हवा-पानी जहर, फिर भी नया पहर
ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन दुनिया के लिए सुरसा सरीखे भयावह रूप में खड़ा हो गया है। धरती के ध्रुवों का श्रृंगार करने वाली हिमशैलें लौ की ऊष्मा से पिघलती मोम सी बन गई हैं। दुनिया के 60 लाख लोग हर साल पर्यावरण प्रदूषण और इसके चलते उपजी बीमारियों से मर रहे हैं। वर्ष 2003 तक दुनिया में 10 करोड़ ल
बरेली। ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता उत्सर्जन दुनिया के लिए सुरसा सरीखे भयावह रूप में खड़ा हो गया है। धरती के ध्रुवों का श्रृंगार करने वाली हिमशैलें लौ की ऊष्मा से पिघलती मोम सी बन गई हैं। दुनिया के 60 लाख लोग हर साल पर्यावरण प्रदूषण और इसके चलते उपजी बीमारियों से मर रहे हैं। वर्ष 2003 तक दुनिया में 10 करोड़ लोग केवल पर्यावरण जनित रोगों से मर चुके होंगे। इनमें 90 फीसदी मृतक विकासशील देशों के ही होंगे। विकसित देशों के क्यों नहीं? इस सवाल का जवाब खोजना हो तो पर्यावरण असंतुलन के स्याह हाशिये पढ़ने होंगे। रुहेलखंड में बह रही विकास की बयार अच्छी है लेकिन पर्यावरण के रास्ते में यह रौशनी बहुधा दीवार ही है। रियो-डि-जेनरियो में आयोजित 'रियो-प्लस ट्वेंटी' दूसरा मौका था जब पर्यावरण प्रदूषण पर दुनिया के विकसित और विकासशील राष्ट्रों ने अपनी चिंता जाहिर की। वर्ष 1992 में पहली बार पर्यावरण असंतुलन के खतरों पर अंतरराष्ट्रीय मंच से कुछ फैसले लिये गए थे। पहाड़ों की बर्फ गल रही है। इससे समुद्र और पहाड़ दोनों अपनी कब्र के करीब खड़े हैं। कोस्टल लाइन का अफसाना खत्म होने पर दिख रहा है। रुहेलखंड ने खुद को पर्यावरण प्रदूषण की गरजती नदी में समाने से रोकने की कोशिशों की है। बरेली मंडल में महज एक साल में हाईवे के लिए तीस हजार पेड़ों की गर्दन रेत डाली गई हैं। यहां गंगा, रामगंगा, सोत, देवहा, खकरा, शारदा, गर्रा, खन्नौत, बहगुल, गोमती का पानी आचमन लायक भी नहीं है। प्रयास जारी रहे तो संभावनाएं क्षीण नहीं होंगी। एक शर्त के साथ कि आदमी धरती का अंधाधुंध दोहन करने, नदियों को कूड़ाघर बनाने, भूगर्भ जल को जूती धोने के लिए भी घंटों पंप से सुड़कने, कृत्रिम हवा पाने के चक्कर में प्राकृतिक हवा में जेनरेटर का जहर घोलने और कोठियां गढ़ने के लिए बागों की कोख उजाड़ने से तो बाज आए, बाज आए, बाज आए..।
शीशा सा झलकेगा झुमके वाला शहर-
बरेली शहर को पेरिस बनाने का ख्वाब हकीकत की दहलीज पर खड़ा है। बस थोड़ा संजीदगी भरा प्रयास सुनहरे कल की इबारत पर दस्तखत साबित होगा। सिटी सैनीटेशन प्लान तैयार हो चुका है। उसे लागू कराने की देर है। सड़कें कूड़े से साफ हो जाएंगी औैर प्रदूषण से शुष्क शौचालयों की दुर्गध नदारद हो जाएगी। रामगंगा फिर से पतित पावनी की शक्ल में लौट आएगी, क्योंकि उसमें जलमल सीधे नहीं गिराया जाएगा। चार जगहों पर सीवर ट्रीटमेंट प्लांट बनेंगे।
एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कालेज हैदराबाद 'आस्की' ने सर्वे के बाद 1000 पेज का सिटी सेनीटेशन प्लान तैयार कर दिया है। इसमें गंदगी वाले इलाकों को चिन्हित कर दिया है। जहां कूड़ा पड़ा रहता है और जहां शुष्क शौचालय अभी भी खत्म नहीं हुए। प्लान में यह उपाय भी सुझाया है कि किस तरह थोड़े उपाय करने के बाद पर्यावरण को सहेजा जा सकता है। बस प्लान को लागू करने की देर है।
फिर से बनेगा सीवरेज प्लान-
शहर में सीवरेज प्लान को नए सिरे से बनाया जाएगा। यह काम प्राइवेट संस्था के हवाले किया जाएगा। जलनिगम के एक्सईएन दिनेश चंद्र बताते हैं कि मुख्यालय से आदेश आ गए हैं। एक-दो दिन में टेंडर मांगे जाएंगे।
क्या था प्लान-
सीवरेज प्लान पहले 441 करोड़ का तैयार हुआ था, जिसमें दो सीवर ट्रीटमेंट प्लांट की भी व्यवस्था की गई थी। नये प्लान में चार सीवर ट्रीटमेंट प्लांट का प्रस्ताव रखा जाएगा, जो शहर के चारों छोर पर रामगंगा और नकटिया नदी से पहले बनेंगे। तब जलमल ट्रीट होने के बाद ही नदियों में जाएगा। अभी सीधे भेजा जा रहा है।
इन इलाकों में पड़ेगी सीवर-
नार्थ डेवलपमेंट जोन-पीलीभीत बाईपास का इलाका, सुभाषनगर जोन-सिठौरा, मढ़ीनाथ, शान्ति विहार, नेकपुर, सनैया धन सिंह, गणेशनगर, ट्रांस रेलवे जोन-मथुरापुर ट्यूलिया, नदौसी, गोकुलपुर, गोविंदापुर, बाकरनगर, सुंदरासी, बंडिया।
चालू होगा कूड़ा निस्तारण संयंत्र-
रजऊ परसपुर में निर्माणधीन सालिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट [कूड़ा निस्तारण संयंत्र] जल्द ही चालू होने जा रहा है। पर्यावरण मूल्यांकन रिपोर्ट नये सिरे से तैयार करने के बाद प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को भेज दी गई है। यहां से प्राधिकार पत्र जारी होना है। महापौर डा. आइएस तोमर ने उम्मीद जताई कि एक या फिर दो सप्ताह के भीतर बोर्ड से प्राधिकार पत्र जारी हो जाएगा। ऐसा होते ही प्लांट को चालू कर दिया जाएगा।
फैक्टिरियों की कसेगी लगाम-
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अफसरों की नजरें रामगंगा को प्रदूषित करने वाले जिले के छोटे बड़े 50 उद्योगों पर टिकी हैं। बोर्ड ने उद्योगों में उपप्रवाह शुद्धीकरण संयत्र लगाने के निर्देश दिए हैं। क्षेत्रीय प्रदूषण अधिकारी ए लाल ने बताया कि संयंत्र नहीं लगाने वालों के उद्योगों को सील करने की कार्रवाई की जाएगी।
[बरेली में प्रदूषण]
डेलापीर रोड संवेदनशील-
इज्जतनगर से डेलापीर और मंडी वाला रोड प्रदूषण के लिहाज से शहर का सबसे ज्यादा संवेदनशील इलाका है। रोड खराब होने और सड़कें टूटी होने की वजह से यहां हमेशा धूल उड़ती रहती है। क्षेत्र के वातावरण में धूल और वाहनों से निकलने वाली प्रदूषित गैसें सामान्य से 80 प्रतिशत ज्यादा बनी हुई हैं।
शहामतगंज भी शर्मसार-
शहर के शहामतगंज इलाके में वायु और ध्वनि प्रदूषण का स्तर काफी ऊंचा है। वातावरण में जहरीली गैसें घुलनशील रहने से यह क्षेत्र खतरनाक स्थिति में है। यहां एनओएक्स की मात्रा सबसे ज्यादा पाई गई है। वाहनों के कानफोड़ू शोर और उनसे निकलने वाली प्रदूषित गैसें वातावरण को लगातार जहरीला बनाती हैं। कोहाड़ापीर का इलाका भी शहामतगंज जैसा ही है।
जंक्शन पर कुछ मत खाना-
रेलवे जंक्शन के प्लेटफार्मो पर बैक्टीरिया इतने खतरनाक मात्रा में तैरते रहते हैं कि यहां कुछ भी खाना या पीना सेहत से खिलवाड़ करने जैसा है। ट्रेनों से निकलने वाले सीवरेज के कारण रेलवे ट्रेक से पांच फुट ऊंचाई तक बैक्टीरिया पाए गए हैं। पीने के पानी के सैम्पल में भी बैक्टीरिया पाए गए, इसलिए कहा जा सकता है कि जंक्शन का पानी भी पीने लायक नहीं है।
कैंट और रामपुर बाग शानदार-
शहर में कैंट का इलाका पर्यावरण के लिहाज से सबसे बेहतर है। यहां शहर के कई अन्य इलाकों जैसी खतरनाक गैसें वातावरण में तैरती हैं। रामपुर बाग का इलाका भी जहरीली गैसों से काफी हद तक मुक्त है।
बरेली में वन क्षेत्र-
2.25 हेक्टेयर
लक्ष्य वर्ष 2011-12
पौधे- 104000
क्षेत्रफल- 160 हेक्टेयर
पौधारोपण हुआ
पौधे- 22744
क्षेत्रफल- 264.95 हेक्टेयर
हरियाली पर चली आरी-
एनएच 24: 7200
क्षेत्रफल: 42 हेक्टेयर
अन्य प्रोजेक्ट: 187
जनमत-निसंदेह क्षेत्रीय आकांक्षाएं विकास को एजेंडा देंगी और विकसित उन्हीं के अनुरूप हो सकेगा। यह आकांक्षाएं विकास में सहायक नहीं, मील का पत्थर साबित होंगी।
विक्की जितेन्द 81:जीमेल.कॉम-
बेहतर विकास क्षेत्रीय आकांक्षाओं की कसौटी पर खरा उतरकर ही हो सकता है। किस क्षेत्र में विकास के लिए क्या जरूरत है, यह जन-आकांक्षाओं से ही सुनिश्चित हो सकेगा।
मोहित एजेए:जीमेल.कॉम-
क्षेत्रीय समस्याएं ही पिछड़ेपन का अहसास कराती हैं। इसे दूर करने के लिए क्षेत्रीय आकांक्षाएं उभरती हैं। इनको पूरा कराकर ही संपूर्ण विकास का सपना साकार कराया जा सकता है।
बसंत बहार:जीमेल.कॉम-
जन आकांक्षाएं वास्तव में विकास का एजेंडा प्रस्तुत करती हैं। निश्चित ही एजेंडे के आधार पर कराया गया विकास बेहतर विकास की परिकल्पना साकार कर सकेगा। जन आकांक्षाओं के मुताबिक विकास हो।
उपासना शर्मा 75:जीमेल.कॉम-
बदायूं-
शहर में वायु प्रदूषण की स्थिति करीब 300-350 माइक्रोग्राम प्रति मीटर है। इसका प्रमुख कारण यहां की टूटी हुई सड़कें हैं, जिनके कारण सड़कों पर हर समय धूल उड़ती रहती है। बिजली की अंधाधुंध कटौती के कारण बाजारों में डीजल जेनरेटर का भी खूब प्रयोग होता है। शहर में वाहनों की संख्या भी करीब 3 लाख से अधिक है। इस अनुपात में सड़कें संकरी होने के कारण कदम-कदम पर जाम आम बात है। इसके कारण वाहनों से निकलने वाला धुआं भी वातावरण को प्रदूषित करता है। साबुन, केमिकल व बैट्री आदि की करीब 50 से अधिक छोटी-बड़ी फैक्ट्रियां शहर के बाजारों व रिहायशी इलाकों में चल रही हैं। इनसे उत्सर्जित होने वाले तत्व हवा में जहर घोल रहे हैं।
ये प्रयास चाहिए-
-जिले व शहर की सड़कें दुरुस्त की जाएं।
-वाहनों की नियमित प्रदूषण जांच हो।
-शहर के बाहर औद्योगिक क्षेत्र विकसित कर फैक्ट्रियां आबादी से हटाई जाएं।
-बिजली की आपूर्ति सुनिश्चित हो तथा व्यस्त इलाकों में डीजल जनरेटर प्रतिबंधित किए जाएं।
-शहर के पार्को व सड़कों के किनारे सघन वृक्षारोपण कराया जाए।
-घरों के सामने ग्रीन पंट्टी अनिवार्य की जाए।
आंकड़े-
-ध्वनि प्रदूषण : 75-80 डेसिबल
-वायु प्रदूषण : 300-350 माइक्रोग्राम प्रति मीटर
-जल प्रदूषण : 5-15 मिलीग्राम प्रति लीटर
-वन क्षेत्र: 6054 हेक्टेयर
-पौधरोपण का लक्ष्य-258 हेक्टेयर -वन विभाग द्वारा कराया गया पौधरोपण-189 हेक्टेयर
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