाती है, मगर भ्रष्टाचार का घुन सब चौपट कर देता है। पहले भ्रष्टाचार रोकिए, तभी पर्यावरण की चिंता सार्थक होगी।
-अशोक अंजुम,
अशोक अंजुम अलीगढ़ जीमेल डॉट कॉम
पर्यावरण का मसला इतना गंभीर है कि इसे सिर्फ सरकार के भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। यह तो हम सबकी जिम्मेदारी बनती है। दिक्कत ये है कि हम सब स्वच्छ हवा-पानी, हरियाली चाहते हैं लेकिन इस पर कुल्हाड़ी भी खुद चलाते हैं। -डॉ. सुनील गुप्ता,
[मयंक त्यागी]
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